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अब नहीं बचेंगे साइबर अपराधी, जयपुर पुलिस अपना रही है ऐसी तकनीक

Cyber Crime : साइबर अपराधियों को पकड़ने के लिए कमिश्नरेट पुलिस प्राइवेट साइबर एक्सपर्ट को हायर करेगी

जयपुरSep 23, 2019 / 05:46 pm

Deepshikha Vashista

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अब नहीं बचेंगे साइबर अपराधी, जयपुर पुलिस अपना रही है ऐसी तकनीक

अविनाश बाकोलिया / जयपुर. राजधानी में साइबर क्राइम चैलेंज के रूप में उभर रहा है। शहर में रोजाना 4-5 लोगों के साथ ठगी हो रही है। ऐसे में साइबर अपराधियों को पकड़ने के लिए कमिश्नरेट पुलिस प्राइवेट साइबर एक्सपर्ट को हायर करेगी। पुलिस के आलाधिकारियों का मानना है कि अपराधियों को खोजने के लिए तकनीकी ज्ञान का होना जरूरी है। पुलिस में तकनीकी ज्ञान की कमी होने से अपराधी आसानी से ठगी की वारदातों को अंजाम दे रहे हैं।
ऐसे में अब लोगों के बैंक खातों में सेंध लगाने वाले अपराधियों को पकडऩे के लिए कमिश्नरेट में साइबर सेल का गठन किया है। साइबर सेल के लिए पांच साइबर एक्सपर्ट को लिया जाएगा। इसके लिए कमिश्नर आनंद श्रीवास्तव की ओर से आदेश जारी किए हैं। इसके लिए साइबर ऑफ प्राइवेट लिमिटेड से एग्रीमेंट किया गया है।

जटिल केसों को सुलझाएंगे एक्सपर्ट

जानकारी के अनुसार 400 से ज्यादा मामले ऐसे हैं, जिनमें तकनीकी जानकारी नहीं होने से अपराधी पुलिस की पहुंच से दूर हैं। ऐसे में प्राइवेट एक्सपर्ट केसों को सॉल्व करने में पुलिस की मदद करेंगे। साथ ही पुलिस के जवानों को भी साइबर संबंधी प्रशिक्षण दिया जाएगा।
हर माह आएगा तीन लाख रुपए खर्चा

इन प्राइवेट एक्सपर्ट पर कमिश्नरेट के अधिकारी तीन लाख रुपए खर्च करेगी। पुलिस के हायर ऑफ प्राइवेट एक्सपर्ट सर्विसेज फंड से इन साइबर विशेषज्ञों को भुगतान किया जाएगा।

हर महीने दर्ज हो रहे हैं 80 प्रकरण

एडिशनल पुलिस कमिश्नर संतोष चालके ने बताया कि साइबर क्राइम का रूप हर तीन महीने में बदल रहा है। आंकड़ों की बात की जाए, तो हर महीने 80 प्रकरण आइटी एक्ट के दर्ज हो रहे हैं। इनमें कई जटिल केसों को सॉल्व कर पाना मुश्किल हैं। कभी लिंक भेजकर तो कभी ओटीपी पूछकर जालसाज लोगों के खातों से रुपए साफ कर रहे हैं।
– एक साल करीब 960 आइटी एक्ट में मुकदमें दर्ज

– एक साल में 10 करोड़ की ठगी, कमिश्नरेट के थानों में

– 400 से अधिक मामले ऐसे हैं, जिन्हें नहीं सुलझा पाई पुलिस
संसाधनों का अभाव भी एक वजह

साइबर अपराधों को हल नहीं करने की एक वजह संसाधनों का अभाव है। पुलिस के पास डाटा एकत्रित करने के लिए हार्डवेयर नहीं है। साथ ही मोबाइल नंबर का सोशल इंजीनियरिंग विश्लेषण करने के लिए टूल्स की कमी है। मसलन अपराधी के मोबाइल में कौन-कौनसी ऐप डाउनलोड है। किस नाम से अपराधी सोशल मीडिया अकाउंट चलाता है।
इनका कहना है-

पुलिस के लिए साइबर अपराध पर लगाम लगाना चैलेंज बनता जा रहा है। पुलिस को तकनीकी जानकारी नहीं होने का फायदा अपराधी उठा रहे हंै। ऐसे में छह प्राइवेट एक्सपर्ट को हायर किया जाएगा, जो जटिल केसों को हल करने में पुलिस की मदद करेंगे।
– संतोष चालके, एडिशनल पुलिस कमिश्नर

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