सेशन में दलित साहित्यकार मनोरंजन व्यापारी ने कहा कि जिस देश के संसाधनों और धन पर एक फीसदी लोगों के पास हो तो क्या होगा। उन्होंने खुद को अनपढ़ बताया और कहा कि कई बार पुलिस ने उन्हें फुटपाथ से उठाकर जेल में डाला गया। यदि शिक्षा मिलती तो शायद आज स्थिति कुछ और होती। उन्होंने कहा कि शिक्षा तो हर एक को मिलना चाहिए, अर्थशास्त्री सुखदेवो थ्रोट ने कहा कि देश की आधी आबादी महिलाओं की है, जबकि महज 12 फीसदी संसद में हिस्सेदारी है। वहीं मुसलमानों की आबादी करीब 14 फीसदी, लेकिन हिस्सेदारी 4 फीसदी भी नहीं। यह भेदभाव नहीं तो क्या है।
इसके साथ ही उन्होंने आरक्षण की वकालत की और कहा कि इस व्यवस्था को लागू करने में सरदार वल्लभ भाई पटेल और डॉ. अंबेडकर के विचारों में अंतर था। एक बार तो पटेल ने इस तरह की व्यवस्था करने से ही मना कर दिया था। बाद में बीच का रास्ता निकाल कर दस साल के लिए आरक्षण की व्यवस्था लागू की गई। 90 के दशक के बाद राजनीति में एकाएक अंबेडकर पर राजनीतिक दलों के प्रेम पर पूछे गए सवाल पर दक्षिण एशिया खासतौर पर भारत के राजनीति विशेषज्ञ क्रिस्टोफर जैफरीलोट ने कहा कि आरएएस और भाजपा का अंबेडकर से प्यार महज दिखावा और वोटबैंक के खातिर है। जब दलित वोट बैंक हासिल कर बसपा की मायावती ने उत्तर प्रदेश में सरकार बनाई तो भाजपा को अपना एजेंडा बदलना पड़ा और अंबेडकर के छाते के नीचे आना पड़ा। देश में हिन्दूत्व को बढ़ावा देना और कांग्रेस मुक्त का नारा अंबेडकर की विचारधारा के खिलाफ है।
जब अभी यह हाल तो आरक्षण हटा दिया तो क्या होगा क्रिस्टोफर जैफरीलोट ने कहा कि अभी जबकि राज्यसभा से लेकर हर जगह आरक्षण है। जब दलितों के हालात इतने बुरे हैं तो यह सोचना होगा कि आरक्षण हटा दिया इनका क्या हाल हो जाएगा। उन्होंने बोलने की आजादी समेत कई अन्य मुद्दों पर भी खुलकर विचार रखे।