घटना वैसे तो पिछली 27 सितम्बर की है। पुलिस में एफआईआर इसके चार दिन बाद दर्ज हुई, लेकिन मामला छिपा रहा। आखिर एक साथ एक ही जाति के 200 लोग घर छोड़कर जैसलमेर पहुंचे तो राज खुला। पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) जैसे संगठन ने मामले को उठाया तो आज यह मामला दुनिया की नजर में पूरी तरह सामने आ सका है। राजस्थान के प्रमुख साहित्यकार कृष्ण कल्पित ने घटना के बाद अपनी फेसबुक वॉल पर लिखा है कि यह कलाओं के इतिहास की शायद प्रथम घटना है जब एक कलाकार को किसी विशेष राग को सही ढंग से नहीं गाने के लिए पीटपीट कर मौत के घाट उतार दिया गया हो।
यह है घटनाक्रम
जो घटना सामने आई है, उसके मुताबिक अभियुक्त रमेश दांतल गांव का भोपा है। नवरात्रा के दौरान मांगणियार को मंदिर में राग परचा गाने के लिए बुलाया जाता है। लोक कलाकार यह राग छेड़ता है और भोपा अपने में देवी का परचा आने का आभास करवाते हुए लोगों की दिक्कतों को सुनकर समाधान सुझाता है। दांतल गांव में ही मांगणियारों के 40 परिवार है। इस गरीब जाति के लोगों का जीवन बसर लोक संगीत से ही होता है। गरीबी का आलम यह है कि आज भी इन्हें एक गीत के बदले 10 रुपए का मेहनताना मिलाता है। गांव में यजमान के यहां उत्सव होने पर कुछ राशि के अलावा ठंडा भोजन, कपड़े आदि जरूर मिल जाते हैं। गायन का अवसर नहीं होने पर मनरेगा में मजदूरी ही इनके जीवन निर्वाह का साधन है। जैसलमेर के कई गांवों में लंगा और मांगणियार लोक कलाकारों की यही स्थिति है।
जो घटना सामने आई है, उसके मुताबिक अभियुक्त रमेश दांतल गांव का भोपा है। नवरात्रा के दौरान मांगणियार को मंदिर में राग परचा गाने के लिए बुलाया जाता है। लोक कलाकार यह राग छेड़ता है और भोपा अपने में देवी का परचा आने का आभास करवाते हुए लोगों की दिक्कतों को सुनकर समाधान सुझाता है। दांतल गांव में ही मांगणियारों के 40 परिवार है। इस गरीब जाति के लोगों का जीवन बसर लोक संगीत से ही होता है। गरीबी का आलम यह है कि आज भी इन्हें एक गीत के बदले 10 रुपए का मेहनताना मिलाता है। गांव में यजमान के यहां उत्सव होने पर कुछ राशि के अलावा ठंडा भोजन, कपड़े आदि जरूर मिल जाते हैं। गायन का अवसर नहीं होने पर मनरेगा में मजदूरी ही इनके जीवन निर्वाह का साधन है। जैसलमेर के कई गांवों में लंगा और मांगणियार लोक कलाकारों की यही स्थिति है।
क्योंकि वह शुद्ध राग न गा सका
मृतक लोक कलाकार आमद खां मांगणियार पर यह आरोप लगा कि वह शुद्ध राग गाकर देवी को प्रसन्न नहीं कर सका। इसकी वजह से देवी ने भोपे रमेश कुमार सुथार को पर्चा (चमत्कार) नहीं दिया। इसी से नाराज होकर रमेश व उसके दो भाइयों ताराराम व श्याम सुधार ने चार बच्चों के पिता 50 वर्षीय आमद खां को घर से उठाया और पीट पीट कर मार डाला।
