जयपुर

Diwali 2017: खुद की दिवाली छोड़ जयपुर की रोशनी देखने आते थे राजा-महाराजा, लक्ष्मीजी के स्वागत में छूटती थी तोपें

जयगढ़, नाहरगढ़, सूर्य मंदिर, गढग़णेश, हवामहल, त्रिपोलिया आदि गढ़ महलों में असंख्य दीयों की रोशनी का दरिया बह उठता…

जयपुरOct 18, 2017 / 04:06 pm

dinesh

जयपुर। गुलाबीनगर की हवेलियों-किलों की झिलमिलाती रोशनी और शोरगरों की रंगीन आतिशबाजी देखने रियासतों के राजा-महाराजा दीपावली मनाने जयपुर आते थे। सन् 1876 में ग्वालियर महाराजा जियाजीराव सिंधिया जयपुर की दिवाली देखने सवाई रामसिंह के खास मेहमान बनकर आए। उन्हें चमेली वाला बाग के मुमताज महल में ठहराया गया। सिंधिया के सम्मान में संगीत की महफिल हुई, जिसमें मारवाड़ राज दरबार की मशहूर नृत्यांगना नन्हींजान को बुलाया गया। नन्हींजान को चांदी के 75 रुपए और 150 रुपए का इनाम दिया गया।
 

Diwali 2017: सवाई माधोसिंह द्वितीय के शासन में बीकानेर के महाराजा गंगासिंह अपनी दिवाली छोड़ जयपुर की दिवाली देखने आए। उन्होंने माधोसिंह के साथ बग्घी में बैठकर शहर की रोशनी और आतिशबाजी देखी। गंगासिंह को सिटी पैलेस के मुबारक महल में ठहराया गया था।
 

Diwali 2017: प्रीतम निवास परिसर की संगीत महफिल में नृत्यांगनाओं ने मनोरंजन किया। जयपुर फाउंडेशन के सियाशरण लश्करी के पास मौजूद रिकार्ड के मुताबिक सन् 1951 के दिवाली दरबार में प्रजामंडल के नेता देवीशंकर तिवाड़ी भी सवाई मानसिंह के खास मेहमान रहे।
 

Diwali 2017: दीयों और आकर्षक आतिशबाजी के कारण मशहूर गुलाबीनगर की दिवाली देखने का अंग्रेज अधिकारियों को भी खास चाव रहा। वे परिजनों-मित्रों को इंग्लैण्ड व भारत की दूसरी रियासतों से जयपुर बुलाते थे। इतिहासकार आनन्द शर्मा के अनुसार वैसे आज पहले से कहीं ज्यादा धूम-धड़ाके से यह पर्व मनाया जा रहा है लेकिन सार्वजनिक आनन्द का वह सकूनभरा आत्मभाव अब दिखाई नहीं देता।
 

Diwali 2017: शरद पूर्णिमा के बाद से ही शहरवासी दिवाली की तैयारियों में जुट जातेे थे। दिवाली की शाम को नाहरगढ़ से शहरवासियों को झिलमिलाते दीयों की महालक्ष्मी के दर्शन होते। बक्षीजी महाराज पहाड़ी पर लक्ष्मीजी की चित्र रेखा को उकेरकर उसमें तेल के बड़े दीये रख देते। रात को दीये जलते तब पहाड़ से मां लक्ष्मी के दर्शन होते। लक्ष्मीजी के स्वागत में तोपें छूटती।
 

Diwali 2017: जयगढ़, नाहरगढ़, सूर्य मंदिर, गढग़णेश, हवामहल, त्रिपोलिया आदि गढ़ महलों में असंख्य दीयों की रोशनी का दरिया बह उठता। काली-नीली सलमा साटन की पोशाकें पहने सेविकाएं जनानी ड्योढी को दुल्हन की तरह रोशनी से सजाने की भाग दौड़ में लग जातीं।

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