भारतीय सुरक्षा एजेंसियों को मिले इनपुट के मुताबिक इसमें आतंकियों के लिए काम करने वाले ओजीडब्लयू शामिल हैं। जो कहीं भी हमलाकर आसानी से आम लोगों में घुलमिल जा रहे हैं। यही वजह है कि वह आसानी से पकड में नहीं आ रहे हैं। इससे आम लोगों में दहशत भी हो जा रही है और आईएसआई को कोई विशेष मशक्कत भी नहीं करनी पड रही है।
गौरतलब है कि सिमी की स्लीपर सेल इसी तरह आईएसआई के इशारे पर टिफिन बम, साइकिल बम रखकर गायब हो जाती थी। इसमें आम नागरिक मारे जाते थे। सेल को इस तरह से डिजायन किया गया था कि एक आदमी अगर पकडा भी जाए तो दूसरे को पकडना मुश्किल हो जाता है। यह आम लोगों की तरह ही तब तक जिंदगी जीते थे जब तक आईएसआई से दूसरा आर्डर ने मिल जाए।
जमात-ए-इस्लामी से आईएम तक सिमी की नींव 1956 में बने जमात-ए-इस्लामी पर प्रतिबंध लगने के बाद 1977 में पडी। जमात—ए—इस्लामी ही वह संगठन है कश्मीर में सबसे ज्यादा जहरीली वैचारिक जडे फैली हुई हैं। इसका अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि पोस्टर आंतकी बुरहान वानी का पिता का इस संगठन से गहरा जुडाव था। इसी जुडाव ने उसके बेटे को आतंकी के रूप में पनपाया। ऐसे में कोई बडी बात नहीं है कि घटती ताकत, पैसा और हथियार के कारण जमात—ए—इस्लामी के आतंकी सिमी की चाल पर आतंक फैलाने में लगे हों।
टीआरएफ ले रहा जिम्मेंदारी लेकिन असली कौन
आतंकी संगठन टीआरएफ घाटी में हुई घटनाओं की जिम्मेंदारी ले रहा है लेकिन कश्मीर के रहने वाले एक पत्रकार का कहना है टीआरएफ को लश्कर का किलिंग स्कवायड तो इसे कहा जा रहा है लेकिन असल में यह कौन है। यह किसी को पता नहीं है। बताया जाता है आईएसआई के इशारे पर लश्कर ने इसे स्थानीय रंग देने और एफएटीएफ के प्रतिबंध से बचने के लिए अनुच्छेद 370 के बाद बनाया है।
घाटी में दस दिन का अवकाश
कश्मीर की घाटी में हुई हत्याओं के कारण पूरी घाटी दहशत में है। टारगेट किलिंग के कारण सरकारी विभागों ने कश्मीरी हिंदुओं को घाटी में दस दिन के लिए घर पर रहने को कह दिया है। पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा कि हिंदुओं के साथ सिखों को भी छूट दी जानी चाहिए। कश्मीरी हिंदुओं के साथ वह सरकारी मुस्लिम कर्मचारी भी दहशत में है जो सरकार के साथ संवेदलशील पदों पर काम कर रहे हैं।