ग्राहको को सस्ते दाम में बेच रहा था फर्म मालिक ने पूछताछ में बताया कि यह दवा बाजार में रक्षा पीपीआर के नाम से आती है, जिसकी कीमत 495 रुपए है। उसने दवाइयां ग्राहकों से 100 रुपए प्रति वायल में खरीदी है। औषधि नियंत्रक ने बताया कि फर्म मालिक ने इन दवाओं के लेबल उतारकर फर्जी लेबल लगाए थे। यह फर्जी लेबल कम्प्यूटर के जरिए तैयार करवाकर उन पर चिपकाता है और तीन सौ रुपए प्रति वायल के अनुसार ग्राहकों को बेचा देता था। इस प्रकार फर्जी लेबल चिपकी हुई दवा रक्षा पीपीआर बैच नंबर 01पीपीआर0178 की 32 वायल पाई गई, जिनमें से 24 वयल्स का नमूना जांच और परीक्षण के लिए लिया गया।
11 वायल्स जब्त
दवाइयों के बारे में यह पता नहीं चल पाया कि कहां से खरीदी गई है और किस व्यक्ति से प्राप्त की गई है। प्रथम दृष्टया नकली प्रमाणित होने पर दवा रक्षा पीपीआर और बायोपीपीआर के 11 वायल्स को जब्त किया गया।
दवाइयों के बारे में यह पता नहीं चल पाया कि कहां से खरीदी गई है और किस व्यक्ति से प्राप्त की गई है। प्रथम दृष्टया नकली प्रमाणित होने पर दवा रक्षा पीपीआर और बायोपीपीआर के 11 वायल्स को जब्त किया गया।
भेड़-बकरियों की बीमारी में आती है दवा काम
भेड़ों और बकरियों में पाई जाने वाली पेस्ट्डस पेटिट्स नामक बीमारी में काम आने वाली पीपीआर वेक्सीन, इंडियन इम्यूनोलिजकल लिमिटेड हैदराबाद से बनाई गई है। औषधि नियंत्रण अधिकारी द्वारा फर्म के मालिक तथा रजिस्टर्ड फार्मासिस्ट के विरूद्ध थाने में रिपोर्ट दर्ज करवाई है। साथ ही औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम 1940 के तहत मुकदमा दर्ज करवाया है।
भेड़ों और बकरियों में पाई जाने वाली पेस्ट्डस पेटिट्स नामक बीमारी में काम आने वाली पीपीआर वेक्सीन, इंडियन इम्यूनोलिजकल लिमिटेड हैदराबाद से बनाई गई है। औषधि नियंत्रण अधिकारी द्वारा फर्म के मालिक तथा रजिस्टर्ड फार्मासिस्ट के विरूद्ध थाने में रिपोर्ट दर्ज करवाई है। साथ ही औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम 1940 के तहत मुकदमा दर्ज करवाया है।