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लघुकथा- मां… मैं प्रेम में हूं !!

locationजयपुरPublished: Nov 24, 2020 12:46:21 pm

Submitted by:

Chand Sheikh

मगर मैं समझ गई, जो प्रेम मां नहीं समझ पाई, उसे कोई और क्या समझोगा। मां के फोन रखते ही जैसे मेरा रिश्ता अधूरा रह गया हो अपने प्रेम के साथ!

लघुकथा-  मां... मैं प्रेम में हूं !!

लघुकथा- मां… मैं प्रेम में हूं !!

लघुकथाएं

मां… मैं प्रेम में हूं !!

कनिष्का खत्री

मां… सुनो !!
हां बेटा, क्या हुआ?
फ्री हो तुमसे बात करनी है?
बता, फिर तेरी सास कुछ बोली?
नही मां.. आज सास की बुराई, ससुर की अच्छाई कुछ नहीं, कुछ और बताना है तुमको।
बता क्या हुआ?
मां बहुत दिन से कुछ अच्छा ही नहीं लग रहा।
क्या हुआ? तबियत ठीक है ना?
तबियत को कुछ नहीं हुआ।
फिर?
मां.. मैं प्रेम में हूं !!!
क्या प्रेम में है? क्या..ये प्रांजल कह रही है ऐसा, उसको कोई पसंद है?
कैसी बात कर रही हो मां.. प्रांजल 11 साल की है बस।
और तू 35 की, एक बार वो कहेगी तो भी सुनने में ठीक था, तेरे मुंह से ऐसी बात सुनना बड़ा अजीब लग रहा है।
पर मैं अपना कह रही हूं मां, मैं सच प्रेम में पड़ गई हूं, गहरे प्रेम में।
बेटा.. सुबह-सुबह क्या, बहकी बातें कर रही है।
पूरी बात तो सुनो मां। मुझो फिर प्रेम हुआ है, लिखने से पढऩे से। जब तक लिखती नही हूं, चैन नहीं आता। बिना कुछ पढ़े जैसे सांसें रुक गई हों, लग रहा है जैसे हमारे बीच गहरा संबंध है।
देख.. मेरे कुछ समझा नहीं आ रहा, क्या लिखना, क्या पढऩा?
मां मुझो शब्दों से प्यार हो गया है। मेरी लिखी कहानियां, कविताएं मुझो बहुत भाने लगी हंै।
शब्दों से कभी किसी को प्यार होता है क्या! मुझो तो कुछ समझा नहीं आ रहा। सब्जी जल रही है, तू भी अपने घर के काम में ध्यान दे, रखती हूं, बाय!
मगर मैं समझ गई, जो प्रेम मां नहीं समझ पाई, उसे कोई और क्या समझोगा। मां के फोन रखते ही जैसे मेरा रिश्ता अधूरा रह गया हो अपने प्रेम के साथ!

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उम्मीद
डॉ. अलका राय
आज दस दिन हो गए गरिमा को स्कूल की नौकरी से सेवानिवृत्त हुए। पति के जाने के बाद उसने निजी विद्यालय में नौकरी शुरू की थी। दोनों बच्चो की परवरिश में पता ही न चला कि अब वह 60 साल की हो गई है। दोनों बेटियां पढ लिखकर नौकरी करने लगीं तो उसने इसी शहर में उनका विवाह कर दिया।
लॉकडाउन के चलते अब सब कुछ बंद था। एकदिन गरिमा छत पर टहल रही थी। उसे रोने की आवाज सुनाई पड़ी। उसने देखा कुछ मजदूर पेड़ के नीचे बैठे हैं, उनके बच्चे भूख से बिलख रहे हैं।
गरिमा ने रोटियां और सब्जी बनाई और पडोसियों से भी खाना इक_ा किया। सबने मिलकर उन्हें खाना खिलाया। गरिमा ने पडोसियों के साथ मिलकर रोज उन्हें खाना खिलाना शुरू किया। गरिमा व उनके साथी उन्हें अपने गांव भेजने में भी मदद करने लगे। इस सबसे गरिमा खुश थी।उसके मन में कुछ नया करने की उम्मीद जागृत हो रही थी।
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