उन्होंने बताया कि इस उपचुनाव में निर्वाचन आयोग नया प्रयोग करने जा रहा है। इससे EVM मशीन के जरिए किए गए मतदान पर संदेह समाप्त हो जाएगा। जिसके तहत नई प्रकार की मशीन का प्रयोग किया जाएगा।
क्या है वीवीपैट मशीन? VVPAT यानी वोटर वेरीफ़ाएबल पेपर ऑडिट ट्रेल। इस व्यवस्था के तहत मतदाता के वोट डालने के तुरंत बाद काग़ज़ की एक पर्ची बनती है। इस पर जिस उम्मीदवार को वोट दिया गया है, उनका नाम और चुनाव चिह्न छपा होता है।
इसलिए की जा रही ये व्यवस्था यह व्यवस्था इसलिए की जाती है कि इससे किसी तरह का विवाद न हो। ईवीएम में पड़े वोट के साथ पर्ची का मिलान आसानी से किया जा सकता है लिहाज़ा विवाद की गुंजाइश नहीं बनी रहती।
और जानें VVPAT मशीन के बारे में VVPAT मशीन को भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड और इलेक्ट्रॉनिक कॉरपोरेशन ऑफ़ इंडिया लिमिटेड ने साल 2013 में डिज़ायन किया था। सबसे पहले इसका इस्तेमाल नागालैंड के चुनाव में 2013 में हुआ। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने VVPAT मशीन बनाने और इसके लिए पैसे मुहैया कराने के आदेश केंद्र सरकार को दिए।
चुनाव आयोग ने जून 2014 में तय किया कि साल 2019 के चुनाव में सभी मतदान केंद्रों पर VVPAT का इस्तेमाल किया जाएगा। ईवीएम में लगे शीशे के एक स्क्रीन पर यह पर्ची सात सेकंड तक दिखती है।
इन मशीनों के इस्तेमाल के लिए चुनाव आयोग केंद्र सरकार से 3174 करोड़ रुपए की मांग रख चुका है। जानकारी के मुताबिक़ साल 2016 में 33,500 VVPAT मशीनें बना दी गईं। इसका इस्तेमाल गोवा के साल 2017 में हुए चुनाव में किया गया था। वहीं हाल ही में राज्यों के विधानसभा चुनावों में भी चुनाव आयोग 52 हज़ार VVPAT का इस्तेमाल कर चुका है।
बनाए गए हैं सख्त नियम चुनाव आयोग ने VVPAT मशीन को लेकर बेहद सख्त नियम भी बनाए हैं। आयोग का नियम है कि यदि कोई व्यक्ति यह दावा करता है कि उसने जिसे वोट किया है पर्ची उस उम्मीदवार के चुनाव चिह्न की नहीं निकली है तो उसे एक घोषणा पत्र भरकर देना होगा। इसके बाद इसकी जांच की जाएगी और यदि दावा गलत पाया जाता है तो मतदाता को छह महीने की जेल या एक हजार रुपए जुर्माना या दोनों सजा हो सकती है।