राजस्थान की धरती में ऐसे भी वीर सपूत पैदा हुए जिन्होंने तपती रेत से होकर झूलसती लू तक को भी अपने आगे ठिकने नहीं दिया। इनमें से कुछ आजादी के दीवाने थे, तो कुछ समाज के लिए खुद को समर्पित कर देने वाले योद्धा थे। इनके इरादे इतने बुलंद थे, कि कोई भी कठिनाई इनके लिए तिनके सी लगती थी।
जोरावर सिंह-
1857 की क्रांति विफल होने के बाद जहां एक ओर अंग्रेज खुद को विश्व में अजेय समझने लगे थे, तो वहीं दूसरी ओर राजस्थान में ऐसे कई आजादी के सिपाही अपना सबकुछ देश के लिए न्यौछावर कर देने के लिए तैयार थे। उनमें से एक थे जोरावर सिंह बारहठ। इनके परिवार में सभी क्रांतिकारी थे, इनके भाई केसरी सिंह बारहठ और पुत्र प्रताप सिंह जिनसे अंग्रेज भी खौफ खाते थे। साल 1912 में जोवार सिंह ने लार्ड हार्डिंगस पर बम फेका था। तब इन्हें पकड़ने के लिए अंग्रेजी हकूमत ने कई इनामी घोषणाएं की, लेकिन ये अंतिम सांस तक अंग्रेजों के हाथ नहीं आए।
गोकुलभाई भट्ट-
गोकुलभाई भट्ट को राजस्थान के गांधी के नाम से भी जाना जाता है। सन् 1899 में इनका जन्म सिरोही के हाथल गावं में हुआ था। इन्होंने आजादी की लड़ाई में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते हुए सिरोही में प्रजामण्डल की स्थापना की। बाद में साल 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में इन्होंने सक्रिय भूमिका निभाते हुए कई बार जेल गए। इतना ही नहीं विदेषी वस्त्रों की होली, नमक सत्यागह, मद्यपान निषेध गतिविधियों में भी इनका अहम नेतृत्व रहा। इनकी मृत्यु साल 1986 में हो गई।
जमनालाल बजाज-
आजादी की लड़ाई में इनका भी अहम योगदान माना जाता है। इनकी ख्याती का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इन्हें राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का पांचवा पुत्र भी कहा जाता है। इनका जन्म राजस्थान के सिकर में नवम्बर,1889 को हुआ था। आजादी के लड़ाई में योगदान देते हुए इन्होंने जयपुर और सीकर प्रजामण्डलों को गति दी। साल 1918 में जमनालाल बजाज ने अंग्रेजो से मिली राय बहादुर की उपाधि लोटाते हुए स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई को गति देना ज्यादा बेहतर समझा।
मोतीलाल तेजावत-
इनका जन्म उदयपुर के कोलियार गांव में हुआ था। यह एकी आंदोलन के प्रणोता माने जाते थे। आदिवासियों के बीच मोतीलाल बावजी के नाम से प्रसिद्ध थे। आगे चलकर इन्होंने गांधीजी से प्रेरणा लेते हुए वनवासी संघ की स्थापना की। इतना ही नहीं इन्हें राजस्थान में भील क्रांति रे प्रणेता के तौर पर भी जाना जाता है।
स्वामी केशवानन्द-
स्वामी केशवानन्द को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी के साथ-साथ एक समाज सुधारक के रुप में भी जाना जाता है। इनकी कर्मस्थली बीकानेर मानी जाती है। इनका जन्म 1883 और मृत्यु 1972 हो गई। इन्होंने उदासी मत के गुरु कुशलनाथ से दीक्षा ली। जिसके बाद ये केशवानन्द कहलाए। संगरिया (हनुमानगढ़) में ग्रामोत्थान विद्यापीठ की स्थापना के साथ-साथ केशवानन्द ने हिंदी का प्रचार प्रसार में अपनी अहम भूमिका निभाई।
केसरी सिंह बारहठ- केसरी सिंह बारहठ का जन्म भीलवाड़ा के शाहपुरा में हुआ था। जैसा कि इनके भाई जोवार सिंह देश की आजादी के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर चुके थे। उसी तरह केसरी सिंह बारहठ का भी मकसद वतन की आजादी ही था। आजादी की लड़ाई के दौरान ही इन्होंने अभिनव भारती संस्था की स्थापना की। और उसके बाद आजादी की लड़ाई को आगे बढ़ाने के लिए भारत सभा की स्थापना साल 1910 की। इनकी प्रमुख प्रमुखकृतियों में राजस्थान का केसरी का नाम प्रमुख रुप से लिया जाता है।
सागरमल गोपा-
धरती के वीर सपूत कहे जाने वाले सागरमल गोपा का जन्म जैसलमेर में हुआ था। इनका जन्म 3 नवंबर 1900 को एक संपन्न ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनके पिता अखेराज गोपा महारावल के दरबार में उच्च पद पर आसीन थे। इनके सामय में वहां के शासक जवाहरसिंह थे। उस दौरान शासक और अंग्रेजी हकूमत से परेशान पीड़ित जनता का इन्होंने आगे बढ़कर नेतृत्व किया। आजादी के दीवाने सागरमल गोपा भिड़ गए अंग्रेजी शासन और दरबार से। बाद में इन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। कहा जाता है कि इनपर राजद्रोह का मुकदमा चला और जेल में ही मिट्टी का तेल डालकर जला दिया गया।