‘स्त्री कोई भूखंड नहीं’… कृष्णायन में स्वाति दूबे के निर्देशन में हुए नाटक ‘भूमि’ को दर्शकों ने खूब सराहा। नाटक की पटकथा महाभारत के वनपर्व से ली गई है। महाभारत युद्ध के पूर्व मित्रता यात्रा पर निकला अर्जुन, नागलोक होते हुए कांगला पहुंचता हैं। अर्जुन और चित्रांगदा का विवाह हो जाता है। चित्रांगदा को लिए बिना अर्जुन घर लौटते हैं। ‘वीरो को चाहिए कितनी भूमि पता नहीं, स्त्री कोई भूखंड नहीं’ जैसे संवादों से चित्रांगदा और स्त्रियों का दर्द जाहिर होता है। पांडवों के यज्ञ अश्व को बब्रुवाहन रोक लेता है। भीष्ण युद्ध के बाद वह अर्जुन को मारने ही वाला होता है कि चित्रांगदा बताती है कि अर्जुन उसका पिता है।
सुल्ताना के संघर्ष पर सब मौन पहला नाटक ‘काली सलवार’ सआदत हसन मंटो की कहानी को आधार मानकर लिखा गया है। मजबूरी के चलते जिस्मफरोशी कर पेट पाल रही ‘सुल्ताना’ के जीवन की कठिनाईयों को मार्मिक ढंग से नाटक में दर्शाया गया। वहीं ‘बड़े शहर के लोग’, बड़े-बड़े सपने लेकर मुंबई आने वाले छोटे शहरों के कलाकारों की कहानी है। जिसमें बताया कि स्क्रिप्ट राइटर विष्णु मुंबई आता है। वह एक लेखक के घर ही रहने लगता है। मकान मालिक को लकवा आने पर विष्णु उन्हीं की स्क्रिप्ट अपने नाम से प्रोड्यूसर को देता है। मुकाम पाने के बाद विष्णु को अहसास होता है कि उसने क्या खो दिया है। नाटक सीख देता है कि सफलता हासिल करनी है पर किस कीमत पर यह भी सोच लेना चाहिए।
‘धत्त तेरी गृहस्थी’ ने दिल को छुआ मध्यवर्ती में समाज के बड़े ज्वलंत मुद्दे को उठाया गया। गृहस्थी चलाने के लिए विवाह होता हैं, पर क्या हम शादी के बाद आने वाले बदलावों के लिए तैयार हैं, क्या बाद में महिला का स्वतंत्र अस्तित्व बरकरार रह पाएगा, क्या लड़के और लड़की के बीच प्रेम है या फिल्मी अंदाज में शादी के बाद प्रेम होने की आशा लिए आप बैठे है।
‘50 साल बाद मुझे सुना जा रहा है’ कहानी कुछ यूं है, शादी के सात साल बाद भी पति-पत्नी में झगड़े होते है। एक दूसरे को छोड़ने से पहले वह एक एनजीओ खोलते है, जहां कुंवारे लोग पति और पत्नी किराए पर लेकर शादी के बाद की चुनौतियों और बदलाव को पहले ही समझ सके। उनके एनजीओ से शादी के 50 साल पूरा कर चुका एक जोड़ा जुड़ता है, साथ ही एक प्रेमी जोड़ा भी जो शादी करने को लेकर असमंजस में है।