तापमान में गिरावट व कोहरे के बावजूद कस्बे में नगर पालिका प्रशासन ने बेसहारों का सहारा बनने में रैन बसेरों की व्यवस्था में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। उच्च न्यायालय व शहरी आजीविका मिशन के निर्देशानुसार कस्बे में एक लाख की आबादी पर सर्दी से बचाव के लिए एक आश्रय स्थल या रैन बसेरा होना चाहिए। बेसहारा लोग इनमें कड़कड़ाती सर्द रातों में जीवन बचा सके।
पर नगर पालिका की ओर से शिवाजी बस स्टेंड पर स्थापित रैन बसेरे व आश्रय स्थल के कपाट के ताले अब तक नहीं खुले। इस कारण जरूरतमंद होने के बावजूद निराश्रित लोगों को रात को शरण नहीं मिल रही। शिवाजी बस स्टेंड पर महिला व पुरूषों के लिए अलग-अलग बारह मासी रेन बसेरे स्थापित हैं पर इनका संचालन मात्र कागजों में सिमटा है मगर पूरे वर्ष इन पर ताले लटके रहते हैं।
राज्य सरकार के निर्देशानुसार रैन बसेरों में ठंड से ठिठुरते निराश्रितों को राहत के लिए रजाई, गद्दे, कम्बल, शुद्ध पेयजल, शौचालय तक की सुविधा होनी चाहिए। इसके साथ ही बीमार व्यक्तियों के लिए दवा व अलाव तापने की निशुल्क व्यवस्था का भी निर्देश है। मगर स्थानीय रैन बसेरों में ये सुविधाएं तो दूर सर्द रात में सिर छुपाने का आश्रय तक में कोताही बरती जा रही है।