स्टेम सेल तकनीक से बनाया नया कार्टिलेज
बीमारी को ठीक करने के लिए दो चरणों में मरीज का इलाज किया गया। डॉ. ललित ने बताया कि पहले चरण में हमने मरीज की सभी मृत हड्डियों को हटा दिया और पास की टीबिया बोन से कुछ हिस्सा लेकर वहां प्रत्यारोपित कियागया। हमने घुटने के जोड़ से कार्टिलेज का छोटा टुकड़ा लिया और उसे स्टेम सेल तकनीक से बढ़ाने के लिए लैब में भेजा। एक महीने बाद जब उचित मात्रा में सेल्स मिले तो दूसरे चरण की सर्जरी की गई जिसमें कार्टिलेज कोशिकाओं को प्रभावित हिस्से में ट्रांसप्लांट किया गया। इससे घुटने का जोड़ बिल्कुल सामान्य रूप से काम करने में सक्षम हो गया और मरीज सभी गतिविधियां आराम से करने लगा।ट्रांसप्लांट किये गए कार्टिलेज मरीज के शरीर से ही लिया गया, इसीलिए यह सर्जरी के बाद प्राकृतिक रूप में ही कार्य करते हैं और मरीज को किसी तरह की समस्या नहीं होती।
बीमारी को ठीक करने के लिए दो चरणों में मरीज का इलाज किया गया। डॉ. ललित ने बताया कि पहले चरण में हमने मरीज की सभी मृत हड्डियों को हटा दिया और पास की टीबिया बोन से कुछ हिस्सा लेकर वहां प्रत्यारोपित कियागया। हमने घुटने के जोड़ से कार्टिलेज का छोटा टुकड़ा लिया और उसे स्टेम सेल तकनीक से बढ़ाने के लिए लैब में भेजा। एक महीने बाद जब उचित मात्रा में सेल्स मिले तो दूसरे चरण की सर्जरी की गई जिसमें कार्टिलेज कोशिकाओं को प्रभावित हिस्से में ट्रांसप्लांट किया गया। इससे घुटने का जोड़ बिल्कुल सामान्य रूप से काम करने में सक्षम हो गया और मरीज सभी गतिविधियां आराम से करने लगा।ट्रांसप्लांट किये गए कार्टिलेज मरीज के शरीर से ही लिया गया, इसीलिए यह सर्जरी के बाद प्राकृतिक रूप में ही कार्य करते हैं और मरीज को किसी तरह की समस्या नहीं होती।