वर्कशॉप के संचालक प्रेमशंकर ने बताया कि आउला तालाब के समीप से ली गई काली चिकनी मिट्टी को रात भर पानी में रख देते हैं। इससे बनने वाले पिण्डे अथवा लोंदे को बिजली से चलने वाले चाक पर रख कर इच्छानुसार आकार देते है। उन्हें इस बात का मलाल भी है कि आज इस कला को जानने वाले बहुत कम लोग हैं। यहां तक कि उनके स्वयं के पुत्रों की भी अन्य व्यवसायों में रुचि है।
उल्लेखनीय है कि तालाब में यह काली चिकनी मिट्टी भी धीरे-धीरे समाप्त हो रही है। कभी-कभी वे टेराकोटा के बर्तनों पर पकाने से पूर्व पलेवा पत्थर के चूर्ण का उपयोग कर वे चमक भी लाते हैं। इस काम में ठप्पा, पिण्डी, पाटिया एवं थापा आदि का उपयोग होता है। टेराकोटा में वे विभिन्न लोकदेवताओं प्रतिमाएं भी बनाते हैं, जिन्हें जनजाति के लोग बेहद पसंद करते हैं।