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किशनबाग वानिकी परियोजना… जयपुर में दिखेगी ‘धोरों की धरती’, समझेंगे रेत से पत्थर बनने की कहानी

locationजयपुरPublished: Nov 25, 2021 05:33:22 pm

Submitted by:

Ashwani Kumar

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जयपुर। राजधानी में धोरों की धरती देखने को मिलेगी। ग्रेनाइट पत्थर पर पेड़ उगने की कहानी भी लोगों को यहीं समझ में आएगी। साथ ही रेत से पत्थर बनने में कितने वर्ष लगे और राजस्थान का कौन से हिस्से में अथाह पानी हुआ करता था। यह सब जानकारी किशनबाग वानिकी परियोजना में देखने को मिलेगा। अरावली पहाडिय़ों पर उगने वाले धोक के पेड़ों के इतिहास को भी लोग समझ सकेंगे। पूरी परियोजना को पांच हिस्सो में बांटा गया है। पत्थर, रेत, जीवाश्म, घास से लेकर पक्षियों और तितलियों के बारे में लोग करीब से जान पाएंगे। धरती पर ऑक्सीजन कै से आई, इसकी जानकारी भी इस परियोजना में मिल सकेगी।
जेडीए ने विद्याधर नगर के पास 64 हैक्टेयर में इस परियोजना को विकसित किया है। इसका निर्माण कार्य पूरा हो चुका है और जल्द ही मुख्यमंत्री अशोक गहलोत इसका उद्घाटन करेंगे।

सीखने और समझने के लिए बहुत कुछ
-रेत से पत्थर तक: पश्चिमी राजस्थान में कभी समुद्र हुआ करता था। वहां जो रेत है, उसके होने का यही कारण है। इसके बाद इसी रेत का पत्थर बनना शुरू हुआ। इस प्रक्रिया में हजारों साल लगे। परियाजनों में जो पत्थर लगाए गए हैं, उन के ऊपर पानी बहने के निशान तक बने हैं। ये पत्थर राजस्थान के विभिन्न जिलों से आए हैं। पश्चिमी राजस्थान को लेकर अमरीकी कलाकार विलियम सिलिन ने 20 से 14.5 करोड़ साल पहले की एक पेंटिंग बनाई है। इस पेंटिंग में उस समय का राजस्थान दिखाने की कोशिश की है। समुद्र को भी दिखाया गया है।
-धोक के पेड़: बरसात के दिनों में अलग ही रूप में दिखाई देते हैं। अरावली की पहाडिय़ों पर उगता है। जयपुर के आस-पास सर्वाधिक हैं। ये पेड़ भी पहाड़ पर लगाए गए हैं। बरसात के दिनों में अलग ही छटा बिखेरते हैं।
-ज्वालामुखी: राजस्थान के बाड़मेर, पाली और जोधपुर के हिस्से में ज्वालामुखियों ने तमाम निशान हैं। वहां से जो पत्थर निकलता है, उस पर ज्वालामुखी के निशान मिलते हैं। जानकारों की मानें तो 75 करोड़ साल पहले ये घटना हुई होगी। ऐसे पत्थरों को लाकर यहां पर रखा गया है।
-रोई के पौधे: खेजड़ी, भू-बावल, कैर, लाणा के फूल, लांकि मूल बेहद खास पौधे माने जाते हैं। बरसात के दिनों में यह सुंदर दिखते हैं। बाकी ऋ तुओं में सामान्य से ही दिखाई देते हैं।

अलग तरीके की इकलौती परियोजना
राज्य का सबसे अलग तरीका का यह इकलौती परियोजना है। इसमें विविधताओं की कमी नहीं है। राज्य भर से अलग-अलग तरीके की घास लाकर लगाई गई है। सभी की अलग विशेषता है।
-विजय दशमाना, निदेशक, वानिकी परियोजना
11 करोड़ रुपए से अधिक खर्च किए
जेडीए ने इस जमीन को अवैध कब्जे से बचाने के लिए वानिकी परियोजना विकसित करने की योजना बनाई थी। इस पर जेडीए ने 11 करोड़ रुपए से अधिक खर्च किए हैं। यहां वनस्पति से लेकर पत्थरों के बारे में ढेर सारी जानकारी मिल सकेगी।
-गौरव गोयल, आयुक्त, जेडीए
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