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लघुकथा-समय की सीख

locationजयपुरPublished: Oct 19, 2020 01:30:47 pm

Submitted by:

Chand Sheikh

धन से दरिद्र हो कोई बात नहीं पर विचारों और संस्कारों से कभी दरिद्र नहीं होना चाहिए।

लघुकथा-समय की सीख

लघुकथा-समय की सीख

लघुकथा-समय की सीख

शंकर लाल शास्त्री
समय की सीख

प्रकृति के खूबसूरत दृश्यों को देखने सज्जन कुमार अपने परिवार के साथ निकल पड़े थे। चलती गाड़ी से सज्जन कुमार सड़कों के दोनों और अपलक दृष्टि से प्रकृति के रहस्यों को खोजने में लगे थे। बारिश की झाड़ी ने मौसम को सुहाना बना दिया था। प्रियांशु और चिराग के कहने पर पहाड़ के करीब जाकर सज्जन कुमार प्रकृति को और करीब से निहारने लगे थे। तभी बारिश तेज होने से सरिता ने कहा,’देखो जी, वह घर दिखाई दे रहा है। वहीं थोड़ी देर रुकते हैं।
बड़ी सी इमारत दूर से दिख रही थी। वहां जाकर खड़े हुए तो बड़ी इमारत के बाहर 3-3 ताले लटके थे। आवाज दी तो अंदर की तरफ भी ताले लगे थे। तभी सज्जन कुमार ने कहा,’इमारत जितनी बड़ी और ऊंची है। मालिक का दिल उतना ही कमजोर और दरिद्र है।’
हम थोडे आगे बढ़े। थोड़ी दूर साधारण से किसान का घर था। हमने कहा, थोड़ी देर आसरा चाहिए। वहां बैठे एक बुजुर्ग और और पास बैठी एक महिला ने कहा, बेटा बारिश को थमने दो। अभी मत जाना। उस दिन समझा में आया कि एक साधारण से किसान के दिल में आत्मीयता और मानवता की भावना कितनी सच्ची होती है। बड़ी इमारत से भली किसान की झाोपड़ी लगी जिसमें निश्चल आदर और पथिक के लिए प्यार था। तभी सज्जन कुमार ने कहा था, ‘धन से दरिद्र हो कोई बात नहीं पर विचारों और संस्कारों से कभी दरिद्र नहीं होना चाहिए।’
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