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लिंगदोह कमेटी की सिफारिशों ने बदला छात्र राजनीति का चेहरा

locationजयपुरPublished: Aug 16, 2019 09:22:29 am

Submitted by:

HIMANSHU SHARMA

2005 से पहले चुनाव लड़े छात्रनेता बने विधायक मंत्री सांसद,2009 के बाद कोई विधायक भी नहीं

 President and Vice Principal at a face-to-face commerce college

President and Vice Principal at a face-to-face commerce college


जयपुर
लिंगदोह कमेटी की सिफारिशों के बाद छात्र राजनीति का चेहरा बदल गया हैं। यही कारण है छात्रसंघ चुनावों पर रोक लगने से पहले छात्र राजनीति से निकले नेता विधायक मंत्री और सांसद तक बने। लेकिन अदालती आदेश के कारण सन् 2005-06 से सन् 2009-10 तक छात्रसंघ चुनाव पर रोक रहने के बाद दोबारा शुरू हुए छात्रसंघ चुनावों के बाद छात्र राजनीति की शक्ल भी बदल कर रह गई है। यही कारण है कि 2009 से जब दोबारा चुनाव शुरू हुए तो लिंगदोह कमेटी की सिफारिशें लागू हुई। और इन सिफारिशों में छात्रनेता ऐसे उलझे की सिफारिशें लागू होने के बाद बाद छात्रसंघ चुनाव लड़ने वाले नेता विधायक भी नहीं बन सकें। लेकिन 2005-06 से पहले के छात्रसंघ चुनाव जीत कर निकले छात्रसंघ पदाधिकारियों ने प्रदेश ही नहीं बल्कि देश की राजनीति में सुनहरा अध्याय लिखा है। देश के संसद से लेकर प्रदेश की विधानसभा तक राजस्थान के अलग अलग विश्वविद्यालयों व महाविद्यालयों से निकले छात्रसंघ अध्यक्ष व अन्य पदाधिकारियों का बोलबाला है। जिसमें छात्रसंघ की राजनीति से अपने करियर की शुरूआत करने वाले यह नेता अब केंद्र सरकार और राज्य सरकार में मंत्री जैसे अहम पदों पर हैं।
हमारे मुख्यमंत्री भी छात्र राजनीति की ही देन
देश की शीर्ष राजनीतिक पार्टी कांग्रेस को भी छात्र राजनीति ने अहम चेहरे दिए है। प्रदेश के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी छात्र संगठन एनएसयूआई से अपने राजनीतिक करियर की शुरूआत की थी। वहीं वर्तमान विधानसभा अध्यक्ष डॉ. सीपी जोशी ने भी उदयपुर विश्वविद्यालय की छात्र राजनीति से अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की। वहीं कभी विधानसभा अध्यक्ष रहे दीपेन्द्र सिंह शेखावत भी सीकर के कल्याण कॉलेज की छात्र राजनीति से निकले है। वर्तमान कांग्रेस सरकार में चिकित्सा मंत्री रघु शर्मा भी राजविवि के छात्रसंघ अध्यक्ष रहे है तो वर्तमान में हवामहल से विधायक महेश जोशी भी राजविवि के छात्रसंघ अध्यक्ष रह चुके है तो वर्तमान सरकार में परिवहन मंत्री प्रतापसिंह खाचरियावास भी राजविवि से छात्रसंघ अध्यक्ष रह चुके। इसके अलावा राजविवि के अध्यक्ष रहे महेंद्र चौधरी,अश्क अली टांक, वर्तमान में यूडीएच मंत्री शांति धारीवाल, रघुवीर मीना, जुबेर खान, रतन देवासी, मीनाक्षी चंद्रावत, केके हरितवाल, नीरज डांगी, राजपाल शर्मा, पुष्पेन्द्र भारद्वाज, नगेन्द्र सिंह शेखावत, नरेश मीणा, मनीष यादव भी छात्र राजनीति से ही निकले है। इसके अलावा राजविवि के छात्रसंघ अध्यक्ष रहे वर्तमान विधायक राजकुमार शर्मा अध्यक्ष रहे हैं। वहीं हरीश चौधरी जोधपुर विश्वविद्यालय के छात्रसंघ अध्यक्ष रहे हैं।
