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कहानी-एक मसीहा

locationजयपुरPublished: Apr 24, 2021 04:02:06 pm

Submitted by:

Chand Sheikh

भावेश और भाविका की आंखें भर आई थीं। हॉल तालियों से गूंज रहा था। मंजरी खामोश खड़ी थी। तालियां बजे जा रही थीं। कजली सोच रही थी मैडम जी और साब तो सचमुच में महान हैं।

कहानी-एक मसीहा

कहानी-एक मसीहा

योगेश कानवा

उद्घोषिका ने अंग्रेजी में घोषणा करनी शुरू की थी। आरंभिक रस्म अदायगी हुई फिर एक अंतरराष्ट्रीय संस्था के हैडक्वार्टर न्यूयॉर्क से आए दो विशेष प्रतिनिधि स्टेज पर बनी कुर्सियों पर बैठ गए। स्टेज पर दो लोग और भी बैठे थे।
उद्घोषिका ने पुरस्कारों की घोषणा के साथ उनको प्राप्त करने वाले लोगों के नाम बोलने शुरू किए। पांच या छह लोगों के पुरुस्कार लेने के बाद प्रवाहिका का नंबर आया। सभी लोग हर पुरस्कृत व्यक्ति के लिए तालियां बजाकर खुशी जाहिर कर रहे थे। निहारिका ने भी खूब तालियां बजाई प्रवाहिका के लिए। और इसके बाद जो नाम पुकारा गया वह था कजली का। भावेश ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया था। जब कजली स्टेज पर आई पुरस्कार लिया और फिर उससे कुछ बोलने के लिए कहा गया तो वह बोली- ‘क्या बोलूंगी साब गलियों में बुहारी निकालने वाली, अपने सिर पर मैला ढोने वाली कजली को मैडम जी ने हवाई जहाज में बिठाकर यहां खड़ा कर दिया। कजली ने कभी ऐसा मान नहीं पाया। मैडम जी और आप सब का भगवान भला करे जो इस कजली को आज कजली जी बणा दिया।’
कजली की बात खत्म हुई। देर तक तालियां बजती रहीं। उसके नीचे आते ही भाविका ने उसे अपनी बांहों में भर लिया। उधर मंच से उद्घोषिका ने अब जो नाम पुकारा उस पर भावेश और भाविका ने कजली के साथ होने की खुशी के कारण खास गौर नहीं किया। अब मंच पर एक तांबई रंग की आकर्षक सुंदरी खड़ी थी। इस लड़की को यूनिवर्सल ग्रेट एचीवर अवॉर्ड से नवाजा जा रहा था। इसे पुरस्कार दिए जाने के दौरान पूरा हाल तालियों की आवाज से गूंज गया था। भाविका और भावेश अब कजली से फ्री होकर मंच की तरफ रुख कर चुके थे।
मंच पर मंजरी खड़ी थी। वही मंजरी जिसे भावेश चौराहे से उठा कर कोच्चि में अपने घर लाया था। पुरस्कार लेकर मंजरी ने बोलने की इच्छा व्यक्त की तो तालियों से उसका स्वागत किया गया। उसने बोलना शुरू किया – ‘लेडीज एंड जेंटलमेन, आई हेव दिस ग्रेट अपोरचुनिटी एंड दिस मोमेन्ट, डू यू नो व्हाई, लेटमी टेल माई ट्रूस्टोरी – बट आई थिंक आई मस्ट टेल माय स्टोरी इन माय आउन लेंग्वेज।’ उसको अंग्रेजी बोलते देख भावेश और भाविका को एक बार तो संदेह हुआ कि कदाचित यह कोई और मंजरी है। किंतु शक्ल वही, कद काठी भी वही, यह भ्रम तत्काल ही टूट गया। वह बोली – ‘धन्यवाद, यह पुरस्कार देने के लिए मैं आभार व्यक्त करती हूं। मैं अपना यह पुरस्कार समर्पित करना चाहती हूं उस व्यक्ति को जिसको मंैने अपने जीवन मे मसीहा का दर्जा दिया है। शायद आप लोग मेरे पति के लिए सोच रहे होंगे। यदि आप यही सोच रहे हैं तो आप लोग गलत सोच रहे हैं। उस व्यक्ति को केवल मैं ही नहीं मेरे पति भी भगवान की तरह मानते हैं।
