जयपुर के सूर्य महल से आज गोविंददेवजी भक्तों को दर्शन दे रहे है। हालांकि सूर्य महल तक पहुंचने से पहले गोविंददेवजी के श्रीविग्रह 37 जगहों पर विराजित हुए। इस बीच मणिपुर में राधेरानी का श्रीविग्रह उनके साथ विराजित हुआ, आज भी मणिपुर में गोविंददेवजी का जवाई ठाकुर के नाम से मंदिर मौजूद है। जयपुर में सूर्य महल से पहले गोविंददेवजी कनक वृंदावन में विराजित हुए।
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भगवान श्रीकृष्ण के प्रपोत्र ब्रजनाभ की ओर से बनवाए गए तीन श्रीविग्रह उनके सम्पूर्ण साक्षात दर्शन करा रहे है। इनमें गोविंददेवजी के श्रीविग्रह जयपुर के आराध्य बन गए। एक ही शिला से बनाए गए श्रीकृष्ण के तीन विग्रह अलग—अलग रूप में पूजे जा रहे है। पहले श्रीविग्रह श्रीकृष्ण के चरणों के रूप में करौली में मदनमोहनजी के रूप में पूजे जा रहे है, वहीं दूसरे श्रीविग्रह श्रीकृष्ण के कटि व वक्ष स्थल के रूप में जयपुर की पुरानी बस्ती में पूजे जो रहे है। जबकि श्रीकृष्ण के मुखारविंद के रूप में शहर के आराध्य गोविंददेवजी सूर्य महल में पूजे जा रहे है।
एक ही शिला से बने तीन श्रीविग्रह…
गोविंददेवजी मंदिर महंत अंजन कुमार गोस्वामी की मानें तो जिस शिला पर कंस ने माता देवकी की संतानों का वध किया था, उसी शिला के तीन खंड करके श्रीकृष्ण के प्रपोत्र ब्रजनाभ ने अपनी दादी के कहे अनुसार तीन श्रीविग्रहों का निर्माण करवाया।
भक्तमाल की कथा सुन मिर्जा राजा मानसिंह हुए भक्त
जयपुर फाउंडेशन के संस्थापक अध्यक्ष सियाशरण लश्करी ने बताया कि गोविंददेवजी को गोमा टीला से प्रकट कर अपने आश्रम में ले आए, वहां झोपड़ी में विराजित किया। तब रूप गोस्वामी भक्तमाल की कथा करते थे, उस कथा को आमेर महाराज मिर्जा राजा मानसिंह सुनते थे। तब मिर्जा राजा मानसिंह ने उसी स्थान पर सात मंजिल का लाल पत्थर का मंदिर बनवा लिया। बंसत पंचमी के दिन ठाकुरजी के पाटे बिठाया गया।
जयपुर के राजा है गोविंददेवजी…
पूर्व राजपरिवार से जुड़ी दीया कुमारी का कहना है कि गोविंददेवजी सबके राजा है, आज भी सिटी पैलेस में सबसे उपर गोविंददेवजी का झंडा लगा हुआ है, उसके बाद राजपरिवार का झंडा है। गोविंददेवजी पहले भी राजा के रूप में पूज जाते है, आज भी राजा के रूप में पूज जाते है।
यूं जयपुर आए गोविंददेवजी….
जयपुर फाउंडेशन के संस्थापक अध्यक्ष सियाशरण लश्करी ने बताया कि औरंगजेब के समय वृंदावन में मूर्तियों व मंदिरों को खंडित करने के दौरान 16वीं सदी के अंत में श्रीकृष्ण के श्रीविग्रहों को आमेर नरेश के संरक्षण में वृंदावन से जयपुर लाया गया, जो 70 साल बाद कई स्थानों से होते हुए ठाकुरजी जयपुर पधारे। जयपुर में गोविंददेवजी सबसे कनक वृंदावन में विराजित किए गए। इसके 17 साल बाद जयपुर की नींव रखी गई। फिर गोविंददेवजी को कनक वृंदावन से वर्तमान जगह लाया गया। उन्होंने बताया कि सूर्य महल से पहले गोविंददेवजी 37 जगहों पर विराजित हुए। अब सूर्य महल 38वीं जगह है, जहां गोविंददेवजी गुलाबी नगरी के साथ देश-दुनिया से आने वाले लोगों को दर्शन दे रहे है।
मणिपुर में विराजित हुई गोविंददेवजी के संग राधे रानी
लश्करी बताते है कि सूर्य महल से पहले गोविंददेवजी 37 जगहों पर विराजित हुए, उनमें एक जगह मणिपुर भी है। मणिपुर के तत्कालीन राजा ने राधेरानी की प्रतिमा बनवाई, फिर उनका विवाह गोविंददेवजी के साथ करवाया। तक से गोविंददेवजी के साथ राधे रानी विराजित हुई। आज भी मणिपुर में गोविंददेवजी का जवाई ठाकुर के नाम से मंदिर है।