दस महाविद्याओं (दस देवियों) में से एक माता त्रिपुरासुन्दरी भी हैं। मां त्रिपुरसुन्दरी दस महाविद्याओं में सबसे प्रमुख देवी हैं। इन्हें महात्रिपुरसुन्दरी, षोडशी, ललिता, ललिताम्बिका, लीलेशी, लीलेश्वरी, लीलावती, लीलामती अथवा राजराजेश्वरी भी कहते हैं।
त्रिपुरसुन्दरी माता सोलह कलाओं से परिपूर्ण हैं, इसलिए इनका नाम ‘षोडशी’ भी है। मान्यता है कि माता पार्वती के अनुरोध पर भगवान शिव ने त्रिपुर सुन्दरी श्रीविद्या साधना-प्रणाली को प्रकट किया था। आदिगुरू शंकराचार्य मां त्रिपुरसुन्दरी के परम भक्त थे, उन्होंने अपने ग्रन्थ सौन्दर्यलहरी में त्रिपुर सुन्दरी श्रीविद्या की बड़ी भावपूर्ण स्तुति की है। ऋषि दुर्वासा भी माता ललिता के परम आराधक थे। भैरवयामल और शक्तिलहरी में माता त्रिपुर सुन्दरी उपासना का विस्तृत वर्णन मिलता है। इनकी उपासना श्री चक्र में होती है।
बहुत कम लोग जानते हैं कि माता काली के दो रूप होते हैं कृष्णवर्णा और रक्तवर्णा । माता त्रिपुरसुन्दरी, मां काली का रक्तवर्णा रूप हैं। खास बात यह है कि माता त्रिपुरसुंदरी धन, ऐश्वर्य और भोग के साथ मोक्ष की भी अधिष्ठात्री देवी हैं। ज्योतिषाचार्य पंडित सोमेश परसाई बताते हैं कि भगवती त्रिपुर सुन्दरी के आशीर्वाद से साधक को भोग और मोक्ष दोनों सहज ही उपलब्ध हो जाते हैं। अन्य महाविद्याओं में कोई भोग तो कोई मोक्ष में विशेष प्रभावी हैं लेकिन माता ललिता समान रूप से दोनों ही प्रदान करती हैं।