कोच्चि के चौराहों पर भीख मांगने वाली लड़की जिसका हर कोई शोषण करता था। भिखारिन-सी जिंदगी और अभाव ही अभाव। फिर अचानक ही एक मसीहा उसी चौराहे पर आए और अपने पास बुलाया। अपना कार्ड दिया और अपने घर आकर मिलने के लिए कह गए। वह लड़की नहीं जानती थी कि क्यों जाए लेकिन अगली सुबह वह उस कार्ड वाले पते पर चली गई। उस मसीहा रूपी इंसान ने उसे अपने घर में जगह दी, मान-सम्मान दिया, काम दिया। जो पति के रूप में आज साथ हंै वह पुरुष भी उसी घर की मदद से मिला।
उन्होंने उस लड़की को ओपन स्कूल से बारहवीं पास करवाई तभी उनका तबादला उनके अपने शहर में हो गया था। लेकिन उस मसीहा ने जाते-जाते अपने दोनों नौकरों, उस लड़की और उसके साथ के लड़के को एक-एक लिफाफा दिया था जिसमें पच्चीस-पच्चीस हजार रुपए थे। यह निर्देश था कि वह पैसे उनके ग्रेजुएशन पूरा करने की फीस के लिए हैं। वे मेरी जिंदगी को निखारना चाहते थे, मुझो आगे बढ़ाना चाहते थे। जिस दिन मैं पहली बार उनके घर गई थी तब उन्होंने मेरे बारे में जानना चाहा था, तब मैं अक्खड़ बोली, मैं इंटरव्यू देने नहीं आई हूं।
दरअसल मेरी जिंदगी में कई तरह के मोड़ आए और मैंने अपने जीवन में काफी संघर्ष किया। जब मैंने दसवीं पास किया था तो मेरी मां पिता को छोड़कर किसी और व्यक्ति के साथ रहने लगी थी। उस आदमी की एक और बीवी थी। उसकी पहली पत्नी ने मेरी मां को समझााया कि लड़की को मुंबई भेज दो। मेरा भाई उसे नौकरी लगा देगा। वह अच्छा पैसा कमाएगी और लड़की का अच्छा कॅरियर बन जाएगा। मुझो नहीं पता था कि वो मेरी सौतेली मां मुझो अपने भाई के हाथों पच्चीस हजार रुपए में बेच चुकी थी। वह मेरा सौतेला मामा मुझो मुंबई – जी, इसी नगरी में लेकर आ गया था। चार-पांच दिन तो उसने मुझो ठीक से रखा, नौकरी ढूंढने का बहाना करता रहा और फिर मेरे साथ उसने बदसलूकी की। अगली सुबह ही उसने मुझो किसी दलाल के हवाले कर दिया था। वह दलाल मुझो छबीली के कोठे पर बेच आया था।
एक तरह से मेरी जिंदगी नर्क के मुहाने पर जा पहुंची थी। लेकिन एक दिन मैंने हिम्मत दिखाकर मौका पाकर मैं वहां से भाग निकली थी। बांद्रा पहुंच कर मैं एक ट्रेन में चढ़ गई। टे्रन चल पड़ी थी और उसने मुझो पहुंचा दिया था कोच्चि। वहां पर पेट की अगन को बुझााने के लिए मंै भीख मांगनी लगी थी। मेरे लिए अकेला रहना बेहद दूभर हो गया था। पुलिस वाले भी आते और मुझो परेशान करते। भीख मांग कर पेट पालना भी मेरे लिए मुश्किल हो गया था।
