दो बिन्दुओं से समझें: इंदौर इसलिए है आगे और हम रह गए पीछे
इंदौर——
1— 1200 टन कचरे का रोज निस्तारण किया जाता है। 400 टन कचरे को खत्म करने के लिए निगम प्लॉन्ट पर भेजता है। इनसे निगम को सालाना ढाई करोड़ रुपए का राजस्व भी मिलता है। वहीं, 700 टन गीले कचरे से सीएनजी और खाद बनती है। 45 करोड़ निगम कमाता है।
2—सीएनडी वेस्ट (घर निर्माण के दौरान निकलने वाला मलवा) का निस्तारण किया जा रहा है। इससे टाइल बनाई जाती हैं। ये फुटपाथ बनाने के लिए काम में ली जाती है। इससे निगम को 20 करोड़ रुपए की आय भी हो रही है।
जयपुर———
1—1500 टन कचरा रोज निकलता है। इसमें से महज 300 टन कचरे का निस्तारण हो पाता है। वो भी नियमित रूप से नहीं होता। बाकी 1200 टन कचरा डम्पिंग यार्ड पर जाकर डाला जाता है। इसी वजह से कचरे के पहाड़ बढ़ते जा रहे हैं। कचरा उठाने की व्यवस्था भी सही नहीं है। कई जगह तो नियमित रूप से हूपर ही नहीं आते।
2—सीएनडी वेस्ट के निस्तारण को लेकर लम्बे समय से बैठकों में ही बातें हो रही हैं। अब 300 टन क्षमता के प्लॉन्ट को लगाने की प्रक्रिया शुरू हुई है। हैरिटेज नगर निगम ने जमीन का आवंटन किया है। इसके अंक ही जयपुर को स्वच्छता सर्वेक्षण में नहीं मिल पाते हैं।
इंदौर——अपने स्तर पर संसाधन जुटाए
हर महीने खर्चा— आठ करोड़ रुपए।
—700 हूपर, 150 डंपर और बड़ी गाडियां, 25 रोड स्वीपिंग मशीनें, निगरानी के लिए अफसरों के पास 22 गाड़ियां और सात् ट्रांसफर स्टेशन।
जयपुर——निगम खरीदे और किराए पर दिए, कुछ किराए पर लिए
हर महीने खर्चा—सात करोड़ रुपए
—540 हूपर, आठ रोड स्वीपिंग मशीनें हैं। ये सभी किराए पर हैं। हर महीने इन मशीनों का 10 लाख रुपए किराया देता है। अफसरों की निगरानी के नाम पर खानापूर्ति होती है। 15 ट्रांसफर स्टेशन शहर भर में बना रखे हैं। इतना ही नहीं, निगम डेढ़ करोड़ रुपए के 30 हूपर खरीदकर बीवीजी कम्पनी को किराए पर भी दे रखे हैं।
हर महीने खर्चा—सात करोड़ रुपए
—540 हूपर, आठ रोड स्वीपिंग मशीनें हैं। ये सभी किराए पर हैं। हर महीने इन मशीनों का 10 लाख रुपए किराया देता है। अफसरों की निगरानी के नाम पर खानापूर्ति होती है। 15 ट्रांसफर स्टेशन शहर भर में बना रखे हैं। इतना ही नहीं, निगम डेढ़ करोड़ रुपए के 30 हूपर खरीदकर बीवीजी कम्पनी को किराए पर भी दे रखे हैं।