scriptकोई ख्वाब जिंदगी से बड़ा नहीं | No larger than a dream life | Patrika News

कोई ख्वाब जिंदगी से बड़ा नहीं

Published: Jul 06, 2016 09:57:00 pm

दोस्तों, इन दिनों बहुत अधिक पढऩे और सुनने को मिल रहा है कि हमारे युवा साथी बहुत ऊंचे-ऊंचे ख्वाब देखते हैं

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दोस्तों, इन दिनों बहुत अधिक पढऩे और सुनने को मिल रहा है कि हमारे युवा साथी बहुत ऊंचे-ऊंचे ख्वाब देखते हैं पर जब उन्हें पूरा कर पाने में सफल नहीं होते तो वे हताशापूर्ण कदम उठा लेते हैं। खासतौर पर पढ़ाई की प्रतिस्पर्धा में पिछडऩे के बाद तो अकसर ऐसा देखने को मिल रहा है कि जो बच्चे पूरे से युवा भी नहीं हो पाते, वे आत्महत्या जैसे कदम उठा रहे हैं। कुछ ऐसे भी हैं जो पढ़ाई के बाद जिंदगी में जो पाना चाहते थे, उसे हासिल नहीं कर पाते तो वे भी इसी तरह के हताशा में गलत कदम उठा लेते हैं। हमें एक बात समझनी चाहिए कि हार-जीत तो जिंदगी का नियम है।

 ङ्क्षजदगी का खेल यही है कि हार गए तो जीत के लिए फिर मैदान में उतरो। कोई भी ख्वाब जिंदगी से बड़ा नहीं है। यदि कोई क्रिकेट खिलाड़ी यह सोचे कि वह हर मैच में सेंचुरी मारेगा तो यह संभव ही नही ंहै। लगातार शतक लगाने वाले खिलाड़ी शून्य पर भी आउट होते हैं लेकिन मैंने उन्हें खेल छोड़ते नहीं देखा। बहुत से अच्छे खिलाड़ी तो लगातार विफल होते रहते हैं किंतु एक दिन ऐसा आता है कि उन्हें आउट करना ही दुनिया के गेंदबाजों के लिए चुनौती बन जाता है। मैंने अनुभव से जाना कि हम कई बार खुद को पहचान नहीं पाते और नंबरों के आंकड़ों से खुद और विफल मानने लगते हैं। लेकिन, दोस्तों आंकड़ों से जिंदगी नहीं चला करती। ऐसा होता तो जिंदगी बहुत ही बोरिंग हो जाती। मैं जयपुर के सेंट जेवियर स्कूल में पढ़ा। शुरुआत में हमारे ख्वाब तो डॉक्टर-इंजीनियर बनने के ही थे।

लेकिन, स्कूल की समाप्ति के बाद कॉलेज में एडमीशन लेने की बारी आई तो कुल नंबर तिरेपन प्रतिशत ही थे। सारे ख्वाब एक ही झटके में धराशायी हो गए। दिल्ली के सेंट स्टीफंस कॉलेज में कोशिश की तो आट्र्स में भी मुश्किल से दाखिला मिला, वो भी स्पोट्र्स कोटे के सहारे। लेकिन, आट्र्स में दाखिले के बाद समझ में आया कि मैं तो था ही इसके लिए। बाद में इन विषयों में ही स्कॉलरशिप भी मिली। इसीलिए मेरा मानना है कि जितना जल्दी हो, खुद को पहचाने और उसके मुताबिक ही पढ़ाई करें और रोजगार की तलाश करें। आपकी रुचि जिस क्षेत्र में होगी, उसी में आपको सफलता मिलेगी। यह बात जरूर है कि सफलता एक ही झटके में नहीं मिलती।


 इसके लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। सफलता में देरी और कड़ी मेहनत से नहीं घबराने की आवश्यकता नहीं है। कई बार यह भी लगता है कि लंबा समय बीत रहा है और सफलता हाथ नहीं लग रही। ऐसे में समय-समय पर अपनी क्षमता और कार्य का आकलन भी करते रहना बहुत ही जरूरी है। यदि कोई नया काम शुरू करने जा रहे हैं तो उसके जोखिमों का पूर्व आकलन करें। उस काम के सभी पहलुओं को समझने की कोशिश करें।

आधी-अधूरी जानकारियों के साथ नया काम शुरू करना ठीक नहीं होता है। उदाहरण के तौर पर यदि जूते बेचने के काम की शुरुआत की है तो केवल जूतों की वेराइटी जानने से ही काम नहीं चलेगा। यह भी समझना जरूरी है कि जूते पहनने वाले इन दिनों चाहते क्या हैं? वे किस तरह का जूता पहनना पसंद कर रहे हैं। उनके अनुरूप शॉप में सामान रखेंगे, तभी सफलता मिलेगी। हां, नए काम में सफलता मिलने में देर जरूर होती है लेकिन धैर्य और विश्वास के साथ आगे बढ़ते रहना चाहिए। एक महत्वपूर्ण बात यह भी है कि सफलता एक साथ नहीं बल्कि धीरे-धीरे आती है।


ऊपर चढऩे के लिए एक-एक सीढ़ी चढऩी होती है। जरूरी है कि छोटे-छोटे लक्ष्य तय करके आगे बढ़ा जाए। एक लक्ष्य पूरा हो तो अगले लक्ष्य की ओर कदम बढ़ाया जाना चाहिए क्योंकि जब शुरुआत में ही बहुत बड़े सपने देखने लगते हैं तो अकसर निराशा ही हाथ लगती है। ऐसा नहीं है कि देश में अवसरों की कमी है। देश तरक्की कर रहा है।


युवाओं के पास भरपूर अवसर हैं। इन अवसरों का लाभ उठाने की कोशिश करनी चाहिए। युवा हैं तो जोखिम लेने के बारे में भी सोचेंगे। सोचना भी चाहिए क्योंकि इसके बिना बड़ी सफलता नहीं मिलती लेकिन जरूरी है जो जोखिम लेने जा रहे हैं, उसका पूर्व आकलन कर लिया जाए। पूर्व आकलन में फिर कहूंगा कि क्षमता को समझना जरूरी है। अपना घर फूंक देना समझदारी नहीं है। अपना और उसकी सफलता की संभावना का आकलन करते हुए आगे बढ़ें। दुनिया जहां भाग रही है, उस तरफ भागने से सफलता नहीं मिलेगी बल्कि कुछ नया करना ही होगा। रेस जीतनी है तो आविष्कार ही करना होगा।

 हमारे जीवन में माता-पिता, भाई-बहिन और मित्रों की बड़ी भूमिका होती है। हमें समझना चाहिए कि हमें तैयार करने में उन्होंने किस-किस तरह के कष्ट उठाए। यदि हम जिंदगी की पतंग उड़ा पाए हैं तो उनके योगदान के बिना संभव नहीं था। उनके आर्थिक और मानसिक प्रोत्साहन के बिना हम कुछ बन ही नहीं सकते। हमारी भी जिम्मेदारी बनती है कि उम्र के ऐसे पड़ाव पर जब वे लाचार हों तो हम उनकी मदद करें। सच मानिए, हम ऐसा कर पाए तो हमारी सफलता का आनंद दोगुना हो जाएगा और सफल नहीं हुए तो हमें हताशा बिल्कुल भी नहीं होगी।


पीयूष पांडे जाने माने एड गुरू

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