नाहरगढ़ की पहाडिय़ों में स्थित चरण मंदिर का पहाड़ी वन क्षेत्र वहीं जगह है जहां श्रीकृष्ण के चरण पड़े थे। इसके बाद ही इस जगह का नाम चरण मंदिर हो गया। मंदिर में श्रीकृष्ण के दाहिने पैर और उनकी गायों के पांच खुरों के प्राकृतिक निशान की पूजा होती है। लोक मान्यता व शास्त्रों के अनुसार द्वापर युग में आज का विराटनगर तब विराट जनपद था। श्रीकृष्ण अपने प्रिय पाण्डवों से अज्ञातवास व वन गमन के समय कई बार यहां मिलने आए थे। उनके ढूंढाड़ की धरा पर आने का प्रमाण अम्बिका वन (आमेर) का भागवत प्रसंग भी है। द्वापर युग में Nahargarh के पास में स्थित चरण मंदिर का पहाड़ी वन क्षेत्र अम्बिका वन के नाम से जाना जाता था।
Janmashtami 2018 ग्वालों व नंदबाबा के संग आए थे श्रीकृष्ण
भागवत पुराण के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण नंदबाबा व ग्वालों के साथ अम्बिका वन में आए। उन्होंने अम्बिकेश्वर महादेव जी की पूजा की थी। अम्बिकेश्वर महादेव मंदिर आज भी आमेर में मौजूद है। अम्बिका वन में कृष्ण के साथ आए नंदबाबा को एक अजगर ने पकड़ लिया तब श्रीकृष्ण ने नंदबाबा को अजगर से मुक्त कराया। भागवत के अनुसार वह अजगर इन्द्र के पुत्र सुदर्शन के रूप में प्रकट हुआ। सुदर्शन ने श्रीकृष्ण को बताया कि उसने कुरूप ऋषियों का अपमान कर दिया था, इससे नाराज ऋषियों ने अजगर बनने का श्राप दिया। नाहरगढ़ पहाड़ी पर चरण मंदिर के नीचे सुदर्शन की खोळ और नाहरगढ़ में सुदर्शन मंदिर आज भी प्रसिद्ध है।
भागवत पुराण के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण नंदबाबा व ग्वालों के साथ अम्बिका वन में आए। उन्होंने अम्बिकेश्वर महादेव जी की पूजा की थी। अम्बिकेश्वर महादेव मंदिर आज भी आमेर में मौजूद है। अम्बिका वन में कृष्ण के साथ आए नंदबाबा को एक अजगर ने पकड़ लिया तब श्रीकृष्ण ने नंदबाबा को अजगर से मुक्त कराया। भागवत के अनुसार वह अजगर इन्द्र के पुत्र सुदर्शन के रूप में प्रकट हुआ। सुदर्शन ने श्रीकृष्ण को बताया कि उसने कुरूप ऋषियों का अपमान कर दिया था, इससे नाराज ऋषियों ने अजगर बनने का श्राप दिया। नाहरगढ़ पहाड़ी पर चरण मंदिर के नीचे सुदर्शन की खोळ और नाहरगढ़ में सुदर्शन मंदिर आज भी प्रसिद्ध है।
महाराजा मानसिंह ने बनाया था चरण मंदिर
पन्द्रहवीं शताब्दी में आमेर नरेश मानसिंह (प्रथम) ने चरण मंदिर को भव्य रूप दिया था। सवाई जयसिंह द्वितीय ने नाहरगढ़ पहाड़ी पर सुदर्शन गढ़ के नाम से किला बनवाना शुरू किया, लेकिन नाहरसिंह भोमिया जी के व्यवधान के कारण किले का नाम सुदर्शन गढ़ के बजाय नाहरगढ़ रखा गया। मान्यता है कि बृज से आमेर के नाहरगढ़ पहाडिय़ों के क्षेत्र में पहले कदम्ब के पेड़ों का घना वन भी था। चरण मंदिर के नीचे सुदर्शन की खोळ में श्रीकृष्ण के अति प्रिय कदम्ब के हजारों पेड़ आज भी मौजूद है। यहां स्थित कदम्ब कुंड में हजारों कदम्ब के पेड़ हैं।
पन्द्रहवीं शताब्दी में आमेर नरेश मानसिंह (प्रथम) ने चरण मंदिर को भव्य रूप दिया था। सवाई जयसिंह द्वितीय ने नाहरगढ़ पहाड़ी पर सुदर्शन गढ़ के नाम से किला बनवाना शुरू किया, लेकिन नाहरसिंह भोमिया जी के व्यवधान के कारण किले का नाम सुदर्शन गढ़ के बजाय नाहरगढ़ रखा गया। मान्यता है कि बृज से आमेर के नाहरगढ़ पहाडिय़ों के क्षेत्र में पहले कदम्ब के पेड़ों का घना वन भी था। चरण मंदिर के नीचे सुदर्शन की खोळ में श्रीकृष्ण के अति प्रिय कदम्ब के हजारों पेड़ आज भी मौजूद है। यहां स्थित कदम्ब कुंड में हजारों कदम्ब के पेड़ हैं।