रविवार को अक्षय तृतीया पर अपनी फैमिली को भेंट किया है। विघ्नेश ने बताया कि चेन्नई से बीटेक करने के बाद बैंगलूरू में जॉब कर रहा हूं। छोटा भाई खुशाग्र ने हाल ही पुणे से बीसीए किया है। लॉकडाउन ( corona lock down in jaipur ) से ठीक पहले जयपुर आ गए थे। तभी सोचा क्यों नहीं कि जिस फील्ड में एजुकेशन ली है, उसे फैमिली से जोड़कर कुछ नया किया जाए, तो पेरेंटस से बात कर वंशावली बनाने में जुट गए।
विघनेश बताते है कि हमारे पूर्वज पहले राजस्थान में रहते थे। फिर पूर्वज नारायण बापा गुजरात कच्छ में गए। वहां परिवार आगे बढा। अंग्रेजो के समय में भारतीय रेल का काम कच्छ गुर्जर क्षत्रिय को मिला। इससे मेरे पिता के दादाजी 1913 में बांदीकुई आए। तभी से फिर राजस्थान में है।
खुशाग्र ने बताया कि डिजिटल वंशावली बनाने की प्रेरणा पापा तरुण ईश्वर लाल टांक से मिली। पापा ने हमें बताया कि कैसे अपनी पुरानी पीढ़ियों की जानकारी मिल सकती है। इसके लिए हमनें परिवार और समाज के कई बुजुर्गों से बात की। पुराने कागज देखें। इस कार्य में हमें हमारी संस्कृति को जानने का मौका मिला। अब वर्ष 1900 से बाद जन्म हुए सभी लोगों की तस्वीर, आपसी रिश्तों को जुडा रहे है। फिर उन्हें भी डिजिटल ( Digital Technology ) करेंगे। डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यूडॉटअबोछाटांकडॉटकॉम वेबसाइट सभी के लिए ओपन है, ताकि अन्य युवा भी अपनी वंशावली बना सके। अपने संस्क2ति को जान सके।