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अनुराग कश्यप के बड़े बोल- राजस्थानियों को बताया, स्वाभिमान के उत्पीडऩ का शिकार!

locationजयपुरPublished: Jan 27, 2018 03:20:50 pm

Submitted by:

dinesh

कुछ मुट्ठी भर लोग यह फैसला नहीं कर सकते कि देश के सभी लोगों को क्या पढऩा या देखना चाहिए…

anurag kashyap
जयपुर। प्रदेश में भले ही संंजय लीला भंसाली की विवादित फिल्म ‘पद्मावत’ सिनेमाघरों के पर्दे पर नजर नहीं आ पाई है, लेकिन ‘जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल‘ के दूसरे दिन शुक्रवार को कई सेशन्स में यह फिल्म छायी रही। फेस्टिवल के एक सेशन में निर्देशक और संगीतकार विशाल भारद्वाज ने कहा, भंसाली ने ऐसी फिल्म बनायी है जो कानून के दायरे के अंदर है। इसमें कुछ भी गैर कानूनी नहीं है।
किसी को हिंसा या प्रदर्शन का अधिकार नहीं
विशाल भारद्वाज ने कहा, हमारी चुनी हुई सरकार ही सेंसर बोर्ड का गठन करती है। सेंसर बोर्ड ने एक्सपट्र्स के एक पैनल को फिल्म दिखायी जिन्होंने कुछ आपत्तियां दर्ज कीं और निर्माताओं ने उनको मानकर फिल्म में सुधार किया। इसके बाद किसी को अधिकार नहीं है कि वह किसी भी तरह की हिंसा या प्रदर्शन करे। यह बेहद डरावना है कि सुप्रीम कोर्ट से पद्मावत को रिलीज करने की इजाजत मिलने के बाद भी लोग कानून को अपने हाथ में लेकर जगह-जगह हिंसा कर रहे हैं।
स्वाभिमान के उत्पीडऩ का शिकार हैं राजस्थान के लोग
फिल्म निर्माता अनुराग कश्यप ने कहा कि राजस्थान में लोग स्वाभिमान के उत्पीडऩ का शिकार हैं। लोग अब भी बीते हुए समय में जी रहे हैं और उनमें आगे बढऩे की कोई इच्छा नहीं है। वहीं एक्ट्रेस नंदिता दास ने कहा कि कुछ मुट्ठी भर लोग यह फैसला नहीं कर सकते कि देश के सभी लोगों को क्या पढऩा या देखना चाहिए।

नवाजुद्दीन से पूछे सवाल
जेएलएफ में पत्रिका इंपेक्ट सीरीज में ‘मंटो द मैन एंड द लीजेंड’ विषय पर फ्रंट लॉन में शुक्रवार को चर्चा हुई। चर्चा दोपहर 1 बजकर 40 मिनट से शुरू हुई जिसमें नंदिता दास और नवाजुद्दीन सिद्दीकी के साथ विनोद दुआ ने चर्चा की। इस दौरान फिल्म अभिनेता नवाजुद्दीन ने मंटो नामा को अपने अंदाज में पेश किया।
जेएलएफ के समानांतर साहित्य उत्सव
गुलाबी नगर में आज से शुरू हुआ जेएलएफ के समानांतर साहित्य उत्सव(पीएलएफ)। जनपथ स्थित यूथ हॉस्टल में आयोजित हो रहे पीएलएफ का उद्घाटन साहित्यकार नूर जहीर ने किया। समानांतर साहित्य उत्सव 27 से 29 जनवरी तक चलेगा। आयोजकों ने बताया कि जयपुर ? में राजस्थानी और हिंदी साहित्य को बढ़ावा देने वाले साहित्योत्सव की जरूरत महसूस की जा रही थी। जहां पर गरिमा के साथ साहित्य की बात हो सके। इसे देखते हुए पीएलएफ को शुरू किया गया है।
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