scriptकारगिल विजय दिवस 2018: शहीद मां कहती है- ‘बेटे का अगर होगा दूसरा जन्म, तो भी सेना में ही भेजूंगी’ | Kargil Vijay Diwas 2018: Martyr Shrawan Singh Shekhwat of Sikar | Patrika News

कारगिल विजय दिवस 2018: शहीद मां कहती है- ‘बेटे का अगर होगा दूसरा जन्म, तो भी सेना में ही भेजूंगी’

locationजयपुरPublished: Jul 23, 2018 03:39:04 pm

Submitted by:

Nakul Devarshi

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martyr shrawan singh
जीणमाता(दीपक पाराशर)।

सीकर जिले की हर्ष की पहाडिय़ों की तलहटी में बसे आंतरी गांव के मुख्य बाजार में बने शहीद के स्मारक में लगी श्रवण सिंह शेखावत की आदमकद प्रतिमा उस राह से गुजरने वालों को देश पर समर्पित होने की कहानी कहती है। शहीद के बारे में पूछने पर जिस सम्मान के साथ गांव के लोग बताते उससे लगता है कि गांव की गुवाड़ में दो दशक बाद भी श्रवण सिंह की शहादत ताजा है।
4 मई 1999 को देश के लिए शहीद हुये आंतरी गांव के 12 राजपूत रेजीमैण्ट के सेना मैडल विजेता सैनिक श्रवणसिंह शेखावत की गौरव गाथा 19 साल के बाद भी गांव की गुवाड़ में जिंदा है और लोग पूरे सम्मान से शहीद की यादों व बातों का जिक्र करते हैं।
शहीद स्मारक के ठीक सामने गली में बने शहीद श्रवण सिंह के मकान में प्रवेश करते ही सामने बैठी एक वृद्ध माता का गमगीन चेहरा देखकर यह महसूस किया जा सकता है कि अपने लाल को खोकर इस परिवार की पीड़ा आज तक बरकरार है।
शहीद की 70 वर्षिय माता दुर्गा कंवर का कहना है कि अपने 24 साल के लाल को खोने का दुख: पल-पल बना हुआ है लेकिन देश की सेवा के लिए जो कुल का मान बढ़ाया है। उसकी प्रशंसा लोगों से मुंह से सुनकर अच्छा लगता है। मां का कहना कि श्रवण हमेशा फौज में जाने की बाते करता था जब 1995 में फौज में भर्ती हुआ तो पिता ने यह कहकर भेजा था कि कभी पीठ मत दिखाना लेकिन पता नहीं था कि पिता की बात को अपने प्राण देकर पूरी करेंगा।
मां का कहना है कि एक बार सरकार से मदद मिली थी और अब बुढ़ापा बेटे की याद में ही कट रहा है। बेटे के फौज में जाने के कुछ समय बाद ही श्रवण के पिता दुनिया से चल बसे थे और फिर बेटा भी 4 साल की फौज की नौकरी के बाद अचानक साथ छोड़ कर चला गया।
मां का कहना था कि परिवार का सबसे छोटा बेटा श्रवण पढऩे में होशियार था और बचपन में फौज में जाकर देश की सेवा करने की बाते करता था शहीद होने से पहले असम से जब कश्मीर चला गया तो मुझे तो कारगिल युद्ध की कोई जानकारी नही थी लेकिन उन दिनों मन बैचेन रहता था और एक दिन गांव में कुछ फौजियेां की गाडिय़ा व सरकारी अफसरों को देखकर मन में अनिष्ठ होने का भय बेटे के शव के रूप में सामने आ ही गया।
मां कहती है कि जब मन करता है श्रवण की मूर्ति के पास जाकर आंसू बहा लेती हूं। श्रवण की पत्नी सरकारी नौकरी लग जाने के कारण बाहर रहने लगी है अब तो केवल श्रवण की तस्वीर है अंतिम निशानी है। सरकार के लोग कई बार घर आते है तब बेटे की खूब बढ़ाई करते है। तब मन करता है कि दुबारा श्रवण ने जन्म लिया तो उसे फौज में जरूर भेजूंगी। सरकार से मांग करते हुए उन्होंने कहा कि गांव में कोई बस नहीं आती है यदि बस चल जाये तो गांव वालों को सुविधा हो जायेगी।
शहीद की भाभी संतोष कंवर का कहना कि श्रवण के कारण परिवार के सभी लोग गर्व महसूस करते है परिवार की बच्चियां रोजाना शहीद स्मारक में लगी मूर्ति पर धूप बती करने जाती हैं। पूण्य तिथि पर 4 मई को सब एकत्रित होकर श्रवण सिंह श्रद्धाजंली देते है तब मन भावुक हो जाता है।
शहीद के नाम पर गांव में शहीद श्रवण सिंह शेखावत माध्यमिक विद्यालय में सैकड़ों बच्चे अध्ययनरत हैं। विद्यालय के प्रधानाध्यापक रामचंद्र खीचड़ ने बताया कि विद्यार्थियों को समय समय पर शहीद के बलिदान के बारे बताते हैं। अध्यापक जोधाराम मीणा व कनिष्ठ लिपिक मुकेश ताखर का कहना ने बताया कि शहीद वीरांगना ने शहीद की मूर्ति अनावरण समारोह में तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के समक्ष गांव के प्राथमिक स्कूल को क्रर्मोन्नत करने की मांग की तो सरकार ने प्राथमिक से मिडिल और उसके दो दिन बाद माध्यमिक स्कूल बनाने के आदेश दे दिए।
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