अकाली दल के बाद जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) ने भी दिल्ली चुनाव नहीं लड़ने का ऐलान किया है। जेजेपी का दावा है कि उसने चुनाव आयोग से चप्पल या चाबी चुनाव चिन्ह मांगा था, लेकिन दोनों नहीं मिला, इसलिए चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया गया है। चर्चा यह भी है कि जेजेपी ने जाट वोट बैंक के आधार पर बाहरी दिल्ली की कई सीटों पर अपना दावा ठोंका था, लेकिन भाजपा ने सीट देने से इनकार कर दिया। इसके बाद जेजेपी ने चुनाव न लड़ने का फैसला किया है।
खास बात यह है कि अकाली दल ने भाजपा का साथ सीएए के मुद्दे पर छोड़ा है जबकि भाजपा दिल्ली में इसे सबसे बड़े चुनाव हथियार के तौर पर इस्तेमाल कर रही है। सीएए को लेकर घर-घर जनजागरण अभियान चलाने से लेकर रैली कर रही है।
भाजपा से एक-एक करके अलग हो रहे सहयोगी भाजपा के सहयोगी एक एक करके उससे अलग होते जा रहे हैं। महाराष्ट्र में शिवसेना ने 25 साल पुरानी भाजपा से नाता तोड़कर कांग्रेस और एनसीपी का दामन थाम लिया, वहीं ऑल झारखंड स्टूडेंट यूनियन (आजसू) ने झारखंड विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा से गठबंधन तोड़ लिया था। दक्षिण भारत में भाजपा के एकमात्र सहयोगी सहयोगी रहे चंद्रबाबू नायडू ने तो 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले अलग होकर विपक्ष के साथ हाथ मिला लिया था। ऐसे में सहयोगी दलों का दूर होना भाजपा के लिए शुभ संकेत नहीं है।