दरअसल, 80 के दशक में सरकार ने घोषणा की थी कि जिन सैनिकों ने 2 लड़ाइयां लड़ी हैं, उन्हें सीमावर्ती इलाके के सिंचित क्षेत्र में 20 से 25 बीघा मुरब्बा (भूमि) आवंटित होगा। जिला सैनिक बोर्ड के जरिए आवेदन लेकर आवंटन भी किया, बाद में प्रक्रिया लम्बे समय तक अटकी रही। 1984 से 2006 के बीच कई पूर्व सैनिकों को बीकानेर उप निवेशन की मोहनगढ़, नाचना, कोलायत, रामगढ़ और पुगल तहसील में जमीन आवंटित की गई।
2006 में आवंटन प्रक्रिया वापस शुरू हुई तो उन पूर्व सैनिकों के नाम जमीन देने से इंकार कर दिया, जिनकी मृत्यु हो चुकी है। प्रहलाद सिंह, मनोहर सिंह, रावत सिंह, सवाई सिंह, बैरिशाल सिंह, रूप सिंह आदि दिवंगत सैनिकों की पत्नियों व परिजन का कहना है कि पेंशन का हक है तो पति को मिलने वाली जमीन का हक क्यों नहीं मिल रहा? जबकि न्यायालय भी उनके हक में फैसला दे चुका है।
2014 में सज्जन कंवर बनाम राजस्थान सरकार के मामले में कोर्ट के दखल के बाद सरकार ने जमीन का कब्जा दे दिया। इस पर 300 अन्य सैनिकों के परिजनों ने भी कोर्ट की शरण ली। सुप्रीम कोर्ट तक चले मामले में 2017 में पूर्व सैनिकों के हक में फैसला आया। इसके बावजूद अब तक जमीन नहीं मिल पाई है। अधिवक्ता अविनाश आचार्य ने बताया कि आश्रितों ने जोधपुर हाइकोर्ट में अवमानना का मामला दायर कराया है। वहीं, बैरिशाल सिंह के पुत्र भंवर सिंह ने बताया कि संबंधित परिवारों के लोग 18 मार्च को सैनिक बोर्ड पर एकत्र होंगे। वहां अपनी मांग रखेंगे।