बड़ी सी इमारत दूर से दिख रही थी। वहां जाकर खड़े हुए तो बड़ी इमारत के बाहर 3-3 ताले लटके थे। आवाज दी तो अंदर की तरफ भी ताले लगे थे। तभी सज्जन कुमार ने कहा,’इमारत जितनी बड़ी और ऊंची है। मालिक का दिल उतना ही कमजोर और दरिद्र है।’
हम थोडे आगे बढ़े। थोड़ी दूर साधारण से किसान का घर था। हमने कहा, थोड़ी देर आसरा चाहिए। वहां बैठे एक बुजुर्ग और और पास बैठी एक महिला ने कहा, बेटा बारिश को थमने दो। अभी मत जाना। उस दिन समझा में आया कि एक साधारण से किसान के दिल में आत्मीयता और मानवता की भावना कितनी सच्ची होती है। बड़ी इमारत से भली किसान की झाोपड़ी लगी जिसमें निश्चल आदर और पथिक के लिए प्यार था। तभी सज्जन कुमार ने कहा था, ‘धन से दरिद्र हो कोई बात नहीं पर विचारों और संस्कारों से कभी दरिद्र नहीं होना चाहिए।’