दो तरह से प्रतिरोधकता होती है प्रभावितलिम्फोमा कैंसर नॉन-हॉजकिन और हॉजकिन, दो तरह का होता है, जिनमें अलग-अलग लिम्फोसाइट्स शामिल होते हैं। नॉन-हॉजकिन लिम्फोमा कैंसर जल्दी या धीरे-धीरे बढ़ सकता है। इसमें 80 फीसदी बी-लिम्फोसाइट्स और 20 फीसदी टी-लिम्फोसाइट्स के मामले देखे जा सकते हैं। टी और बी कोशिकाएं श्वेत रक्त कणिकाएं होती हैं, जिससे प्रतिरोधकता प्रभावित होती है।स्टेज 4 में अस्थि मज्जा को जोखिमइसकी चार स्टेज होती हैं। पहली स्टेज में डायफ्रॉम के ऊपर लिम्फोसाइट्स तेजी से बढऩे लगे हैं। दूसरी स्टेज में डायफ्रॉम के नीचे की तरफ, तीसरी स्टेज में डायफ्रॉम के दोनों ओर एवं चौथी स्टेज में अस्थिा मज्जा में जोखिम बढ़ जाता है।[typography_font:18pt;” >दुनियाभर में लिम्फोमा के लाखों मरीज हैं। यह एक प्रकार का ब्लड कैंसर होता है, जो इम्यूनिटी सिस्टम की लिम्फोसाइट सेल्स में फैलता है। ये कैंसर कोशिकाएं लिम्फ नोड्स, थाइमस, प्लीहा और अस्थि मज्जा में मौजूद होती हैं। इसके लक्षण लिम्फ नोड्स का बढऩा, पेट दर्द, वजन कम होना, थकान, बुखार आदि हैं। खानपान हो सही…नॉन हॉजकिन लिम्फोमा में कीमोथैरेपी और हॉजकिन में कीमोथैरेपी और रेडिएशन थैरेपी दी जाती है। दवाओं के साथ ही खानपान भी अहम है। तले-भुने खाद्य पदार्थ, फ्रोजन फूड्स से संक्रमण का खतरा बढ़ सकता है।