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लघुकथा – अस्तित्व का संघर्ष

locationजयपुरPublished: Feb 23, 2021 11:02:46 am

Submitted by:

Chand Sheikh

उसे अपनी गलती का अहसास हो रहा था। उसे समझ आ गया था कि अंजाने में की गई भेदभाव ने ऋचा को ऐसा करने पर मजबूर कर दिया था।

लघुकथा - अस्तित्व का संघर्ष

लघुकथा – अस्तित्व का संघर्ष

रोहिताश्व शर्मा

नीलेश और वत्सला को दोनों बेटियों के लिए एक जैसी दो चीजें लानी पड़ती थीं। नहीं तो बड़ी बहन ऋचा और छोटी प्रेरिका में द्वंद्व युद्ध का खतरा पैदा हो जाता था और द्वंद्व में जीत हमेशा प्रेरिका की ही होती थी क्योंकि वह इतनी जोर से चिल्ला कर रोती थी कि मजबूरन मम्मी-पापा को ऋचा को बड़ा होने का अहसास करा कर कहना पड़ता-
‘यह इसको दे दे। तू तो बड़ी है।’
लेकिन वह भी बड़ी कहां थी वह भी नन्ही बच्ची ही तो थी।
अपनी पसंद की चीज छोटी के पास जाते देख आंसू ऋचा की आंखों से भी छलकते थे। बस फर्क इतना था कि वह चिल्लाती नहीं थी। मम्मी-पापा को भी ऋचा के साथ किए पर मन में बड़ी पीड़ा होती लेकिन इसके अतिरिक्त कोई उपाय भी न था। आज हमेशा की तरह वे दो दूध पीने के मिकी माउस बने मग लाए थे। एक पीले रंग का और दूसरा नीले रंग का था। ऋचा ने तुरंत ताड़ लिया कि नीले की हल्की-सी कोर चटकी हुई है।
उसने चाल चली। तुरंत आंखें बंद की और हाथ जोड़कर धीरे-धीरे से बुदबुदाई-
‘हे भगवान मुझो ब्लू कलर वाला मग दिलवाना।’
प्रेरिका हमेशा की तरह बड़ी को गहराई से देख रही थी। वह तुरंत चिल्लाकर बोली,
‘मुझो ब्लू मग चाहिए।’
ऋचा ने एक बार ब्लू की मांग कर कर दी फिर तो छोटी और भी अड़ गई।
अंत में ऋचा ने समझाौता करने का दिखावा करते हुए ब्लू मग प्रेरिका को दे दिया। दोनों अपनी जीत पर खुश हो रहीं थीं।
नीलेश और वत्सला आज छोटी बेटी के साथ हुई चीटिंग से दुखी थे। वह ऋचा की कठोर नजरों से चुप था। पर उसे अपनी गलती का अहसास हो रहा था। उसे समझ आ गया था कि अंजाने में की गई भेदभाव ने ऋचा को ऐसा करने पर मजबूर कर दिया था।
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