मेले में नायला से आए चंदालाल मीणा का कहना है कि उन्होंने मेले के हिसाब से पहले ही घोड़े खरीद लिए थे, लेकिन इस बार मेले में अधिक कीमत के पशुओं के खरीदार नहीं आए। उनका एक बच्छेरा 30 हजार रुपए में बिका है। जबकि ढाई लाख कीमत के बादल को कोई खरीदार नहीं मिला। निवाई से आए अलीम खान ने बताया कि वह बच्छेरी को बेचने के लिए आया है, ग्राहक तो लग रहे है, लेकिन अभी किसी ने खरीदी नहीं।
बरेली से आए रफीक खान ने बताया कि इस बार कोरोना के कारण मेला काफी महंगा रहा। मेले में अच्छे पशु नहीं आने से निराशा ही हाथ लगी।
घोड़े खरीदने आए महेन्द्र ने कोरोना के कारण मेले लगने पर पाबंदी लगाने पर नाराजगी जताते हुए कहा कि का कहना है कि जब चुनावी रैलियों में लाखों की भीड़ जुट सकती है तो फिर पशु मेले लगाने पर पाबंदी क्यो?
इस मेले जयपुर के अलावा भरतपुर, धौलपुर, भींड, हाथरस, मथुरा, बरेली, सूरत से पशुपालक गधे घोडों की खरीदारी करने पहुंचे, लेकिन ज्यादा संख्या में पशु नहीं आने से कई व्यापारी निराश होकर लौट गए, जबकि बाहर से आए कुछ लोग अभी मेले में रुक कर खरीदारी रहे हैं। पशुपालकों का कहना है कि सरकार की ओर से मेले पर पशुपालकों के लिए किसी तरह की व्यवस्था नहीं की गई है। लेकिन फिर भी मेला बिना किसी व्यवधान के तीन दिन से भर रहा है।
संस्थान के संरक्षक ठाकुर उम्मेद सिंह राजावत ने बताया कि हर साल में मेले में करीब 1500 से 2000 गधे, घोड़े-घोडिय़ां व खच्चर बिकने के लिए आते हैं। पशुपालकों की सुविधा के लिए नगर निगम की ओर से मेला स्थल पर लाइट-पानी की व्यवस्था की जाती है और संस्थान उद्घाटन व समापन समारोह के अलाव पर्यटन विभाग व निगम के सहयोग से सांस्कृतिक कार्यक्रम व अन्य आयोजन करवाता है। लेकिन इस बार कोरोना के कारण कोई व्यवस्था नहीं की गई।