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लघुकथाएं- धुआं और वैक्सीन

locationजयपुरPublished: Oct 17, 2020 01:07:40 pm

Submitted by:

Chand Sheikh

बहू को धुआं तेजी से आसमान में उठता दिखा। उसके भीतर पापाजी का स्वर – ‘सब कुछ धुआं हो जाना है एक दिन।’ गूंज उठा। उसकी आंखों में आंसुओं का सैलाब उतर आया।

लघुकथाएं- धुआं और वैक्सीन

लघुकथाएं- धुआं और वैक्सीन

लघुकथाएं

अनन्त भटनागर
धुआं

क्या कर रहे हैं, पापाजी? किचन में धुआं हो गया है। बहू ने गुस्से में कहा।
पापाजी उदास स्वर में, लेकिन हल्की सी मुस्कान लाते हुए बोले-‘सब कुछ धुआं हो जाना है एक दिन।’
बहू को कोफ्त हो रही थी। जब देखो तब पापाजी किचन में आ जाते हैं, कभी कोई काढ़ा बनाने लगते हैं तो कभी कोई जड़ी बूटी उबालने लगते हैं। कोरोना का डर दिमाग में ऐसा बैठ गया है कि जो भी घरेलू उपाय अखबार में पढ़ लेते हैं, उसे अपनाने की कोशिश करते हैं। अगले दिन पापाजी को थोड़ी खांसी हो गई। वे अड़ गए कि मेरा कोविड टेस्ट करवा दो। उन्हें अस्पताल ले गए तो तुरंत भर्ती कर लिया गया। अगले दिन रिपोर्ट पॉजिटिव आ गई। दो तीन दिन बीत गए। एक दिन फोन बजा और उनके निधन की सूचना मिली।
परिजनों को कहा गया कि वे सीधे श्मशान स्थल पहुंचें। वहां पॉलीथिन में लिपटे दो शव लाए गए थे। किसी को अंदर जाने की इजाजत नहीं थी। मम्मी जी रोए जा रही थीं, दर्शन तो करवा दो। तभी बहू मम्मी जी का हाथ पकड़कर तेजी से सीधे श्मशान के अंदर प्रवेश कर गई और कर्मचारी से गुस्से में बोली -‘पापाजी कहां है। हमें दिखाओ।’
कर्मचारी उनकी पीड़ा को समझा रहा था और एक ओर इशारे करते हुए बोला -‘वह जो धुआं दिख रहा है। वही पापाजी हैं। दर्शन कर लो।’
बहू को धुआं तेजी से आसमान में उठता दिखा। उसके भीतर पापाजी का स्वर – ‘सब कुछ धुआं हो जाना है एक दिन।’ गूंज उठा। उसकी आंखों में आंसुओं का सैलाब उतर आया।
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वैक्सीन
डॉ. संदीप नाडकर्णी
बाबा….ओ बाबा… सुनो ना….. एकटक छत को घूरते रतन की तंद्रा टूटी। छह महीनों से घर बैठा रतन एकदम संज्ञाशून्य सा हो चुका था। सूनी आंखों से बेटी को देख बोला, हां बोलो मुनिया क्या बात है?
बाबा मेरे दोस्त बता रहे थे बहुत सारे डॉक्टर साहब मिलकर कोई वैक्सीन बना रहे हैं, फिर किसी को यह बीमारी नहीं सताएगी ।
हां, मुनिया यह सच है …. रुंधे गले से रतन ने कहा। चहकती हुई मुनिया ने अगला प्रश्न किया, तो बाबा ये सारे डॉक्टर साहब मिलकर भूख की कोई वैक्सीन क्यों नहीं बना लेते, फिर तो भूख भी हमें नहीं सताएगी ना …. ।
छत को घूरती रतन की आंखों से अब आंसू बह रहे थे।
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