मृतक लोक कलाकार आमद खां मांगणियार पर यह आरोप लगा कि वह शुद्ध राग गाकर देवी को प्रसन्न नहीं कर सका। इसकी वजह से देवी ने भोपे रमेश कुमार सुथार को पर्चा (चमत्कार) नहीं दिया। इसी से नाराज होकर रमेश व उसके दो भाइयों ताराराम व श्याम सुधार ने चार बच्चों के पिता 50 वर्षीय आमद खां को घर से उठाया और पीट पीट कर मार डाला।
दो बार पुलिस को खाली लौटाया
जैसलमेर के पुलिस अधीक्षक गौरव यादव के अनुसार फलसूंड पुलिस थाने के आमद की मौत की खबर करीब २४ घंटे बाद लगी। पुलिस वहां पहुंची तो सरपंच व अन्य लोगों ने यह कहकर पुलिस को लौटा दिया कि आमद की मौत हार्ट अटैक से हुई है। इसके बाद गांव में तनाव की सूचना पर पुलिस फिर पहुंची, लेकिन ग्रामीणों ने पुलिस को लौटा दिया। फिर आमद के जोधपुर से पहुंचे कुछ रिश्तेदारों के जरिए हकीकत पता चली और पुलिस ने दो अक्टूबर को हत्या का मामला दर्ज किया। आमद का शव कब्र से बाहर निकाल कर पोस्टमार्टम करवाया गया। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में चोटों और मारपीट के कारण सदमा लगने से मौत की पुष्टि हुई। इस पर भोपा रमेश सुथार को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया।
जैसलमेर के पुलिस अधीक्षक गौरव यादव के अनुसार फलसूंड पुलिस थाने के आमद की मौत की खबर करीब २४ घंटे बाद लगी। पुलिस वहां पहुंची तो सरपंच व अन्य लोगों ने यह कहकर पुलिस को लौटा दिया कि आमद की मौत हार्ट अटैक से हुई है। इसके बाद गांव में तनाव की सूचना पर पुलिस फिर पहुंची, लेकिन ग्रामीणों ने पुलिस को लौटा दिया। फिर आमद के जोधपुर से पहुंचे कुछ रिश्तेदारों के जरिए हकीकत पता चली और पुलिस ने दो अक्टूबर को हत्या का मामला दर्ज किया। आमद का शव कब्र से बाहर निकाल कर पोस्टमार्टम करवाया गया। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में चोटों और मारपीट के कारण सदमा लगने से मौत की पुष्टि हुई। इस पर भोपा रमेश सुथार को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया।
दबंगई का डर
पीयूसीएल के प्रतिनिधियों की मानें तो गांव में दबंगों के रुतबे का आलम यह है कि आमद खां की मय्यत में शामिल होने आए लोगों को कथित रूप से हाथ-मुंह धोने के लिए अन्य लोगों ने पानी तक उपलब्ध नहीं करवाया। चार दिन तक गांव के अन्य लोग आमद खां के परिवार पर गांव की बात गांव में ही रखने का दबाव बनाते रहे। कुछ लोगों की ओर से कुछ धनराशि का लालच दिए जाने की बात भी सामने आ रही है। ऐसे में आमद की मौत के चार दिनों तक तो एफआईआर तक दर्ज नहीं करवाई जा सकी। आखिर आमद के कुछ पढ़े लिखे रिश्तेदार आए और उन्होंने एफआईआर करवाने का रास्ता बताया। इसके बाद तो न सिर्फ आमद बल्कि गांव में रहने वाले अन्य मांगणियार परिवारों का भी जीना ***** हो गया। कारण कि एफआईआर दर्ज करवाने को गांव के नियम कायदे तोड़ने वाला माना गया। मांगणियारों के खिलाफ पूरा गांव एक हो गया। नतीजन पहले तो इन 40 परिवारों के लोग अपने मवेशी व सामान आदि छोड़कर गांव से निकलने को मजबूर हुए। ये लोग पास के ही बालड गांव में खुली छत के नीचे रहे। वहां इनके कुछ रिश्तेदार हैं। जब वहां भी खाने पीने की व्यवस्था पूरी तरह नहीं हो पाई तो इन परिवारों के लगभग 200 लोग 9 अक्टूबर जैसलमेर जिला मुख्यालय आ गए। परकोटे में इधर उधर भटकते रहे। जिला प्रशासन को बात पता चली तो गांव के सरपंच को बुलाकर मामला सलटाने को कहा गया, लेकिन वह भी कुछ नहीं कर पाया।
