scriptइस महाशिवरात्रि पर बन रहे शुभ संयोग, राशि के अनुसार ऐसे करेंगे पूजा तो होगा भाग्योदय | Maha Shivratri 2018: Worship according to Zodiac | Patrika News

इस महाशिवरात्रि पर बन रहे शुभ संयोग, राशि के अनुसार ऐसे करेंगे पूजा तो होगा भाग्योदय

locationजयपुरPublished: Feb 10, 2018 03:40:17 pm

Submitted by:

dinesh

शिव साधक और वैष्णवजन एक ही दिन मनाएंगे महाशिवरात्रि…

Shiva
जयपुर। भगवान आशुतोष की आराधना का महाशिवरात्रि पर्व 13 फरवरी को मनाया जाएगा। इस बार शिव साधक और वैष्णवजन एक ही दिन यह पर्व मनाएंगे। ऐसा इसलिए होगा क्योंकि इस बार 13 फरवरी को त्रियोदशी तिथि को प्रदोष व्रत है और चतुर्दशी तिथि भी रात्रि में ही आ जाएगी। हिन्दूधर्म ग्रंथों में रात्रि व्यापिनी चतुर्दशी को ही महाशिवरात्रि मनाए जाने का उल्लेख मिलता है। ज्योतिष मर्मज्ञ पं. केदारनाथ दाधीच ने व्रतराज ग्रंथ में नारद संहिता, निर्णय सिन्धु और धर्म सिन्धु आदि ग्रंथों का हवाला देते हुए बताया कि जब त्रियोदशी सूर्यास्त के लगभग रहे और फिर चतुर्दशी तिथि आ जाए और वह पूरी रात्रि रहे, वह मह? शिवरात्रि ?? है। इसी प्रकार कहा गया है कि महा शिवरात्रि व्रत अमान्तमान से माघ कृष्णा चतुर्दशी तथा पूर्णिमान्त मान से फाल्गुन कृष्णा चतुर्दशी के दिन होता है। इसे अर्धरात्रव्यापिनी चतुर्दशी में करना चाहिए। नारद संहिता में कहा गया है कि जिस दिन माघ (फाल्गुन) कृष्णा चतुर्दशी आधी रात के साथ योग रखती हो उस दिन जो शिवरात्रि का व्रत करता है। वह अनन्त फल को पाता है। ज्योतिषि पं. कल्याण नारायण ने बताया कि इस बार चतुर्दशी तिथि 13 फरवरी को रात्रि में ही आ जाएगी जो कि 14 फरवरी को 12: 47 बजे तक रहेगी। इसके बाद अमावस्या तिथि शुरू हो जाएगी। इसलिए 13 फरवरी को रात्रिव्यापिनी चतुर्दशी में ही महाशिवरात्रि मनाई जाएगी।
चार प्रहर की पूजा है विशेष फलदायी
महाशिव रात्रि के पर्व पर भगवान शिव की चार प्रहर की पूजा विशेष फलदायी होती है। ज्योतिषि पं. गिरधारी शर्मा ने बताया कि शाम को प्रदोषकाल से चार प्रहर की पूजा शुरू होती है और चार-चार घंटे के अंतराल में सम्पूर्ण रात्रि भगवान शिव की षोड्षोपचार पूजा की जाती है। इसमें जल, पंचामृत, बिल्वपत्र, आंक-धतूरा, चंदन, पुष्प आदि के साथ ही भगवान शिव का दुग्धाभिषेक और गंगाजल अभिषेक किया जाता है।
बिल्व पत्र, गाय का दूध शिव को प्रिय
भगवान शिव की पूजा में बिल्व पत्र, गाय के दूध और गंगाजल की विशेष महत्वता है। ये तीनों ही शिव को अतिप्रिय हंै। क्योंकि मां पार्वती ने केवल बिल्व पत्र के सहारे शिवप्राप्ति के लिए घोर तपस्या की थी। इसलिए यह शिव प्रिय है। इसी प्रकार गाय के दूध को पृथ्वी पर अमृत के समान माना गया है और गंगा को शिव ने अपनी जटा में धारण किया है। इस लिए ये तीनों ही भगवान शिव को विशेष प्रिय हैं।
इस बार शिवरात्रि पर श्रवण नक्षत्र रहेगा, जिसका स्वामी चंद्र है। सूर्य भी शनि की राशि कुंभ में रहेगा। मंगल वृश्चिक राशि में रहेगा। चंद्रमा मकर राशि में है और ये शनि की राशि है। यह योग सभी के लिए अच्छा है। खासतौर पर मकर, कर्क, वालों के लिए भाग्योदय का समय रहेगा। धनु, मिथुन के लिए चिंताएं बढ़ सकती हैं। शेष राशियों के समय सामान्य रहेगा।
ऐसे करेंगे पूजा तो होगा भाग्योदय

मेष-शिवरात्रि को कच्चा दूध एवं दही से शिवलिंग को स्नान कराएं एवं धतूरा अर्पण करें। कर्पूर से आरती करें।

वृषभ-शिवलिंग को ईख के रस से स्नान करवाकर मोगरे का इत्र लगाकर भोग लगाएं और आरती करें।
मिथुन-शिवरात्रि पर शिवलिंग अगर स्फटिक का हो तो श्रेष्ठ रहेगा। लाल गुलाल, कुमकुम, चंदन, इत्र से अभिषेक करें। आंकड़े के फूल अर्पित करें। मीठा भोग अर्पण कर आरती करें।

कर्क-शिवरात्रि पर अष्टगंध चंदन से अभिषेक करें। आटे से बनी रोटी का भोग लगाकर पूजा आरती करें।
सिंह-फलों के रस और शकर की चाशनी से अभिषेक करें। आंकड़े के फूल अर्पण कर मीठा भोग लगाएं।

कन्या-धतूरा, भांग, आंकड़ें के फूल चढ़ाएं, बिल्व पत्रों पर रखकर नैवेद्य अर्पित करें। कर्पूर मिले हुए जल से अभिषेक कराएं।
तुला-फूलों के जल से शिवलिंग को स्नान कराएं। बिल्व, मोगरा, गुलाब, चावल, चंदन चढ़ाएं। आरती करें।

वृश्चिक-शुद्ध जल से स्नान शिवलिंग को कराएं। शहद, घी से स्नान कराने बाद पुन: जल से स्नान कराएं और पूजा कर आरती करें।
धनु-चावल से श्रृंगार करें, सूखे मेवे का भोग लगाएं। बिल्व पत्र, गुलाब आदि से श्रंगार कर पूजन पश्चात आरती करें।

मकर-गेहूं से शिवलिंग को ढंककर विधिवत पूजन करें। इसके बाद उस गेहूं को गरीबों में दान कर दें।
कुंभ-सफेद-काले तिलों को मिलाकर किसी ऐसे शिवलिंग पर चढ़ाएं जो एकांत में हो। जल चढ़ाकर शिवलिंग को दोनों हाथों से रगड़ें और आरती करें।

मीन-रात्रि में पीपल के नीचे बैठकर शिवलिंग का पूजा करें। ऊँ नम: शिवाय का पैंतीस बार उच्चारण कर बिल्व पत्र चढ़ाएं और आरती करें।

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