जयपुर

बड़ा खुलासा : गोल्डसुख मामले के विवादित अधिकारी से कराई पहलू खां केस की जांच, जिसकी खामियों से आरोपी हो गए बरी

पहलू खां हत्या मामला ( Pehlu Khan Case ) : अदालत ने अपने आदेश में जांच अधिकारी पुलिस निरीक्षक रमेश सिनसिनवार ( CI Ramesh Sinsinwar ) की खामियों को किया उजागर, आठ वर्ष पहले जयपुर के गोल्डसुख ठगी प्रकरण ( Gold Sukh Case ) में भी रहे हैं विवादित

जयपुरAug 16, 2019 / 09:32 pm

pushpendra shekhawat

बड़ा खुलासा : गोल्डसुख मामले के विवादित अधिकारी से कराई पहलू खां केस की जांच, जिसकी खामियों से आरोपी हो गए बरी

ओमप्रकाश शर्मा / जयपुर. पहलू खां की हत्या ( Pehlu Khan Case ) के मामले में जांच करने वाले अधिकारी व अभियोजन की कई स्तर पर रहीं खामियों के कारण आरोपी बरी हो गए। अदालत ने अपने आदेश में उन सभी खामियों को प्रमुखता से लिखा है। आदेश में सबसे अधिक जिम्मेदार रमेश सिनसिनवार को माना गया है। वह आठ वर्ष पहले जयपुर के गोल्डसुख ठगी प्रकरण ( Gold Sukh Case ) में विवादित रहे हैं।

पुलिस निरीक्षक रमेश सिनसिनवार ( CI Ramesh Sinsinwar ) गोल्डसुख ठगी प्रकरण के दौरान विधायकपुरी थानाधिकारी थे। प्रकरण में भूमिका संदिग्ध होने के मद्देनजर उन्हें तत्काल हटाया गया था। बाद में सजा के तौर पर प्रतिनियुक्ति पर जेल भेजा गया था। इस तरह जेल की प्रतिनियुक्ति पर गोल्डसुख प्रकरण तथा नकली घी रिश्वत प्रकरण में संदग्धि रहे पुलिसकर्मियों को ही भेजा गया था। जेल से पुलिस विभाग में आने के बाद रमेश लगातार अलवर में ही तैनात रहे। वहां कई थानों में तैनाती के बाद वापस जयपुर आ गए थे। यहां बनीपार्क थानाधिकारी रहते हुए कुछ माह पहले सेवानिवृत्त हो गए।
 

इसी तरह दूसरे जांच अधिकारी परमाल सिंह भी जयपुर में तैनात रह चुके हैं। वर्तमान में भरतपुर ग्रामीण में तैनात परमाल ने भी मामले में कई खामियां छोड़ी थीं। यहां तक कि अदालत में गलत तथ्य भी पेश किए। घटना की रिकॉर्डिंग करने वाले मोबाइल (हैंडसेट व मैमोरी कार्ड) की एफएसएल जांच के लिए अदालत ने पूछा तो परमाल सिंह ने मना कर दिया, जबकि एफएसएल जांच हुई थी और उसकी रिपोर्ट पहले ही अदालत में पेश की जा चुकी थी। ऐसी खामियों का नतीजा रहा कि अदालत ने गिरफ्तार लोगों पर आरोप साबित नहीं माने और उन्हें संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया।

ये खामियां रहीं
1. पर्चा बयान के 16 घंटे बाद रिपोर्ट दर्ज की

पहलू खां के घायल होकर अस्पताल में भर्ती होने के बाद जांच अधिकारी सिनसिनवार ने उसके बयान लिए थे। पर्चा बयान 1 अप्रेल 2017 को रात 11.50 बजे लिए गए लेकिन मामला अगले दिन शाम 3.54 बजे दर्ज किया गया। पर्चा-बयान में बताए आरोपियों के बारे में क्या पड़ताल की, यह अदालत में नहीं बताया गया। पर्चा बयान में चिकित्सक के हस्ताक्षर नहीं लिए। पर्चा बयान लेने से पहले सिनसिनवार ने चिकित्सक की राय नहीं ली कि पहलू बयान देने की स्थिति में है या नहीं। बयान लेने के बाद चिकित्सक से प्रमाणित भी नहीं कराया, जबकि यह कानूनी रूप से जरूरी था। अदालत ने इस चूक को गम्भीर माना है।

2. मोबाइल बरामद करने की कार्रवाई अधूरी
पहले जांच अधिकारी ने अदालत को बताया कि एक गवाह के मोबाइल से वीडियो अपने मोबाइल में प्राप्त करने के बाद उसकी फोटो तैयार कराई, जिसके आधार पर आरोपियों की पहचान की। अदालत ने माना कि जांच अधिकारी ने अपना मोबाइल जब्त कर अदालत में पेश नहीं किया।

3. शिनाख्त परेड़ नहीं कराई

पुलिस ने पकड़े गए अभियुक्त की शिनाख्त परेड नहीं कराई। जिस मामले में आरोपी पक्ष जानकार नहीं होते, कानूनन उसमें गिरफ्तारी के समय अदालत के समक्ष शिनाख्त परेड काई जाती है। लेकिन पहले सिनसिनवार, दूसरे उपअधीक्षक परमाल सिंह तथा तीसरे जांच अधिकारी अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक गोविंद देथा ने आरोपी की शिनाख्त परेड नहीं कराई। ऐसे में अदालत में आरोपियों की शिनाख्त की पुष्टि नहीं हो सकी।

4. अदालत में गलत तथ्य पेश किए
जांच अधिकारी परमाल सिंह ने अदालत में बताया कि घटना स्थल के वीडियो रिकॉर्ड करने वाले मोबाइल की एफएसएल जांच नहीं कराई गई। जबकि जांच कराई गई थी। फाइल में जांच रिपोर्ट भी सलग्न थी, जिसमें साफ है कि मोबाइल की रिकॉर्डिंग में कोई अनिरंतरता नहीं है। खास बात यह है कि यह रिपोर्ट और जब्त किया मोबाइल व मैमोरी कार्ड अभियोजन पक्ष की ओर अदालत में पेश नहीं किया गयाा।
 

5. साक्ष्य जुटाने में लापरवाही

परमाल सिंह ने जो मोबाइल जब्त किया, उसके स्वामित्व सम्बंधी दस्तावेज बरामद नहीं किए।
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