केसरिया रंग में रंगे भक्त शिव भक्त केसरिया रंग में रंगे नजर आ रहे हैं। बारिश के ठण्डे मौसम और चारों तरफ हरियाली के बीच कावड़ यात्रा को लेकर अपने ईष्ट देव को मनाया जाता है। इस दौरान सड़कों पर बाबा के जयकारे गुंजते सुनाई देते हैं। डीजे की धुन पर नाचते गाते भक्त भगवान शिव को रिझाने के प्रयास में जुटे हैं। एक शिव ही तो है जो जल्द खुश होकर भक्तों की पुकार सुनते हैं। इसके चलते सावन के पहले दिन से ही यात्राओं का दौर शुरू हो चुका है। बच्चे, महिलाएं युवा व बुजुर्ग कावड़ यात्रा में शामिल हर शख्स शिव भक्ति में लगे हैं।
कावड़ की शुरुआत के पीछे ये कहानी पहली कावड़ यात्रा को लेकर अलग-अलग मान्यताएं है। लेकिन उत्तर भारत में भगवान परशुराम को पहला कावड़ माना जाता है। शास्त्रों की मानें तो भगवान परशुराम शिव उपासक बताए गए हैं। उन्होंने शिव की पूजा अर्चना के लिए भोलेनाथ का मंदिर बनवाया। इस बीच कांवड़ में गंगाजल भरकर पैदल चलकर शिव मंदिर पहुंचे और जलाभिशेक किया। इसके बाद से कावड़ यात्रा का दौर चल पड़ा, जहां श्रद्धालु गंगोत्री से जल पैदल लेकर शिवालयों तक पहुंचते हैं और जलाभिषेक करते हैं। दरअसल, कावड़ यात्रा गंगोत्री हरिद्वार गौमुख, गलता तीर्थ आदि स्थानों से जल लाकर शिवजी का अभिषेक करते हैं।
Read:राजस्थान के इस जिले में प्राचीन शिव मंदिर की अद्भुत लीला, हर मनोकामना होती है पूर्ण ये बरतें सावधानी कावड़ यात्रा के दौरान सड़क हादसे की खबरें लगातार आ रही है। इससे भगवान के दर पर गए भक्त के परिवार में दुखों का पहाड़ टूट पड़ता है। इससे बचने के लिए हर कावड़ यात्री को यातायात नियमों का विशेष ध्यान रखना चाहिए। सड़क के एक किनारे चलकर मंदिर तक पहुंचे। इस दौरान किसी तरह से यातायात को बाधित करने से बचें।