script200 साल से नुकसान पहुंचा रही टिड्डियां | Locusts have been harming for 200 years | Patrika News

200 साल से नुकसान पहुंचा रही टिड्डियां

locationजयपुरPublished: Jul 19, 2020 03:24:11 pm

Submitted by:

Rakhi Hajela

नया नहीं है टिड्डी दलों का हमलाआजाद होने से पहले ही लड़ रहे टिड्डियों सेदुनिया में सबसे पुराना है भारत का टिड्डी नियंत्रण कार्यक्रमआजादी से पहले की गई थी स्थापना1939 में की गई थी टिड्डी नियंत्रण संगठन की स्थापना

200 साल से नुकसान पहुंचा रही टिड्डियां

200 साल से नुकसान पहुंचा रही टिड्डियां

क्या आप जानते हैं कि भारत में टिड्डियों का हमला कोई नई बात नहीं है। टिड्डियां हमारे अन्नदाताओं को आज से नहीं बल्कि पिछले २०० से भी अधिक सालों से नुकसान पहुंचा रही हैं। यानी आजादी से भी पहले से टिड्डियां इसी प्रका किसानों की फसल पर हमले कर उन्हें नष्ट करती आ रही हैं लेकिन हमारा देश सालों से उनसे प्रभावी तरीके से लड़ता आ रहा है। टिड्डी चेतावनी संगठन यानी एलडब्ल्यू के अनुसार, भारत में साल 1812, 1821, 1843-44, 1863-67, 1869-73, 1876-81, 1889-98, 1900-1907, 1912-1920, 1926-1931, 1940-1946, 1949-1955, 1959-1962, 1978, 1993, 1997, 2005 और 2010 में टिड्डियों के दल ने बड़ी मात्रा में नुकसान पहुंचाया है। यानी टिड्डियां देश के आजाद होने से पहले ही किसानों की फसलों पर इसी प्रकार हमले करती आ रही हैं जैसे अब कर रही हैं।
टिड्डी नियंत्रण करने के प्रयास
आपको बता दें कि फसलों पर हो रहे लगातार हमलों को देखते हुए ब्रिटिश सरकार ने टिड्डी नियंत्रण संगठन की स्थापना की। दरअसल १९२६ और १९३१ में अन्नदाता पर टिड्डियों ने जो हमला किया उससे उन्हें बहुत अधिक नुकसान उठाना पड़ा। पूरे देश में किसानों की फसल नष्ट हो गई। एेसे में ब्रिटिश सरकार ने १९३९ में कराची में टिड्डी चेतावनी संगठन की स्थापना की थी। १९३९ में स्थापना के बाद से १९४६ तक इस संगठन का मुख्य काम थार रेगिस्तान में टिड्डी दल की निगरानी करना और तत्कालीन भारतीय राज्यों को रेगिस्तानी टिड्डों के झुंड, उनकी गतिविधि और प्रजनन की संभावना के बारे में चेतावनी जारी करना था। साल 1946 में एलडब्ल्यू , कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के तहत संयंत्र संरक्षण, क्वारंटीन और भंडारण निदेशालय के तहत दिल्ली स्थानांतरित कर दिया गया। तब से यह संगठन दिल्ली से काम कर रहा है।
२५० कर्मचारी कर रहे हैं काम
वर्तमान समय में एलडब्ल्यू में 250 कर्मचारी कार्यरत हैं, जो टिड्डियों का सर्वेक्षण करते हैं और हर पखवाड़े में इसको लेकर बुलेटिन जारी करते हैं, ताकि किसानों को टिड्डियों के हमले से निपटने की तैयारी में मदद मिल सके । एलडब्ल्यू भारत और पाकिस्तान के टिड्डी चेतावनी संगठन के अधिकारियों के बीच सीमा पर बैठक का आयोजन भी करवाता है। इस बैठक में दोनों देश अपने क्षेत्र में टिड्डियों की स्थिति को लेकर जानकारी साझा करते हैं। एलडब्ल्यू के उप निदेशक केएल गुर्जर ने कहा कि जब कोई टिड्डी हमला नहीं होता है, तब भी हम सर्वेक्षण कर रहे होते हैं और रिपोर्ट बना रहे होते हैं। हम संभावित प्रकोपों की तैयारी के लिए खाद्य और कृषि संगठन के साथ समन्वय भी करते हैं। एफएओ के वरिष्ठ अधिकारी कीथ क्रैसमैन ने पिछले महीने सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट की ओर से आयोजित एक वेबिनार में कहा कि टिड्डियों के हमले से निपटने के लिए भारत पूरी तरह तैयार है। इसके पास इस हमले से निपटने के लिए दुनिया का सबसे पुराना टिड्डी नियंत्रण कार्यक्रम है और इसलिए भारत वर्तमान टिड्डियों के हमले को संभालने के लिए बेहतर तरीके से तैयार है।
पांच साल में दो करोड़ की फसल नष्ट
दक्षिण.पश्चिम एशिया में रेगिस्तानी टिड्डियों को नियंत्रित करने के लिए एफएओ आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार, 1926 से 1931 तक पांच साल के दौरान टिड्डियों के हमले से करीब दो करोड़ रुपए की फसलों को नुकसान हुआ था। इसके अलावा, चारे और चरागाहों को भी नुकसान हुआ, जिसके परिणामस्वरूप मवेशियों, बकरियों और भेड़ों के लिए खाने की कमी हो गई और बड़ी संख्या में इनकी मौत हुई।

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