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लघुकथा-लालच की यात्रा

locationजयपुरPublished: Nov 22, 2020 01:37:31 pm

Submitted by:

Chand Sheikh

दो हजार के लालच भरे लिफाफे को देखकर उसके मन में भी लालच आ गया। लालच की यात्रा जो मुझसे शुरू होकर प्रमोशन पर खत्म होनी थी वो संतोष पर खत्म हो गई।

लघुकथा-लालच की यात्रा

लघुकथा-लालच की यात्रा

लघुकथा
लालच की यात्रा

खैमू पाराशर
बात महीनों पहले की है। अचानक मेरे लिए यह निश्चित करना कठिन हो गया कि किस शादी में जाऊं। एक ही दिन तीन शादियां थीं। मेरी पत्नी के भाई की शादी, दूसरी मेरे बॉस की बेटी की शादी और तीसरी मेरे मित्र की बहन की शादी थी। पत्नी ने बोल दिया था-आप शादी वाले दिन समय पर पहुंच जाना। अब मेरे लिए सुनिश्चित हो गया कि किस शादी में जाना है। खैर बारात के एक दिन पहले गिफ्ट के तौर पर मैंने रुपयों के दो लिफाफे जिसमें एक में दो हजार का नोट एवं दूसरे में सौ रुपए का नोट था, तैयार किए। ये कॉलोनी के संतोष को दे दिए और कहा, इनमें से जिसमें दो हजार का नोट है उसको मेरे बॉस की शादी में पहुंचा देना और जिसमें सौ रुपए का नोट है उसे मेरे दोस्त की बहन की शादी में पहुंचा देना।
शादी की घटना को कई दिन बीतने के बाद भी मेरे लिफाफे के लालच का असर दिख ही नहीं रहा था। मेरा लालच मेरे प्रमोशन का था। ताकि बॉस खुश होकर मेरा प्रमोशन कर दे। एक दिन कामकाज के सिलसिले में बॉस मुझो घर लेकर गए। बेल बजाने पर एक हाथ में कागज के साथ उनकी पत्नी ने दरवाजा खोला और अचानक कागज बाहर की ओर गिर गया। मैंने चुपके से उस कागज को देखा। उसमें बेटी की शादी में आए गिफ्ट और देने वाले व्यक्ति का नाम लिखा था। मेरे लिफाफे का कहीं जिक्र नहीं था।
मुझो संतोष के लालच पर बहुत गुस्सा आया। लेकिन गलती मेरी ही थी। मैंने ही उस लिफाफे के अंदर गिफ्ट के बजाय रखा ही लालच था। संतोष ने सौ रुपए वाला गिफ्ट सही समय पर पहुंचा दिया, लेकिन दो हजार के लालच भरे लिफाफे को देखकर उसके मन में भी लालच आ गया। लालच की यात्रा जो मुझासे शुरू होकर प्रमोशन पर खत्म होनी थी वो संतोष पर खत्म हो गई।
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दर्द
मनोज सेवलकर
‘दा दाजी आज हम अपने पॉश कॉलोनी के बगीचे को छोड़ इतने दूर भीड़ वाले बागीचे में क्यों आ गए?’
‘बेटा, पुरानी यादें ताजा करने आ गए।’
‘कैसी यादें दादाजी !’
‘बेटा, वो सामने बड़ा-सा घर देख रहे हो। वो कभी अपने परिवार का हुआ करता था।’ दादाजी ने उंगली के इशारे से पोते को बताया ।
‘दादाजी, इतनी बड़ी और अच्छी जगह हमें क्यों छोडऩा पड़ी?’
‘बेटा, इसका जवाब तो तुम अपने पिताजी और ताऊजी से पूछना।’ कहते हुए दादाजी की आंखों के सामने सम्पति बंटवारे को लेकर हुए विवाद के परिदृश्य उभर आए।

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