परिजनों को कहा गया कि वे सीधे श्मशान स्थल पहुंचें। वहां पॉलीथिन में लिपटे दो शव लाए गए थे। किसी को अंदर जाने की इजाजत नहीं थी। मम्मी जी रोए जा रही थीं, दर्शन तो करवा दो। तभी बहू मम्मी जी का हाथ पकड़कर तेजी से सीधे श्मशान के अंदर प्रवेश कर गई और कर्मचारी से गुस्से में बोली -‘पापाजी कहां है। हमें दिखाओ।’
कर्मचारी उनकी पीड़ा को समझा रहा था और एक ओर इशारे करते हुए बोला -‘वह जो धुआं दिख रहा है। वही पापाजी हैं। दर्शन कर लो।’
बहू को धुआं तेजी से आसमान में उठता दिखा। उसके भीतर पापाजी का स्वर – ‘सब कुछ धुआं हो जाना है एक दिन।’ गूंज उठा। उसकी आंखों में आंसुओं का सैलाब उतर आया।
बहू को धुआं तेजी से आसमान में उठता दिखा। उसके भीतर पापाजी का स्वर – ‘सब कुछ धुआं हो जाना है एक दिन।’ गूंज उठा। उसकी आंखों में आंसुओं का सैलाब उतर आया।
————————- वैक्सीन
डॉ. संदीप नाडकर्णी
बाबा….ओ बाबा… सुनो ना….. एकटक छत को घूरते रतन की तंद्रा टूटी। छह महीनों से घर बैठा रतन एकदम संज्ञाशून्य सा हो चुका था। सूनी आंखों से बेटी को देख बोला, हां बोलो मुनिया क्या बात है?
बाबा मेरे दोस्त बता रहे थे बहुत सारे डॉक्टर साहब मिलकर कोई वैक्सीन बना रहे हैं, फिर किसी को यह बीमारी नहीं सताएगी ।
डॉ. संदीप नाडकर्णी
बाबा….ओ बाबा… सुनो ना….. एकटक छत को घूरते रतन की तंद्रा टूटी। छह महीनों से घर बैठा रतन एकदम संज्ञाशून्य सा हो चुका था। सूनी आंखों से बेटी को देख बोला, हां बोलो मुनिया क्या बात है?
बाबा मेरे दोस्त बता रहे थे बहुत सारे डॉक्टर साहब मिलकर कोई वैक्सीन बना रहे हैं, फिर किसी को यह बीमारी नहीं सताएगी ।
हां, मुनिया यह सच है …. रुंधे गले से रतन ने कहा। चहकती हुई मुनिया ने अगला प्रश्न किया, तो बाबा ये सारे डॉक्टर साहब मिलकर भूख की कोई वैक्सीन क्यों नहीं बना लेते, फिर तो भूख भी हमें नहीं सताएगी ना …. ।
छत को घूरती रतन की आंखों से अब आंसू बह रहे थे।
छत को घूरती रतन की आंखों से अब आंसू बह रहे थे।