उन्होंने कहा कि पिछले कई वर्षों से विधायकों के आवास के लिए फ्लैट बनाने की एक अव्यवहारिक और अनावश्यक योजना पर विचार चल रहा था। इस योजना की किसी भी विधायक अथवा किसी भी मंच से कभी भी मांग नहीं की गई। इन आवासों पर 2018—19 में सरकार और खुद विधायकों ने करोड़ों रुपए खर्च किए है। विधानसभा की ओर से दिनांक 31 जनवरी, 2020 को विधायकों को एक पत्र के माध्यम से ‘उक्त आवास को एक माह की अवधि में आवश्यक रूप से रिक्त करना है।’ लिखा गया था, लेकिन किसी भी विधायक ने इस पत्र की पालना नहीं की। तद्उपरान्त दिनांक 30 जून, 2020 को दूसरा पत्र भेजा जाकर आवास रिक्त करने के कुछ विकल्प सुझाते हुए 15 दिवस की निर्धारित अवधि तक विकल्प के अनुसार अपनी सहमति देने का अनुरोध किया गया था लेकिन किसी भी विधायक ने तद्नुसार सहमति नहीं दी।
सुविधाजन नहीं है नई लोकेशन उन्होंने कहा कि राजस्थान आवासन मण्डल के मानसरोवर और प्रतापनगर अपार्टमेन्ट के विधानसभा भवन से दूरी व लोकेशन की स्थिति विधायकों के लिए कतई सुविधाजनक नहीं है। अन्य कई जगह प्रथम तल के कुछ आवास रिक्त हैं, लेकिन उनमें जाने में भी विधायकों की कोई रुचि नहीं है। इससे स्पष्ट है कि वर्तमान आवास व्यवस्था से विधायक पूरी तरह से सन्तुष्ट हैं और वर्तमान आवासों को खाली करने को वे तत्पर नहीं है।
विधानसभाध्यक्ष पर दुराग्रह के आरोप उन्होंने कहा कि नए आवास फ्लैट्स की योजना के निर्माण के लिए विधानसभाध्यक्ष का दुराग्रह एक बड़ा कारण है। सत्ता पक्ष के प्रति उदार रवैये के कारण उन्हें अनुग्रहित करने के लिए वो इस योजना को येन-केन-प्रकरेण लागू करने को प्रयत्नशील है। मैंने इस विषय पर पूर्व में उन्हें पत्र लिखकर निवेदन किया था कि विधानसभा प्रशासन का विधायकों को सब तरह से सुविधाएं व राहत देने का प्रयोजन होना चाहिए। इस पत्र में मैंने कुछ प्रश्न भी उठाए थे।
खुली बहस के लिए तैार उन्होंने कहा कि विधायकों के लिए आठ मंजिला आवास कठिनाइयों भरा होगा। मैं किसी भी मंच पर बहस के लिए तैयार हूं। इस विषय पर खुली बहस होनी चाहिए, जिसमें विधायकों की राय भी आ जाए। उन्होंने कहा कि रिक्त आवासों तथा विधायकपुरी में 15 व गांधी नगर में 9 आवास रिक्त है, जो सभी प्रथम तल के हैं, इन्हें कोई भी विधायक लेने को तैयार नहीं है। इससे विधायकों की मानसिकता भूतल को ही प्राथमिकता सामने आती है।