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Exclusive : जब बेटियां नहीं बचेगी तो बहू कहां से लाओगे, सोचना जरूर

locationजयपुरPublished: Jan 21, 2019 12:14:21 pm

Submitted by:

SAVITA VYAS

विभिन्न समाजों के परिचय सम्मेलन में लड़कों की अपेक्षा लड़कियों की संख्या बीस फीसदी से भी कम है।

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Exclusive : जब बेटियां नहीं बचेगी तो बहू कहां से लाओगे, सोचना जरूर

सविता व्यास

जयपुर। बेटों की चाह ने समाज के सामने एक ऐसी विकराल स्थिति पैदा कर दी है कि विवाह के लिए लड़कों को लड़कियां नहीं मिल रही हैं। कुुंवारे लड़कों का ग्राफ दिनों—दिन बढ़ता जा रहा है। इस चिंता को देखते हुए विभिन्न समाज की ओर से युवक—युवती परिचय सम्मेेलनों का आयोजन किया जा रहा है, लेकिन यहां भी चौंकाने वाले आकड़े हैं। विभिन्न समाजों के परिचय सम्मेलन में लड़कों की अपेक्षा लड़कियों की संख्या बीस फीसदी से भी कम है। राज्य के कई हिस्सों में महिला-पुरुष अनुपात चिंताजनक स्तर पर पहुंच गया है और लोग विवाहयोग्य लड़कियां ढूंढने के लिए दूसरे राज्यों का रुख करने लगे हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि बेटियां ही नहीं बचेगी तो फिर बेटे के लिए बहू कहां से लाओगे।
लड़कियां हर क्षेत्र में आगे
आज के इस आधुनिक युग में लड़कियां हर क्षेत्र में लड़कों के समान हैं। चाहें वह शिक्षा हो या सरहद पर डटी हुई सेना की लड़कियां हों। हर क्षेत्र में अपना कदम बढ़ा चुकी हैं। आज कल्पना चावला जैसी महिलाएं पृथ्वी से बाहर जाकर लोगों को अंतरिक्ष का ज्ञान बांट चुकी हैं। इसके बाद भी बेटों के जन्म पर घरों में जश्न मनाया जाता है और बेटियों को कोख में ही मार दिया जाता है। भारत में कन्या भ्रूण हत्या एक बड़ी समस्या है, जिससे ***** अनुपात का फर्क बढ़ता जा रहा है। ऐसा नहीं है कि सिर्फ कन्या भ्रूण हत्या ही दिक्कत है, बल्कि कई जगहों में बेटी के जन्म लेने पर ही उन्हें सड़कों, नालियों, कूड़ेदानों या जंगलों में फेंक दिया जाता है। ऐसी कई बेटियां सही उपचार न मिलने पर दम तोड़ देती हैं, जबकि कुछ मासूम जानवरों का शिकार बन जाती हैं।
प्रधानमंत्री ने की बेटी बचाओ की अपील

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद देश में ***** आधारित असमानता खत्म करने की अपील कर चुके हैं, जिससे भेदभाव को खत्म किया जा सके। मोदी का कहना है कन्याभ्रूण हत्या शर्म की बात है और एक गंभीर चिंता का विषय है। इसे खत्म करने की दिशा में कार्य करना सभी की सामूहिक जिम्मेदारी है, वरना हम ना केवल वर्तमान पीढ़ी को नुकसान पहुंचा रहे हैं बल्कि भावी पीढ़ियों के लिए खतरनाक संकट को निमंत्रण दे रहे हैं।
लड़कियों की संख्या कम होना चिंताजनक
पाराशर समाज जयपुर के अध्यक्ष संजीव पाराशर ने बताया कि हाल ही में युवक—युवती परिचय सम्मेलन का आयोजन किया गया। इसमें लड़कों के बॉयोडेटा 500 के करीब मिले, वहीं लड़कियों के करीबन 70—80 के करीब होंगे। समाज के युवकों को शादी के लिए लड़कियां नहीं मिल रही हैंं। हालात यह है कि कुंवारे लड़कों की संख्या दिनों—दिन बढ़ती जा रही है।
कन्या भ्रूण हत्या है कानूनन अपराध
कन्या भ्रूण हत्या सन 1961 से बहुत बड़ा कानूनन अपराध है, जिसे करने वाले व्यक्ति को बहुत बड़ी सजा मिलने का प्रावधान है। यहां तक की बच्चे की ***** जाँच करवाने वाले माता पिता या करने वाले डॉक्टर को भी कड़ी सजा का प्रावधान है। लांसेट की स्टडी में खुलासा हुआ है कि माता-पिता दूसरी कन्या-भ्रूण का गर्भपात इसलिए कराते हैं ताकि उनके परिवार में कम से कम एक बेटा तो हो।
पिछले दशकों में यह प्रवृत्ति बढ़ी है। इससे लिंगानुपात असंतुलन उत्तर भारत से खिसककर पूर्व व दक्षिण भारत की ओर हो रहा है।

यह कहते हैं आंकड़े—
जनगणना 2011 के आंकड़ों के अनुसार
देश में अनुपात के मामले में राजस्थान का नंबर 24वां
राजस्थान का ***** अनुपात प्रति 1,000 पुरुषों पर 982 महिलाएं
बच्चों में अनुपात 1000 की तुलना में महज 888

एक पत्रिका लांसेट की स्टडी के अनुसार —
तीन दशक में 42 लाख से लेकर 1.21 करोड़ कन्या भ्रूण का गर्भपात जानबूझकर कराया गया

शोध पर आधारित यह अध्ययन प्रतिष्ठित पत्रिका ‘लांसेट’ एक अध्ययन में किया गया दावा, धनी और शिक्षित परिवारों में गर्भपात की घटनाए हुईं अधिक
72 प्रतिशत जिलों में लिंगानुपात घटा

कन्या भ्रूण गर्भपात 80 के दशक में 2 लाख, 90 के दशक में 12 से 40 लाख और 2000 के दशक में 31 से 60 लाख हुए
पहली संतान बेटी है तो लिंगानुपात में गिरावट शहरों में ग्रामीण क्षेत्रों से ज्यादा रही

भारत में बेटे की चाह में असामान्य लिंगानुपात को बढ़ावा मिलता है, जबकि यह तो अफ्र ीकी देशों में भी नहीं है
वर्ष 2001 से 2011 के बीच देश के 563 जिलों में से 72 प्रश में लिंगानुपात घटा। 28 प्रतिशत जिलों में कोई बदलाव नहीं हुआ या बढ़ा है

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