जयपुर

लघुकथा-जीने की राह

युवापीढी उनकी कहानियों की सकारात्मकता से खूब प्रभावित हुई। आज अमरनाथ जी की कहानियां जन-जन में आशा का संचार कर रही हैं, जीने की राह दर्शा रही हैं।

जयपुरOct 20, 2020 / 12:55 pm

Chand Sheikh

लघुकथा-जीने की राह

डॉ. अलका राय
लघुकथा
अमरनाथजी निस्वार्थी, मिलनसार, परोपकारी और सकारात्मक विचारों के इंसान थे। जीवन के हर संघर्ष को सहर्ष झोलना वे बखूबी जानते थे, उन्हें कभी किसी से कोई शिकायत या गिला नहीं होता, किसी को दोषी ठहराना भी उनके स्वभाव से परे था। उनके जीवन में निराशा और नकारात्मकता का कोई स्थान न था। चार महीने पहले बैंक से सेवानिवृत हुए थे। अपना सारा रुपया बेटे की मांगों को पूरा करने मे पानी की तरह बहा दिया था। अब वे बेटे-बहू के साथ रहते थे, उनकी पत्नी चार साल पहले सड़क हादसे में चल बसी थी। उनकी दिनचर्या में अब घर के काम, पोते को स्कूल पहुंचाना, बाजार से सब्जी लाना, बगीचे की देखभाल करना शामिल थे।
एक दिन बेटे ने उनसे कहा कि उसने वृद्धाश्रम में रहने की व्यवस्था कर दी है वहां उनके हम उम्र साथी भी होंगे। अमरनाथजी ने मुस्कुराते हुए हामी भरी। दूसरे दिन जब पोते को स्कूल छोडऩे के लिए गए तब बगीचे से ढेर सारे नींबू तोड़कर थैली में भर लिए। पोते को स्कूल छोड़ बाजार के एक कोने में नींबू को फैलाकर बैठ गए। कुछ ही देर में सारे नींबू बिक गए। अगले दिन उन पैसों से कुछ फल ले आए। फल भी बिक गए। इस तरह चंद दिनों में उन्होंने अच्छी रकम जमा कर ली और अब अपनी दुकान खोल ली।
बेटे को इन बातों की भनक भी न पड़ी। उसने फिर वृद्धाश्रम जाने की बात कही, अमरनाथ मुस्कुराते हुए अपना सामान और पत्नी की तस्वीर लिए निकल पड़े और दुकान के बगल में किराए के मकान में रहने लगे। वे खाली समय में प्रेरणास्पद कहानियां लिखने लगे। अपने एक मित्र की मदद से उनकी कहानियों की पुस्तक भी प्रकाशित हुई। युवापीढी उनकी कहानियों की सकारात्मकता से खूब प्रभावित हुई। आज अमरनाथ जी की कहानियां जन-जन में आशा का संचार कर रही हैं, जीने की राह दर्शा रही हैं।
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