लिंगदोह कमेटी के नियमों के कारण छात्रराजनीति अब सालभर तक सिमट कर रह गई है। अब अपेक्स बॉडी की किसी भी पद पर चुनाव लड़ने वाला प्रत्याशी नियमों के चलते दोबारा चुनाव नहीं लड़ सकता है। लेकिन 2005.06 से पहले छात्रनेता पांच से छह साल तक विश्वविद्यालय की राजनीति में सक्रिय रहते थे। क्योकि लिंगदोह कमेटी के नियम लागू होने से पहले चुनाव लड़ने की कोई उम्र सीमा तय नहीं थी। साथ ही एक ही बार चुनाव लड़ने की बाध्यता भी नहीं थी। पहले अपेक्स के किसी भी पद पर चुनाव लड़ने के बाद किसी भी पद पर चुनाव लड़ सकते थे। साथ ही तीन से चार बार तक अध्यक्ष पद पर भी प्रत्याशी चुनाव लड़ता था। कई नेता तो ऐसे रहे है तो तीन बार अध्यक्ष का चुनाव हार कर चौथी बार में अध्यक्ष का बने। लेकिन अब हारने या जीतने के बाद छात्रराजनीति में आगे मौके नहीं मिलने के कारण छात्रनेता चुनाव परिणाम घोषित होने के साथ ही छात्र राजनीति से दूरी बना रहे है।