नाथूराम मिर्धा 1971 से 1996 तक 6 बार चुनाव जीते, 1984 में कांग्रेस लहर में ही वे लोकसभा से दूर रहे। इस चुनाव में वे लोकदल के प्रत्याशी थे और उनको कांग्रेस के रामनिवास मिर्धा ( Ramniwas Mirdha ) ने हराया था। इस बीच वे लोकदल, जनता दल व कांग्रेस (यू) में भी रहे और जनता दल व कांग्रेस (यू) में रहते हुए भी चुनाव जीतने का सिलसिला जारी रहा। 1977 में आपातकाल के बाद हुए चुनाव में कांग्रेस विरोधी लहर में भी जनता पार्टी को नागौर सीट नहीं जाने दी। लोकदल प्रत्याशी के रूप में वे चुनाव नहीं जीत पाए।
उन्होंने पहले तीन चुनाव कांग्रेस के बैनर पर जीते और 1980 में कांग्रेस(यू) में चले गए। करीब 10 साल तक कांग्रेस से बाहर रहे और 1989 की कांग्रे स विरोधी लहर में वे जनता दल के बैनर पर चुनाव जीते। 1991 में उनकी घर वापसी हो गई और उसके बाद लगातार दो चुनाव कांग्रेस के बैनर पर लडे और जीते। इसके बाद उनका निधन हो गया और 1997 में बेटे भानुप्रकाश ने चुनाव जीतकर विरासत संभाली। वे भाजपा के बैनर पर चुनाव जीते। इसके बाद यह परिवार कुछ साल के लिए गुम सा हो गया। 2009 में नाथूराम मिर्धा की विरासत पोती ज्योति मिर्धा को मिली, लेकिन वे एक ही चुनाव जीत पाईं। हालांकि कांग्रेस उन पर विश्वास जताती रही, लेकिन लगातार दूसरी बार उनको हार झेलनी पडी है।
बेनीवाल ने जताया आभार
नागौर से जीते हनुमान बेनीवाल ( hanuman beniwal ) ट्वीट कर मतदाताओं का आभार जताया है। उन्होंने कहा कि नागौर संसदीय क्षेत्र के सभी मतदाताओं का आभार, यह जीत आप सभी की जीत है। उन्होंने कहा कि गांव, गरीब व किसान के हित की बात अब देश की सर्वोच्च पंचायत में रखने में कोई कमी नही रखूंगा।
नागौर से जीते हनुमान बेनीवाल ( hanuman beniwal ) ट्वीट कर मतदाताओं का आभार जताया है। उन्होंने कहा कि नागौर संसदीय क्षेत्र के सभी मतदाताओं का आभार, यह जीत आप सभी की जीत है। उन्होंने कहा कि गांव, गरीब व किसान के हित की बात अब देश की सर्वोच्च पंचायत में रखने में कोई कमी नही रखूंगा।