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कारगिल विजय दिवस 2018: राजस्थान के इन गांवों में सेना में जाना है परम्परा, दादा-पिता-पोता हर कोई है सेना में

locationजयपुरPublished: Jul 23, 2018 01:07:39 pm

Submitted by:

Nakul Devarshi

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kargil diwas
जयपुर/जोधपुर/ नागौर।

26 जुलाई, कारगिल विजय दिवस। स्वतंत्र भारत के लिए एक महत्वपूर्ण दिन। लगभग 60 दिनों तक चला कारगिल युद्ध 26 जुलाई के दिन ही ख़त्म हुआ था। पाकिस्तान के साथ हुए इस युद्ध में भारत की विजय हुई थी। तब से लेकर आज तक इस विशेष दिन को कारगिल युद्ध में शहीद हुए जवानों के सम्मान के लिए मनाया जाता है।
कारगिल युद्ध एक जीता जागता उदहारण हैं देश के लिए मर मिटने वाले वीर सैनिकों के अदम्य साहस का। कारगिल जैसे ही कई युद्ध में राजस्थान के रणबांकुरों की भूमिका भी महत्वपूर्ण रही है। न जाने कितने ही सपूत देश के लिए सरहद पर जान न्यौछावर कर चुके हैं। आज भी सैंकड़ों-हज़ारों की संख्या में मरुधरा के युवा सैन्य टुकड़ियों में शामिल होकर देश की हिफाज़त कर रहे हैं। राजस्थान में जोधपुर ज़िले का सालवा कलां गांव हो या नागौर के खींवसर की पांचलासिद्धा पंचायत। राजस्थान के ये गांव देशभक्ति और देश सेवा के लिए मिसाल बने हुए हैं।

सालवा कलां गांव: दादा-पिता-पोता, हर कोई सेना में!

जोधपुर जिले के सालवा कलां गांव के हर घर से एक न एक सपूत या तो मातृभूमि की सेवा कर रहा है या सेवा कर चुका है। इस गांव के तीन सपूतों की शहादत भी यहां के युवाओं में देशभक्ति का जज्बा फूंकती है। जिले के इस अनूठे गांव में हर सुबह युवाओं की भीड़ पूरे जोश के साथ सेना में जाने के लिए मेहनत करती नजर आ जाती है। जिले का यह गांव वीर जवान देने के मामले में खास है। कई परिवारों की पीढिय़ां सेना में रही हैं।
दादा भी सेना में, पिता भी और पोता भी। सेना में जाना मानो यहां की परम्परा बन गई है, जिसे निभाने के लिए युवा दिलों जान से जुटे रहते हैं। हर हाल में हर वर्ष सेना में चुने जाने का जुनून सालवा कलां को देश के अनगिनत गांवों से अलग कर देता है। यही वजह है कि इस गांव से कई पूर्व सैनिक अपनी सेवाएं पूरी कर चुके हैं और लगभग सैंकड़ों वीर भारतीय सेना, वायुसेना व नौसेना में अपनी सेवाएं दे रहे हैं।
पांचलासिद्धा पंचायत: जहां बच्चे-बच्चे में कूट-कूटकर भरी है देश भक्ति
मन में देश के लिए अटूट प्रेम और आंखों में सरहद पर बुरी नजर रखने वालों के खिलाफ आक्रोश। देश पर विपदा की आहट की चर्चा मात्र सुनते ही खून खौल उठता है, हर जवान का। देश के प्रति समर्पण ने एक-दो सैनिक नहीं बल्कि पूरे गांव को सैनिक नगर में तब्दील कर दिया है। यहां के हर व्यक्ति ही नहीं बच्चे में भी देश भक्ति की भावना कूट-कूट कर भरी है।

नागौर के खींवसर तहसील के पांचलासिद्धा पंचायत के इस सैनिक नगर में प्रवेश करते ही यहां की जीवंत तस्वीर देश प्रेम की कहानी बयां कर देती है। गांव के करीब कई युवा भारतीय सेना में है। बताया जाता है कि यहां के लगभग हर घर का जवान देश की रक्षा के लिए सीमा पर तैनात है। देश प्रेम एवं स्वाभिमान का जीवंत उदाहरण यहां सैनिक नगर में देखने को मिल रहा है।
प्रथम विश्व युद्ध से लेकर वर्तमान तक यहां के लाडलों ने अपने पराक्रम के बूते अनेक पद, तमगे एवं सम्मान प्राप्त किए हैं। यहां के अनेक सैनिकों को ब्रिटिश फोर्स में शौर्य दिखाने पर तत्कालीन सरकार की ओर से विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित भी किया जा चुका है।
शिक्षा के साथ सेना की दीक्षा
यहां के बच्चों को क, ख, ग… की पढ़ाई के साथ सेना में जाने की दीक्षा भी दी जाती है। बच्चों में एक ही भाव पैदा किया जाता है कि धरती माता एवं देश की रक्षा करना उनका पहला धर्म है। यहां बच्चों में पढ़ाई के साथ हर समय मन में सेना में भर्ती होने की तमन्ना रहती है। बच्चों में भी देश भक्ति की भावना कूट-कूट कर भरी है।
विश्व युद्ध में दिखाया शौर्य
वर्ष 1914 से 1919 तक लड़े गए प्रथम विश्व युद्ध में गांव के रणजीतसिंह, पन्नेसिंह व जोगसिंह वीरगति को प्राप्त हो गए थे। इसी प्रकार वर्ष 1939 से 1945 तक लड़े गए दूसरे विश्व युद्ध में रूपसिंह, कानसिंह सोनगरा, सबतसिंह चौहान दुश्मनों से लड़ते हुए शहीद हो गए।
रसलदार मूलसिंह व भींवसिंह ने भी प्रथम विश्व युद्ध में एवं सुबेदार जगमाल सिंह, राजूराम, अर्जुनराम ने द्वितीय विश्व युद्ध में अपना पराक्रम दिखाया। उस सेना का वह अंग वर्तमान में राजपूताना बटालियन के नाम से जाना जाता है।
वीरांगनाएं दे रही सीख
यहां की वीरांगनाओं में अपने पति की शहादत का गम जरूर है। लेकिन देश की रक्षा के जुनून के और पति की शहादत के सामने उनकी क्षति गौण हो जाती है। वे अपने बच्चों को एक ही सीख देती है कि मरना तो एक दिन सभी को है लेकिन जो देश के लिए कुछ कर जाए वहीं सच्चा देश भक्त है। गांव के करीब 22 सूबेदारों तथा देश के लिए प्राणों का उत्सर्ग करने वाले सैनिकों की विधवाएं आने वाली पीढी को भी देश सेवा की सीख दे रही हैं।
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