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जिंदगी ने दिया जख्म, फिर लिया अनूठा संकल्प, जो बन गया दूसरों के लिए प्रेरणा

locationजयपुरPublished: Jan 29, 2020 01:33:14 am

Submitted by:

anoop singh

उत्तर प्रदेश: पद्मश्री पुरस्कार से नवाजे गए लावारिस शवों का अंतिम संस्कार करने वाले मोहम्मद शरीफ
 

जिंदगी ने दिया जख्म, फिर लिया अनूठा संकल्प, जो बन गया दूसरों के लिए प्रेरणा

जिंदगी ने दिया जख्म, फिर लिया अनूठा संकल्प, जो बन गया दूसरों के लिए प्रेरणा

अयोध्या.
किसी अपने की मौत इंसान को किस हद तक तोड़ सकती है, यह शब्दों में बयां कर पाना बेहद मुश्किल है। जिंदगी ने कुछ ऐसा ही जख्म पेशे से साइकिल मिस्त्री अयोध्या के मोहम्मद शरीफ को भी दिया। उनके जवान बेटे की दर्दनाक मौत हुई और फिर लावारिसों की तरह उसका अंतिम संस्कार कर दिया गया। इस घटना ने उनकी संवेदनाओं को अंदर तक झकझोर दिया। लेकिन अपने इस गम के साथ जिंदगी की डगर पर वह रुके नहीं, बल्कि उन्होंने एक ऐसा संकल्प लिया, जो आज दूसरों के लिए प्रेरणा बन गया। संकल्प यह कि अब अयोध्या की धरती पर किसी भी शव का अंतिम संस्कार लावारिस की तरह नहीं होगा। चाहे वह किसी भी धर्म का हो। इसी अनूठे संकल्प के साथ जी रहे मोहम्मद शरीफ को 71वें गणतंत्र दिवस पर पद्मश्री से सम्मानित किया गया।
पिछले 27 साल से नेकी का काम कर लावारिस शवों का अंतिम संस्कार करने वाले मोहम्मद शरीफ पद्मश्री सम्मान पाकर काफी खुश हैं। अयोध्या में खिड़की अली बेग मोहल्ले के रहने वाले मोहम्मद शरीफ अब तक वह साढ़े पांच हजार से ज्यादा शवों का अंतिम संस्कार करा चुके हैं। खास बात यह भी है कि शव की पहचान जिस धर्म के व्यक्ति के अनुसार होती है, उसका अंतिम संस्कार उसी के रीति-रिवाज के अनुसार होता है। लोग उन्हें प्यार से शरीफ चचा के नाम से बुलाते हैं।
बेटे का हुआ लावारिस की तरह अंतिम संस्कार
बात 1993 की है। उनके पुत्र मुहम्मद रईस दवा लेने के लिए सुल्तानपुर गए थे, जहां कुछ लोगों ने उसकी हत्या करके शव को कहीं फेंक दिया। बेटे की खोज में शरीफ कई दिनों तक इधर-उधर भटकते रहे। करीब एक माह बाद सुल्तानपुर से खबर आई कि बेटे की मौत हो गई और अंतिम संस्कार लावारिसों की तरह हुआ। रईस की पहचान उनकी शर्ट पर लगे टेलर के टैग से हुई थी। टैग से पुलिस ने टेलर की खोज की और कपड़े से शरीफ ने मृतक की पहचान अपने बेटे के रूप में की। जवान बेटे की मौत ने पूरे परिवार को झकझोर कर रख दिया।
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