-हादसा टला…पंखों को थी मरम्मत की जरूरत संयोग से संयंत्र के आस-पास कोई नहीं था जिससे हादसा टल गया। बताया जाता हैं कि यह पंखे काफी पुराने हैं तथा इन्हें मरम्मत की जरूरत थी। प्रत्यक्षदर्शियों से मिली जानकारी के अनुसार सुबह तड़के तेज हवा के चलते बड़ाबाग साइट पर लगी एक मशीन ओवर स्पीड हो गई। कुछ देर तेज गति से चलने के बाद पूरा संयंत्र टूटकर भराभरा कर नीचे गिर गया। ङ्क्षवडमिल के तीनों बड़े-बड़े ब्लेड एवं खम्भा भी ध्वस्त हो गए। करीब चार करोड़ रुपए के संयंत्र के पंखे एवं हब गिरने से कंपनी को भी भारी नुकसान पहुंचा है।
-ये है पवन ऊर्जा बहती वायु से उत्पन्न की गई उर्जा को पवन ऊर्जा कहते हैं। वायु एक नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत है। पवन ऊर्जा बनाने के लिये हवादार जगहों पर पवन चक्कियों को लगाया जाता है, जिनके जरिए वायु की गतिज उर्जा, यांत्रिक उर्जा में परिवर्तित हो जाती है। इस यांत्रिक ऊर्जा को जनित्र की मदद से विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित किया जा सकता है। पवन ऊर्जा का आशय वायु से गतिज ऊर्जा को लेकर उसे उपयोगी यांत्रिकी अथवा विद्युत ऊर्जा के रूप में परिवर्तित करना है।
-1888 में बनी पवन चक्की विश्व में पवन ऊर्जा का उत्पादन तेजी से बढा जा रहा है। इसका उपयोग पहली बार स्कॉटलैंड में जुलाई 1887 में किया गया। जिससे बिजली बनाई गई। इसके बाद इसका उपयोग वहां की एक कंपनी ने 1888 से 1900 तक किया। तब इसे डाइनेमो के जरिए विद्युत बनाने के लिए उपयोग किया जाता था, लेकिन यह केवल कुछ ऊर्जा बनाने के ही कार्य में आता था। इसके उपरांत इसे और भी बड़ा बनाया गया और इससे बैटरी को आवेशित कर बाद में उपयोग के लिए बनाया गया था। जिससे रात में इसका उपयोग किया जा सके और विद्युत की अन्य विधि से भी इसमें लागत कम लगने के कारण भी इसका उपयोग किया जाने लगा। परंतु इसका उपयोग कुछ कम ऊर्जा बनाने के लिए ही किया जा सकता है। इसलिए उस समय एक निश्चित जगह के लिए इसका उपयोग किया जा रहा था।
-सामान्य पवन टर्बाइन के मुख्य अवयव सूर्य प्रति सेकंड पचास लाख टन पदार्थ को ऊर्जा में परिवर्तित करता है। इस ऊर्जा का जो थोड़ा सा अंश पृथ्वी पर पहुंचता है, वह यहाँ कई रूपों में प्राप्त होता है। सौर विकिरण सर्वप्रथम पृथ्वी की सतह या भूपृष्ठ के जरिए अवशोषित किया जाता है, तत्पश्चात वह विभिन्न रूपों में आस-पास के वायुमंडल में स्थानांतरित हो जाता है। चूंकि पृथ्वी की सतह एक सामान या समतल नहीं है, अत: अवशोषित ऊर्जा की मात्रा भी स्थान व समय के अनुसार भिन्न-भिन्न होती है। इसके परिणामस्वरूप तापक्रम, घनत्व तथा दबाव संबंधी विभिन्नताएं उत्पन्न होती है, जो फि र ऐसे बलों को उत्पन्न करती हैं, जो वायु को एक स्थान से दूसरे स्थान पर प्रवाहित होने के लिए विवश कर देती हैं। गर्म होने से विस्तारित वायु, जो गर्म होने से हलकी हो जाती है, ऊपर की ओर उठती है तथा ऊपर की ठंडी वायु नीचे आकर उसका स्थान ले लेती है, इसके फ लस्वरूप वायुमंडल में अद्र्ध-स्थायी पैटर्न उत्पन्न हो जाते हैं। वायु का चलन, सतह के असमान गर्म होने के कारण होता है। रात में उलटा होता है। पानी के ऊपर की हवा गर्म होती है और ऊपर उठती है और उसकी जगह जमीन से ठंडी हवा आती है।