पीयूसीएल के प्रतिनिधियों की मानें तो गांव में दबंगों के रुतबे का आलम यह है कि आमद खां की मय्यत में शामिल होने आए लोगों को कथित रूप से हाथ-मुंह धोने के लिए अन्य लोगों ने पानी तक उपलब्ध नहीं करवाया। चार दिन तक गांव के अन्य लोग आमद खां के परिवार पर गांव की बात गांव में ही रखने का दबाव बनाते रहे। कुछ लोगों की ओर से कुछ धनराशि का लालच दिए जाने की बात भी सामने आ रही है। ऐसे में आमद की मौत के चार दिनों तक तो एफआईआर तक दर्ज नहीं करवाई जा सकी। आखिर आमद के कुछ पढ़े लिखे रिश्तेदार आए और उन्होंने एफआईआर करवाने का रास्ता बताया। इसके बाद तो न सिर्फ आमद बल्कि गांव में रहने वाले अन्य मांगणियार परिवारों का भी जीना ***** हो गया। कारण कि एफआईआर दर्ज करवाने को गांव के नियम कायदे तोड़ने वाला माना गया। मांगणियारों के खिलाफ पूरा गांव एक हो गया। नतीजन पहले तो इन 40 परिवारों के लोग अपने मवेशी व सामान आदि छोड़कर गांव से निकलने को मजबूर हुए। ये लोग पास के ही बालड गांव में खुली छत के नीचे रहे। वहां इनके कुछ रिश्तेदार हैं। जब वहां भी खाने पीने की व्यवस्था पूरी तरह नहीं हो पाई तो इन परिवारों के लगभग 200 लोग 9 अक्टूबर जैसलमेर जिला मुख्यालय आ गए। परकोटे में इधर उधर भटकते रहे। जिला प्रशासन को बात पता चली तो गांव के सरपंच को बुलाकर मामला सलटाने को कहा गया, लेकिन वह भी कुछ नहीं कर पाया।
राजपूत बाहुल्य गांव
पोकरण तहसील का दांतल राजपूत बाहुल्य गांव है। वहां राजपूतों के लगभग 250 घर हैं। इसके अलावा आरोपी भोपे की सुथार जाति के 15, मांगणियारों के 40, चारणों के 20 और मेघवालों के 50 घर हैं। आज की तारीख में सभी जातियां मांगणियारों के खिलाफ सिर्फ इसलिए उठ खड़ी हुई है कि एफआईआर के कारण गांव की बात गांव के बाहर चली गई और गांव की बदनामी हुई।
पोकरण तहसील का दांतल राजपूत बाहुल्य गांव है। वहां राजपूतों के लगभग 250 घर हैं। इसके अलावा आरोपी भोपे की सुथार जाति के 15, मांगणियारों के 40, चारणों के 20 और मेघवालों के 50 घर हैं। आज की तारीख में सभी जातियां मांगणियारों के खिलाफ सिर्फ इसलिए उठ खड़ी हुई है कि एफआईआर के कारण गांव की बात गांव के बाहर चली गई और गांव की बदनामी हुई।
जाति नहीं इस लिंचिंग कारण
यहां हुई लिंचिंग का मृतक के मुसलमान होने से जोड़ा जाना एक गलती होगी। यदि ऐसा होता तो आमद खां जैसे मांगणियार गांवों के मंदिरों में भजन नहीं गाते। मांगणियार राजस्थान की वैसे तो एक मुस्लम जाति है, लेकिन इनका रिश्ता इस्लाम से कहीं ज्यादा संगीत से है और इसी वजह से इनकी राग-रागिनियों ने फ्रांस में पहली हुए भारत महोत्सव के बाद से दुनिया भर में रंगत बिखेर रखी है।