मोदी सरकार में भी हमारी छात्र राजनीति की चमक
वर्तमान में केंद्र की नरेन्द्र मोदी सरकार में भी हमारी छात्र राजनीति से जुड़े अहम चेहरे मंत्री पद संभाल रहे हैं। छात्रसंघ चुनावों ने ऐसे नेता दिए है जो देश की राजनीति में अहम जिम्मेदारी निभा रहे है। वहीं सांसद हनुमान बेनीवाल भी राजविवि के अध्यक्ष रहे हैं। जोधपुर विवि के छात्रसंघ अध्यक्ष रहे गजेन्द्र सिंह शेखावत आज केंद्र की मोदी सरकार में जल संसाधन मंत्री है। वहीं राजस्थान विश्वविद्यालय से अध्यक्ष रहे कालीचरण सराफ गत प्रदेश की सरकार में मंत्री रह चुके हैं। इसी तरह छात्रसंघ अध्यक्ष रहे राजेन्द्र राठौड़ ग्रामीण , राजपाल सिंह शेखावत व छात्र संगठन एबीवीपी में पद पर रहे अरुण चतुर्वेदी भी गत भाजपा सरकार में मंत्री रह चुके हैं। इसके साथ ही गत सरकार में शिक्षा राज्य मंत्री और वर्तमान विधायक वासुदेव देवनानी भी उदयपुर के सुखाड़िया विश्वविद्यालय की छात्रसंघ राजनीति से जुड़े रहे और एबीवीपी के लंबे समय तक पदाधिकारी रहे हैं। वहीं चौमूं विधायक रामलाल शर्मा राजस्थान विश्वविद्यालय के छात्रसंघ महासचिव रह चुके है। वहीं आमेर से बीजेपी से विधायक सतीश पूनिया भी राजस्थान विश्वविद्यालय से महासचिव रह चुके है। वर्तमान सांगानेर विधायक अशोक लाहोटी भी राजस्थान विश्वविद्यालय के छात्रसंघ अध्यक्ष रह चुके हैं। विधायक रहे बाबू सिंह राठौड़ भी जोधपुर विवि की राजनीति से निकले है। प्रदेश में की सरकारों में मंत्री रह चुकेक पुष्पेन्द्र सिंह भी यहीं से निकले है। इसके अलावा बीजेपी में शामिल अखिलेश शुक्ला, प्रणवेंद्र शर्मा, श्याम शर्मा, जितेन्द्र श्रीमाली राजस्थान विश्वविद्यालय के छात्रसंघ अध्यक्ष रहे है। वहीं गत सरकार में बगरू विधायक कैलाश वर्मा राजस्थान कॉलेज के उपाध्यक्ष रहे हैं।
साल भर तक सिमटी राजनीति
लिंगदोह कमेटी के नियमों के कारण छात्रराजनीति अब सालभर तक सिमट कर रह गई है। अब अपेक्स बॉडी की किसी भी पद पर चुनाव लड़ने वाला प्रत्याशी नियमों के चलते दोबारा चुनाव नहीं लड़ सकता है। लेकिन 2005.06 से पहले छात्रनेता पांच से छह साल तक विश्वविद्यालय की राजनीति में सक्रिय रहते थे। क्योकि लिंगदोह कमेटी के नियम लागू होने से पहले चुनाव लड़ने की कोई उम्र सीमा तय नहीं थी। साथ ही एक ही बार चुनाव लड़ने की बाध्यता भी नहीं थी। पहले अपेक्स के किसी भी पद पर चुनाव लड़ने के बाद किसी भी पद पर चुनाव लड़ सकते थे। साथ ही तीन से चार बार तक अध्यक्ष पद पर भी प्रत्याशी चुनाव लड़ता था। कई नेता तो ऐसे रहे है तो तीन बार अध्यक्ष का चुनाव हार कर चौथी बार में अध्यक्ष का बने। लेकिन अब हारने या जीतने के बाद छात्रराजनीति में आगे मौके नहीं मिलने के कारण छात्रनेता चुनाव परिणाम घोषित होने के साथ ही छात्र राजनीति से दूरी बना रहे है।

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