उधर, पुलिस महकमे की बात करें तो थानों में नफरी, स्वीकृत तो दूर आधी भी नहीं है। जो स्टाफ है उसपर पर दस गुना भार है। यही कारण है कि पुलिस का अनुसंधान, बीट प्रणाली, कानून-व्यवस्था, सूचना तंत्र सबकुछ प्रभावित हो रहा है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपने पिछले कार्यकाल में कहा था कि शहरी थानों में 60 और ग्रामीण में 45 पुलिसकर्मियों की तैनाती आवश्यक है। लेकिन नफरी का यह संतुलन राजधानी सहित सभी जगह बिगड़ा हुआ है।
इसलिए अनुसंधान में लगता है समय
थानों में दर्ज अधिकांश मुकदमों की जांच उपनिरीक्षक या सहायक उपनिरीक्षक करते हैं। लेकिन पुलिस कमिश्नरेट में 668 उपनिरीक्षक पदों की स्वीकृति के तुलना में 244 ही मौजूद है। वहीं सहायक उप निरीक्षक के स्वीकृत 1212 पदों की तुलना में 519 ही मौजूद हैं। हेड कांस्टेबल के 2328 में से 538 पद खाली हैं। थानों में एफआइआर दर्ज नहीं करने के पीछे एक यह भी कारण है कि अनुसंधान अधिकारी ही पर्याप्त संख्या में नहीं है।
पुलिसकर्मियों पर दस गुना अधिक कार्यभार
कमिश्नरेट के पूर्व और दक्षिण जिलों के अधिकांश थाने तो वीवीआइपी मूवमेंट, रूट-लाइनिंग, धरने-प्रदर्शनों व कानून व्यवस्था बनाए रखने में जूझते रहते हैं। ऐसे में परिवादी कई-कई दिनों तक थानों के चक्कर लगाने को मजबूर हो जाते हैं। उधर, मौजूद स्टाफ पर कार्यभार की बात करें तो एक पुलिसकर्मी से दस के बराबर काम कराया जा रहा है। जैसे कि कोतवाली थाने में 11 उपनिरीक्षक का काम एक उपनिरीक्षक संभाल रहा है। इसी तरह 20 सहायक उपनिरीक्षक का काम दो कर रहे हैं। यही स्थिति हेड कांस्टेबल, कांस्टेबलों की है।
राजधानी में यह हाल
पुलिस कमिश्नरेट का एक भी थाना ऐसा नहीं जहां स्वीकृत पदों के मुताबिक नफरी हो। ज्यादातर थानों में तीस का ही स्टाफ है। शहर के कोतवाली, माणकचौक व रामगंज थाने में क्रमश: 143,143 और 141 की नफरी स्वीकृत है। परंतु यहां पर क्रमश: 45,40 और 52 का स्टाफ ही तैनात है। इन संवेदनशील इलाकों में पुलिसकर्मियों की इतनी कम तैनाती से अंदाजा लगाया जा सकता है कि इनपर कार्य का भार कितना अधिक होगा।
संवेदनशील थानों में यह है स्थिति
थाना स्वीकृत मौजूद
भट्टा बस्ती 56 38
शास्त्री नगर 72 44
सांगानेर 70 34
कोतवाली 143 45
माणकचौक 143 40
रामगंज 141 52