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जेकेके में ‘लोकरंग’ कार्यक्रम: नन्हे हाथों से चाक पर विभिन्न आकार लेती मिट्टी

locationजयपुरPublished: Oct 17, 2019 09:01:06 pm

Submitted by:

Kamlesh Sharma

जवाहर कला केन्द्र (जेकेके) में 10-दिवसीय ‘लोकरंग‘ वर्कशाप में बच्चे धीमी रफ्तार से घूमते चाक पर चिकनी काली मिट्टी रख दीपक, कुल्हड, फ्लॉवर पोट, घण्टी आदि बना कर हस्तकला का प्रदर्शन तो कर ही रहे हैं।

जेकेके में 'लोकरंग' कार्यक्रम: नन्हे हाथों से चाक पर विभिन्न आकार लेती मिट्टी
जयपुर। जवाहर कला केन्द्र (जेकेके) में 10-दिवसीय ‘लोकरंग‘ वर्कशाप में बच्चे धीमी रफ्तार से घूमते चाक पर चिकनी काली मिट्टी रख दीपक, कुल्हड, फ्लॉवर पोट, घण्टी आदि बना कर हस्तकला का प्रदर्शन तो कर ही रहे हैं। साथ ही राजस्थान की लुप्त होती पारम्परिक विरासत और पर्यावरण संरक्षण की जानकारी भी ले रहे हैं। चलते हुए चाक पर गिली मिट्टी को रख कर मनचाहा आकार देने के बाद इन्हें छाया में सुखाया जाता है ताकि से क्रेक न हो। इसके बाद इन पर बालडी नामक इंस्ट्रूमेंट की सहायता से डिजाइन बनाई जाती है। फिर इन वस्तुओं को 2-3 दिन धूप में सुखाने के बाद जब 900 से 1000 डिग्री तापमान पर पकाया जाता है तो इनमें मजबूती आ जाती है और ये पारम्परिक टेराकोटा रंग में परिवर्तित हो जाती है।
वर्कशॉप के संचालक प्रेमशंकर ने बताया कि आउला तालाब के समीप से ली गई काली चिकनी मिट्टी को रात भर पानी में रख देते हैं। इससे बनने वाले पिण्डे अथवा लोंदे को बिजली से चलने वाले चाक पर रख कर इच्छानुसार आकार देते है। उन्हें इस बात का मलाल भी है कि आज इस कला को जानने वाले बहुत कम लोग हैं। यहां तक कि उनके स्वयं के पुत्रों की भी अन्य व्यवसायों में रुचि है।
उल्लेखनीय है कि तालाब में यह काली चिकनी मिट्टी भी धीरे-धीरे समाप्त हो रही है। कभी-कभी वे टेराकोटा के बर्तनों पर पकाने से पूर्व पलेवा पत्थर के चूर्ण का उपयोग कर वे चमक भी लाते हैं। इस काम में ठप्पा, पिण्डी, पाटिया एवं थापा आदि का उपयोग होता है। टेराकोटा में वे विभिन्न लोकदेवताओं प्रतिमाएं भी बनाते हैं, जिन्हें जनजाति के लोग बेहद पसंद करते हैं।
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