जयपुर राजघराने के अधीन था किला
गढ़ हिम्मतसिंह का यह किला जयपुर राजघराने के अधीन था और यहां की सेना जयपुर राजघराने के अधीन दुश्मनों से युद्ध लड़ने जाया करती थी। गढ़हिम्मतसिंह किले को जब विजयसिंह ने संभाला तो उनकी उम्र मात्र चौदह वर्ष थी, लेकिन उनकी सोच बड़ी थी।
गढ़ हिम्मतसिंह का यह किला जयपुर राजघराने के अधीन था और यहां की सेना जयपुर राजघराने के अधीन दुश्मनों से युद्ध लड़ने जाया करती थी। गढ़हिम्मतसिंह किले को जब विजयसिंह ने संभाला तो उनकी उम्र मात्र चौदह वर्ष थी, लेकिन उनकी सोच बड़ी थी।
किले के बीचों-बीच रखी है भवानी तोप
किले के बीचों बीच भवानी तोप रखी हुई है। किले में रह रही पीढ़ी ठाकुर हिम्मतसिंह की सत्रहवीं पीढ़ी है और किले में रह रहा परिवार अब पर्यटन क्षेत्र से जुड़ चुका है।
विदेशी पर्यटकों को कराते हैं रूबरू
किले में आने वाले विदेशी पर्यटकों को ग्रामीण सभ्यता से रूबरू कराकर किले में ही बने कमरों में ठहराया जाता है। साथ ही किले में ठाकुर विजयसिंह को भौमिया के रूप में पूजा जाता है। इस स्थान पर आकर स्थानीय निवासी सहित बाहर से ग्रामीण मन्नत मांगने आते हैं। मन्नत पूरी होने पर प्रसादी वितरण का आयोजन किया जाता है।
रिंग पैलेस में तैयार होती थी रणनीति
किले के अन्दर सीक्रेट कांफ्रेस रूम अर्थात रिंग पैलेस बनवाया। जिसमें डबल दीवार बनवाई गई थी।
किले के अन्दर सीक्रेट कांफ्रेस रूम अर्थात रिंग पैलेस बनवाया। जिसमें डबल दीवार बनवाई गई थी।