चौराहे की जिंदगी से मैं बेहद परेशान हो गई थी। लेकिन मैंने इसे अपनी नियति मान लिया था। मैंने कहा न वह इंसान के रूप में मेरी जिंदगी में मसीहा बनकर आए। हां उनका नाम भावेश साब है। सोशल रिसर्च डिपार्टमेंट में वे वहां डायरेक्टर थे। अपना यह पुरस्कार मैं अपने उसी मसीहा और उनकी पत्नी को समर्पित करती हूं। मैं नहीं जानती अभी वे कहांहैं, लेकिन वे जहां भी हों मैं हमेशा उन्हें दुआ ही देती रहूंगी। आज उन्हीं की बदौलत मैं पढ़ पाई, शादी हुई और आज आपके सामने हूं। मेरे पति और मेरा बेटा आज मेरे साथ ही हंै। खुशहाल पारिवारिक जीवन जी रही हूं।’
यह सब सुन भावेश और भाविका की आंखें भर आई थीं। वे भावुक हो गए थे। अब हॉल तालियों से गूंज रहा था और मंजरी खामोश खड़ी थी। अब उसी मंच पर न वह वहां से हट पा रही थी और न ही कुछ बोल पा रही थी। तालियां लगातार बजे जा रही थीं। दूसरी तरफ कजली … वह सोच रही थी मैडम जी और साब तो सचमुच में महान हैं।
धीरे-धीरे मंजरी मंच से नीचे आकर अपने स्थान पर बैठ गई। मंच से बोला जा रहा था अब आखिरी द यूनिवर्सल अवॉर्ड दिया जाता है मिसेज भाविका भावेश को। इनके लिए जोर से तालियां बजाएं।
भाविका का नाम बोला गया और भाविका चेतना शून्य- सी बैठी रही। एक बार फिर से उसका नाम पुकारा गया। इस बार कजली ने बोला-मैडम जी आपका ही नाम बोल रहे हैं। भाविका धीरे से उठी और मंच की तरफ चल दी। पुरस्कार लेकर वह बोली-‘मुझो बहत लंबा कुछ नहीं कहना है, बस मैं वह सौभाग्यशाली औरत हूं जिसको भावेश जैसा पति मिला है। एक अनाथ-सी लड़की को सहारा देकर अपनी जीवन संगिनी बनाने वाला, कजली की कहानी को अपने सीने से लगाए रखने वाला, मंजरी को मंजरी बनाने वाला मेरा पति भावेश। यह पुरस्कार मेरा नहीं सच में मेरे प्रिय पति भावेश का होना चाहिए। मुझो इस बात का फख्र है कि वे मेरे पति हैं। धन्यवाद।’
जैसे ही वह धन्यवाद बोली, अंतरराष्ट्रीय संस्था के न्ययॉर्क से आए अधिकारी ने उसे रोका और कहा-‘यह तो एक अविश्वसनीय स्टोरी है। इस खास मौके पर मैं उस महान मसीहा से गुजारिश करूंगा कि वे मंच पर आएं क्योंकि उनके काम अतुलनीय और प्रशंसनीय हैं।’
भावेश सधे कदमों से मंच की ओर चले और पीछे से मंजरी ने दौड़कर मंच पर ही अपने मसीहा के पैर छूकर वहीं बैठ गई। यह सब देख पूरा हॉल खड़ा होकर तालियों की गूंज के साथ भावेश, भाविका और मंजरी का सम्मान कर रहा था। भावेश शांत खड़ा भाविका की ओर देख रहा था।
मंच पर बैठे पदाधिकारियों ने आगे बढ़कर पहले मंजरी को उठाया फिर भावेश को अपने सीने से लगाया। आज भावेश की कत्र्तव्यनिष्ठा, ईमानदारी और इंसानियत को एक अधिकारी के इतर एक नई पहचान मिली थी, और मंजरी को उसका मसीहा।

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