एक दिन बेटे ने उनसे कहा कि उसने वृद्धाश्रम में रहने की व्यवस्था कर दी है वहां उनके हम उम्र साथी भी होंगे। अमरनाथजी ने मुस्कुराते हुए हामी भरी। दूसरे दिन जब पोते को स्कूल छोडऩे के लिए गए तब बगीचे से ढेर सारे नींबू तोड़कर थैली में भर लिए। पोते को स्कूल छोड़ बाजार के एक कोने में नींबू को फैलाकर बैठ गए। कुछ ही देर में सारे नींबू बिक गए। अगले दिन उन पैसों से कुछ फल ले आए। फल भी बिक गए। इस तरह चंद दिनों में उन्होंने अच्छी रकम जमा कर ली और अब अपनी दुकान खोल ली।
बेटे को इन बातों की भनक भी न पड़ी। उसने फिर वृद्धाश्रम जाने की बात कही, अमरनाथ मुस्कुराते हुए अपना सामान और पत्नी की तस्वीर लिए निकल पड़े और दुकान के बगल में किराए के मकान में रहने लगे। वे खाली समय में प्रेरणास्पद कहानियां लिखने लगे। अपने एक मित्र की मदद से उनकी कहानियों की पुस्तक भी प्रकाशित हुई। युवापीढी उनकी कहानियों की सकारात्मकता से खूब प्रभावित हुई। आज अमरनाथ जी की कहानियां जन-जन में आशा का संचार कर रही हैं, जीने की राह दर्शा रही हैं।