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वसुंधरा V/S मानवेंद्र: कांग्रेस 25 दिनों से पका रही थी खिचड़ी, भाजपा को भनक नहीं

locationजयपुरPublished: Nov 17, 2018 10:13:00 pm

Submitted by:

Kamlesh Sharma

झालरापाटन में कांग्रेस की ‘राजनीतिक खिचड़ी’ 25 दिनों तक पकती रही लेकिन भाजपा को कानों-कान खबर नहीं हुई।

Manvendra Singh
अनंत मिश्रा/ जयपुर। झालरापाटन में कांग्रेस की ‘राजनीतिक खिचड़ी’ 25 दिनों तक पकती रही लेकिन भाजपा को कानों-कान खबर नहीं हुई। 22 सितंबर को मानवेन्द्र सिंह ने भाजपा का दामन छोड़ा तो किसी का आश्यर्च नहीं हुआ। लगा, ये तो होना ही था और जब 17 अक्टूबर को उन्होंने कांग्रेस का दामन थामा, तब भी राजनीतिक हलकों में अधिक आश्चर्य नहीं हुआ।
इसके बाद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी 24 अक्टूबर को मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के गढ़ झालरापाटन विधानसभा क्षेत्र में रैली करने पहुंचे तब भी मानवेन्द्र सिंह मंच पर मौजूद रहे लेकिन 17 नवंबर को वसुंधरा राजे जब झालरापाटन से अपना नामांकन पत्र दाखिल कर रही थी, उसी समय उनके खिलाफ मानवेन्द्र सिंह को उतारने की कांग्रेस की घोषणा ने चौंका दिया।
15 साल पहले रमा पायलट ने ठोकी थी ताल
किसी बड़े नेता को घर में जाकर यूं घेरने की परंपराएं पहले भी देखने में आती रही हैं। ‘ढाई घर की सियासी चाल’ राजनेताओं का अचूक अस्त्र रहा है। पहली बार 2003 में जब वसुंधरा राजे झालरापाटन से विधानसभा के चुनावी समर में उतरी तब भी कांग्रेस ने ‘ढाई घर’ की चाल चली थी।
उस समय राजे को घेरने के लिए कांग्रेस ने सचिन पायलट की मां रमा पायलट को उनके सामने मैदान में उतारकर खलबली मचा दी थी। ये अलग बात है कि उस चुनाव में राजे ने रमा पायलट को 27 हजार मतों से करारी शिकस्त दी थी।

ग्वालियर में अटल के सामने माधवराव बने थे तुरुप का पत्ता
वसुंधरा राजे के भाई और कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे माधवराव सिंधिया को भी कांग्रेस ने 1984 के लोकसभा चुनाव में ग्वालियर सीट से अपने ‘तुरुप के पत्तेÓ के रूप में भाजपा के शीर्षस्थ नेता अटल बिहारी वाजपेयी के सामने उतारा था। कांग्रेस की ये चाल बिलकुल सही साबित हुई थी और वाजपेयी को ग्वालियर से करारी हार का सामना करना पड़ा था। तब से लेकर राजनीति बहुत बदल गई है।
तब चली जाने वाली सियासी चालें विचारधारा-सिद्वांतों के संघर्ष के इर्द- गिर्द ही सिमटी रहती थी। बहरहाल, ये टकराहट झालरापाटन में क्या गुल खिलाएगी, कहना मुश्किल है लेकिन इतना जरूर कहा जा सकता है कि मानवेन्द्र के झालरापाटन से उतरने के बाद ये सीट ‘हॉटेस्ट सीट’ बन चुकी है।
जिस पर न सिर्फ झालरापाटन या राजस्थान बल्कि देश- दुनिया की निगाहें लगी रहेंगी। ठीक 11 दिसंबर तक। यानि चुनाव नतीजे वाले दिन तक। राजनीतिक शतरंज का खेल सिर्फ ‘ढाई घर’ चलने वाला घोड़ा ही नहीं जिता सकता।
इसलिए वोट डाले जाने तक झालरापाटन में दोनों तरफ से ‘पैदल सेनाएं’ भी लड़ती नजर आएंगी। ‘हाथी’ और ‘वजीर’ भी अपने-अपने ‘राजा’ को जिताने के लिए चालें चलते नजर आएंगे। खेल चाहे शतरंज का हो या फिर राजनीति का, आखिरी समय तक मुकाबला दिलचस्प बना रहता है। बेशक दोनों तरफ से चालें ‘शह और मात’ की चली जाती रहनी चाहिए। झालरापाटन में दोनों तरफ से हर वो चाल चली जाएगी, जिससे जीत का दरवाजा प्रशस्त होता हो।
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