जयपुर

अकाली के बाद जेजेपी ने किया चुनाव नहीं लड़ने का ऐलान

अकाली दल के बाद जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) ने भी दिल्ली चुनाव नहीं लड़ने का ऐलान किया है। जेजेपी का दावा है कि उसने चुनाव आयोग से चप्पल या चाबी चुनाव चिन्ह मांगा था, लेकिन दोनों नहीं मिला, इसलिए चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया गया है। चर्चा यह भी है कि जेजेपी ने जाट वोट बैंक के आधार पर बाहरी दिल्ली की कई सीटों पर अपना दावा ठोंका था, लेकिन भाजपा ने सीट देने से इनकार कर दिया। इसके बाद जेजेपी ने चुनाव न लड़ने का फैसला किया है।

जयपुरJan 21, 2020 / 05:08 pm

Prakash Kumawat

अकाली के बाद जेजेपी ने किया चुनाव नहीं लड़ने का ऐलान
भाजपा के सहयोगी दलों की बढ़ी नाराजगी
पहले अकाली ने तोड़ा नाता
अब जेजेपी ने किया चुनाव नहीं लड़ने का ऐलान
भाजपा के लिए बढ़ सकती है मुश्किलें
जयपुर
अकाली दल के बाद जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) ने भी दिल्ली चुनाव नहीं लड़ने का ऐलान किया है। जेजेपी का दावा है कि उसने चुनाव आयोग से चप्पल या चाबी चुनाव चिन्ह मांगा था, लेकिन दोनों नहीं मिला, इसलिए चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया गया है। चर्चा यह भी है कि जेजेपी ने जाट वोट बैंक के आधार पर बाहरी दिल्ली की कई सीटों पर अपना दावा ठोंका था, लेकिन भाजपा ने सीट देने से इनकार कर दिया। इसके बाद जेजेपी ने चुनाव न लड़ने का फैसला किया है।
दिल्ली में सोमवार के एक तरफ भाजपा के अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा की ताजपोशी हो रही थी, वहीं दूसरी तरफ भाजपा के दो दशक पुराने सहयोगी अकाली दल के सुर बदल रहे थे। अकाली दल ने कल भाजपा से दूरी बनाते हुए दिल्ली विधानसभा चुनाव से दूरी बनाने का एलान कर दिया। पिछले चुनावों में दिल्ली में अकाली दल और भाजपा हमेशा साथ मिलकर चुनाव लड़ते रहे हैं। लेकिन कल नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) को आधार बनाते हुए अकाली दल ने दिल्ली में भाजपा से दूरी बना ली। यहां अकाली दल का करीब आधा दर्जन सीटों पर प्रभाव है इनमें दिल्ली में राजौरी गार्डन, हरी नगर, तिलक नगर, जनकपुरी, मोती नगर, राजेंद्र नगर, ग्रेटर कैलाश, जंगपुरा और गांधी नगर सीट शामिल है।
खास बात यह है कि अकाली दल ने भाजपा का साथ सीएए के मुद्दे पर छोड़ा है जबकि भाजपा दिल्ली में इसे सबसे बड़े चुनाव हथियार के तौर पर इस्तेमाल कर रही है। सीएए को लेकर घर-घर जनजागरण अभियान चलाने से लेकर रैली कर रही है।

भाजपा से एक-एक करके अलग हो रहे सहयोगी

भाजपा के सहयोगी एक एक करके उससे अलग होते जा रहे हैं। महाराष्ट्र में शिवसेना ने 25 साल पुरानी भाजपा से नाता तोड़कर कांग्रेस और एनसीपी का दामन थाम लिया, वहीं ऑल झारखंड स्टूडेंट यूनियन (आजसू) ने झारखंड विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा से गठबंधन तोड़ लिया था। दक्षिण भारत में भाजपा के एकमात्र सहयोगी सहयोगी रहे चंद्रबाबू नायडू ने तो 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले अलग होकर विपक्ष के साथ हाथ मिला लिया था। ऐसे में सहयोगी दलों का दूर होना भाजपा के लिए शुभ संकेत नहीं है।

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