सालों से चल रहा है विवाद
महापौर ने नगरीय विकास, आवासन एवं स्वायत्त शासन विभाग के 15 अप्रेल 2010 के आदेश का भी हवाला दिया है। इस आदेश में कहा गया है कि राजस्थान आवासन मण्डल द्वारा विकसित योजनाओं को निगम को हस्तांतरित करने के दौरान अवस्थित विक्रय योग्य सभी सम्पत्तियां भी हस्तांतरित की जाएंगी। हस्तांतरण के बाद इन सम्पत्तियों के बेचान से प्राप्त 100 फीसदी राशि निगम की रहेगी। हस्तांतरित की जाने वाली कॉलोनियों की सभी पत्रावलियां भी संबंधित निकाय को दी जाएंगी। नगरीय विकास विभाग का 21 अगस्त 2012 के आदेश का भी हवाला दिया है जिसमें अंकित है कि हस्तांतरित योजनाओं में अतिक्रमण, अनधिकृत निर्माण हटाने, सैटबैक वॉयलेशन रोकने, नक्शा स्वीकृत करने सहित अन्य कार्यवाही स्थानीय निकाय ही करेगा।
महापौर ने नगरीय विकास, आवासन एवं स्वायत्त शासन विभाग के 15 अप्रेल 2010 के आदेश का भी हवाला दिया है। इस आदेश में कहा गया है कि राजस्थान आवासन मण्डल द्वारा विकसित योजनाओं को निगम को हस्तांतरित करने के दौरान अवस्थित विक्रय योग्य सभी सम्पत्तियां भी हस्तांतरित की जाएंगी। हस्तांतरण के बाद इन सम्पत्तियों के बेचान से प्राप्त 100 फीसदी राशि निगम की रहेगी। हस्तांतरित की जाने वाली कॉलोनियों की सभी पत्रावलियां भी संबंधित निकाय को दी जाएंगी। नगरीय विकास विभाग का 21 अगस्त 2012 के आदेश का भी हवाला दिया है जिसमें अंकित है कि हस्तांतरित योजनाओं में अतिक्रमण, अनधिकृत निर्माण हटाने, सैटबैक वॉयलेशन रोकने, नक्शा स्वीकृत करने सहित अन्य कार्यवाही स्थानीय निकाय ही करेगा।
कई बैठकें, मंत्री भी नहीं सुलझा सके विवाद
जेडीए और नगर निगम के बीच भी आपसी विवाद है। जेडीए ने 600 से ज्यादा कॉलोनियां निगम को हस्तांतरित तो कर दीं लेकिन विकास कार्यों के लिए राशि नहीं दी। निगम ने भी इन कॉलोनियों में काम कराने से कन्नी काट ली। ऐसे में 1.50 लाख से ज्यादा आबादी विकास को तरस रही है। जबकि जेडीए और निगम के बीच 45 से ज्यादा बार पत्राचार हो चुका है। निगम ने 200 करोड़ रुपए मांगे लेकिन जेडीए ने उलटे 35 करोड़ रुपए बकाया निकाल दिए। इस बीच स्वायत्त शासन व नगरीय विकास मंत्री श्रीचंद कृपलानी के साथ कई बैठकें हुईं, निर्देश दिए गए लेकिन जेडीए, नगर निगम व आवासन मण्डल के बीच विवाद खत्म नहीं हुआ।
जेडीए और नगर निगम के बीच भी आपसी विवाद है। जेडीए ने 600 से ज्यादा कॉलोनियां निगम को हस्तांतरित तो कर दीं लेकिन विकास कार्यों के लिए राशि नहीं दी। निगम ने भी इन कॉलोनियों में काम कराने से कन्नी काट ली। ऐसे में 1.50 लाख से ज्यादा आबादी विकास को तरस रही है। जबकि जेडीए और निगम के बीच 45 से ज्यादा बार पत्राचार हो चुका है। निगम ने 200 करोड़ रुपए मांगे लेकिन जेडीए ने उलटे 35 करोड़ रुपए बकाया निकाल दिए। इस बीच स्वायत्त शासन व नगरीय विकास मंत्री श्रीचंद कृपलानी के साथ कई बैठकें हुईं, निर्देश दिए गए लेकिन जेडीए, नगर निगम व आवासन मण्डल के बीच विवाद खत्म नहीं हुआ।