सी.एस. शर्मा ‘शेखर’ तपते सूरज के बीच
झाुलसते रेगिस्तान में
सावन को रिझााकर
बादलों को बरसने का
हुनर आ गया। तार-तार होते रिश्तों में
जीवन की सांझा तले
दिल को बहलाकर
अपनों को तराशने का
हुनर आ गया। काली स्याह रातों में
मन की गुत्थी भुलाकर
उलझानों में ही सुलझाकर
उमंगों में सवेरा करने का
हुनर आ गया।
झाुलसते रेगिस्तान में
सावन को रिझााकर
बादलों को बरसने का
हुनर आ गया। तार-तार होते रिश्तों में
जीवन की सांझा तले
दिल को बहलाकर
अपनों को तराशने का
हुनर आ गया। काली स्याह रातों में
मन की गुत्थी भुलाकर
उलझानों में ही सुलझाकर
उमंगों में सवेरा करने का
हुनर आ गया।
वफा की ये खामोशियां
जुबां को सिल देती हैं
कैद की जकडऩ तोड़कर
अल्फाज को रिहाई का
हुनर आ गया। चाहतों की लहरों संग
अतीत के मायाजाल में
तनहा नदियों को भी
सागर से मिलने का
हुनर आ गया।
जुबां को सिल देती हैं
कैद की जकडऩ तोड़कर
अल्फाज को रिहाई का
हुनर आ गया। चाहतों की लहरों संग
अतीत के मायाजाल में
तनहा नदियों को भी
सागर से मिलने का
हुनर आ गया।
—————————————– गजल राम नारायण हलधर जॉब- व्यापार खा गया कोविड
तीज त्यौहार खा गया कोविड आदमी आदमी से डरता है
प्रेम व्यवहार खा गया कोविड कब तलक दूरियां निभाएं हम
इश्क के तार खा गया कोविड
तीज त्यौहार खा गया कोविड आदमी आदमी से डरता है
प्रेम व्यवहार खा गया कोविड कब तलक दूरियां निभाएं हम
इश्क के तार खा गया कोविड
अस्त्र और शस्त्र सब निरर्थक हैं
सारे हथियार खा गया कोविड कोई हंसता न मुस्कराता है
जीस्त का सार खा गया कोविड फिक्र रहती है अब बुज़ुर्गों की
पेड़ फलदार खा गया कोविड
सारे हथियार खा गया कोविड कोई हंसता न मुस्कराता है
जीस्त का सार खा गया कोविड फिक्र रहती है अब बुज़ुर्गों की
पेड़ फलदार खा गया कोविड
अब कहां जाएं क्या करें साहिब
अपना घर बार खा गया कोविड मास्क चंदा लगाए रहता है
रूप सिंगार खा गया कोविड
अपना घर बार खा गया कोविड मास्क चंदा लगाए रहता है
रूप सिंगार खा गया कोविड